Monday, October 20, 2014

उम्मीद के पन्ने पर खुली हुई है कहानी और मैं हूँ वहां - माज़ेन मारूफ़ की कवितायें – ४


 शिकायत करना

- माज़ेन मारूफ़

हवा में उछलता हूँ अपना दिल
चित
या पट

मैं ख़ुद अनुमान लगाने की कोशिश करता हूँ;
एक छज्जे का कोना नहीं हो सकती मेरी पलक ...
और यह गौरैया उतरती हुई दरवाज़े के हत्थे पर
हत्था जो बना हुआ एक पुरानी पसली से
फ़कत एक घपला

उम्मीद के पन्ने पर खुली हुई है कहानी
और मैं हूँ वहां
चौड़ा पसारता अपने हाथों को
फैलाता अपनी दसों उँगलियों को ऑलपिनों की तरह
ताकि गड़ा लू ख़ुद को पन्ने पर
जो
जब भी मेरा अंगूठा
उसे पलटने को नज़दीक पहुँचता है
मैं देखता हूँ उसकी परछाई
मैंने सोचा था वह एक सेब है
जो गिर गया था ऊपर रहने वाले जिन्नों में से एक की आस्तीन से
और वह टकराएगा मेरे सिर से और खून से सन जाएगी कहानी.

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