Saturday, October 11, 2014

काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र


जिगर मुरादाबादी का कलाम. बेग़म अख्तर की अमर आवाज़ –

 

कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन

आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन

काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र
कौन छुड़ाए अपना दामन