Monday, August 18, 2014

श्रीकांत वर्मा की कविता मानस भट्टाचार्य का अनुवाद



दिल्ली में रहने वाले मानस भट्टाचार्य कवि हैं और राजनीति विज्ञान के अध्येता. उनकी कवितायेँ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की पत्रिकाओं और संग्रहों में छपी हैं और उनका पहला संग्रह ग़ालिब का मकबरा और अन्य कवितायेँनवम्बर २०१३ में द लन्दन मैगज़ीनसे प्रकाशित हुआ है. उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद कबाड़खाने में कुछ अरसा पहले लगाया गया था. आज उन्होंने श्रीकांत वर्मा की कविता ‘मगध’ के एक टुकड़े का अनुवाद हमारे पाठकों के लिए भेजा है. प्रस्तुत है-    


अन्तःपुर का विलाप 

- श्रीकांत वर्मा ('मगधसे

अन्तःपुर में विलाप क्यों?

पूछो,
पता करो 
जानना चाहते हैं 
महाराज – 

जब 
चारों ओर
छूटती हों 
फुलझड़ियाँ 
हर्ष की

हरेक 
सोच रहा हो
अपने उत्कर्ष की 

संताप क्यों?

जब
सभी कह रहें हो 
ठीक 
हुआ

पश्चाताप क्यों

जब
सब
सलीके से 
रहते हों 

जब 
सब 
सोच-समझ 
कहते हों,

प्रलाप क्यों?

पता करो! 

(१९८४)

ये रहा मानस का अनुवाद:

The Harem’s Lament

Why is there lament in the harem?

Ask,
Find out
The king
Wants to know –

When
All around
Sparkle
Crackers
Of glee,

And everyone
Thinks
Of their ascent,

Why this repentance?

When
Everyone is saying
It was right,

Wherefrom this anguish?

When
Everyone
Lives
Agreeably

When
Everyone
Speaks
Prudently,

Why this delirium?

Find out.

(Manash Bhattacharjee is a poet, translator and a political science scholar from New Delhi, India. His poems have appeared in The London Magazine, New Welsh Review, The Fortnightly Review, The Missing SlateFirst Proof Volume 5: The Penguin Books of New Writing from India, The Palestine Chronicle, The Little Magazine,Pratilipi and Coldnoon. His first collection of poetry was published by The London Magazine.)