Saturday, October 11, 2014
काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र
जिगर मुरादाबादी का कलाम. बेग़म अख्तर की अमर आवाज़ –
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन
काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र
कौन छुड़ाए अपना दामन
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
said...
बस वाह । आभार ।
October 11, 2014 at 4:15 PM
सुशील कुमार जोशी
said...
बस वाह । आभार ।
October 11, 2014 at 4:15 PM
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बस वाह । आभार ।
बस वाह । आभार ।
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