हर एक मकां में जला फिर दीया दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा खुश लगा दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का दिन है बना दिवाली का
जहां में यारो अजब तरह का है यह त्यौहार
किसी ने नकद लिया उअर कोई करे है उधार
खिलौने-खीलों बताशों का गरम है बाज़ार
हर एक दुकां में चिराग़ों की हो रही है बहार
सभों को फ़िक्र है अब जा बजा दिवाली
का
खिलौने मिट्टी के घर में कोई ले आता है
चिराग़दान कोई हंडिया मंगवाता है
सिवाई गूंजा व मटरी कोई पकाता है
दिवाली पूजे है हंस-हंस दिए जलाता है
हर एक घर में समां छा गया दिवाली का
जहां में वह जो कहते हैं सेठ साहूकार
दोशाला, शाल, ज़री, ताश, बादली की बहार
खिलौने खीलों बताशों के लग रहे अम्बार
चिराग़ जलते हैं घर हो रहा है सब गुलज़ार
खिला है सामने इक बाग़ सा दिवाली का
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई
पुकारते हैं कि लाला दिवाली है आई
बताशे ले कोई, बर्फी किसी ने तुलवाई
खिलौनेवालों की उनसे ज़्यादा बन आई
गोया उन्हीं के वां राज आ गया दिवाली का
पुकारते हैं कि लाला दिवाली है आई
बताशे ले कोई, बर्फी किसी ने तुलवाई
खिलौनेवालों की उनसे ज़्यादा बन आई
गोया उन्हीं के वां राज आ गया दिवाली का
कोई कहे है ‘इस हाथी का बोलो क्या लोगे’
‘यह दो जो घोड़े हैं इनका भी भला क्या लोगे’
कोई कहे है कि इस बैल का टका लोगे
वह कहता है कि ‘मियाँ जाओ बैठो क्या लोगे’
टके का ले लो कोई
चौघड़ा दिवाली का
कोई खड़ा फ़क़त इक चौघड़ा चुकाने को
कोई जो गुज़री का पैसा लगा बताने को
वह कहता है कि मैं बेचूंगा पांच आने का
यह पैसा रक्खो तुम अपने अफ़ीम खाने का
कि जिसकी लहर में
देखो मज़ा दिवाली का
हठा है मोर पे लड़का किसी का या चेला
कोई गिलहरी के नौ दाम दे है या धेला
वह धेला फेंक के इसका कुम्हार अलबेला
खिलौना छीन के कहता है ‘चल मुझे दे ला’
तू ही तो आया है
गाहक बड़ा दिवाली का
कबूतरों का किसी ने लिया है बेल चुका
कोई छदाम को रखता है बहू बेल चुका
वह कहता है कि ‘मियाँ लो जी’ इसका मेल चुका
यह धुन है दिल में तो लड़का तुम्हारा खेल चुका
चबैना लड़के को दो
तुम दिला दिवाली का
इधर यह धूम, उधर जोश पर जुएखाने
क़िमार, बाज़ लगे जा बजा से वां आने
अशर्फी कौड़ी व पैसे रुपे लगे आने
तमाम जुआरी हुए माल-ओ-जार के दीवाने
सभों के सर पे चढ़ा
भूत सा दिवाली का
सिर्फ हराम की कौड़ी का जिन का है ब्यौपार
उन्होंने खाया है उस दिन के वास्ते ही उधार
कहे हैं हंस के क़र्ज़ख्वाह से हर इक इक बार
‘दिवाली आई है सब दे दिलाएंगे ऐ यार’
‘खुदा के फ़ज्ल से
है आसरा दिवाली का
(इस नज्म का आगे का और आख़िरी हिस्सा कल पेश करता
हूँ)
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