Tuesday, January 13, 2015

कैसी-कैसी क्रिकेट कमेंट्री - 12 - जॉन आर्लट


यह आदमी जो अपनी पीढ़ी के संभवतः सबसे अधिक पढ़े-लिखे लोगों में शुमार होता था, कभी अपनी हाईस्कूल तक की पढाई पूरी नहीं कर सका था. और उसका करियर कमेंट्री बॉक्स से इतनी दूर शुरू हुआ था जितनी कोई भी कल्पना कर सकता है.

उन्होंने अपनी रोटी कमाना एक पागलखाने में डायट क्लर्क की हैसियत से काम करते हुए शुरू किया था. बाद में वे हैम्पशायर पुलिस बल में शामिल हो गए.

अभी वे पुलिस की नौकरी कर ही रहे थे जब आर्लट ने उनकी कविता की बाबत विख्यात कवि और ब्रॉडकास्टर जॉन बेत्ज़ेमान से बात की. बेत्ज़ेमान के दिशानिर्देशन में उन्होंने १९४५ में बीबीसी में अपनी पहली नौकरी हासिल की. वे ओवरसीज़ लिटरेरी प्रोड्यूसर बने. उनसे पहले इस पद पर जॉर्ज ऑरवेल थे.

शुरू के कुछ साल तक, बल्कि तब भी जब वे क्रिकेट कमेंट्री करने लगे थे, आर्लट ने तमाम साहित्यिक कार्यक्रमों का निर्माण जारी रखा. इसके अलावा वे असंख्य किताबों और कविता-संकलनों के सम्पादन का काम भी बखूबी करते रहे थे जिनमें से कुछ उनकी अपनी लिखी हुई थीं.

क्रिकेट उनकी किस्मत की तश्तरी में संयोगवश ही परोसा गया था और उन्होंने उसका पूरा लुत्फ़ उठाया. उन्होंने न सिर्फ यह साबित किया कि क्रिकेट कमेट्री उन्हें पसंद है बल्कि यह भी ज़ाहिर किया कि इस खेल के लिए उनकी भूख का शमन लगभग असंभव है. बाद में इस परिदृश्य को याद करते हुए आर्लट ने लिखा: “१९४६ में एक प्लानिंग मीटिंग के दौरान पूर्वी सेवा के प्रमुख डोनाल्ड स्टीवेंसन ने करीब करीब तल्खी के साथ कहा, ‘भारत की टीम आ रही है न इन गर्मियों में?’ तो मैंने कहा ‘हां. आ तो रही है.’ वे बोले ‘मुझे तुम्हारे इंटरव्यू की याद है जिसमें तुमने कहा था कि तुम्हें क्रिकेट में दिलचस्पी है. कब से आ रहे हैं वो लोग?’ मैंने जवाब दिया, ‘मई के पहले बुधवार ... पहले वॉरचेस्टर में ... फिर ऑक्सफ़ोर्ड में’. उन्होंने पूछा ‘तुम्हें कैसे पता?’ मैंने कहा ’क्योंकि दौरे का टाईमटेबल मेरी जेब में है.’ उन्होंने फिर पूछा ‘तुमने कभी क्रिकेट ब्रॉडकास्ट किया है?’ ‘हाँ’ सत्य को ज़रा लम्बा खींचते हुए मैंने जवाब दिया, क्योंकि एक बार मैंने हैम्बलडन के बारे में १५ मिनट का प्रोग्राम किया था. ‘तुम इसे करना चाहोगे?’ उन्होंने प्रस्ताव दिया. मुझे लगा कोई चीज़ सिर के बल खड़ी हो गयी है.”

तो इस तरह कमेंटेटर के रूप में आर्लट का करियर शुरू हुआ. और यह करियर ३४ साल तक खिंचा. उनकी आवाज़ सबसे पहले भारत में सुनी गयी जब उनके साथ अब्दुल हमीद शेख ने हिन्दी में कमेंट्री की थी. ब्रिटिश उपनिवेश से बीबीसी तक पहुँची असंख्य चिठ्ठियों और संदेशों ने ही आर्लट को क्रिकेट की एक स्थापित आवाज़ बनाया.

उसी सीज़न में एक और चीज़ पहली दफ़ा हुई जिसने बाद में आर्लट परिवार की एक खासियत बन जाना था. उन्होंने डिनर पर तीन भारतीय क्रिकेटरों – विजय मर्चेंट, विजय हजारे और वीनू मांकड़ को बुलाया – ये तीनों मांस खाना तो दूर अंडे तक को हाथ न लगाते थे. यह आर्लट के परिवार के लिए ख़ासी बड़ी उलझन का सबब बना.


यह इस घटना का परिणाम रहा हो या और कुछ, जल्द ही आर्लत भोजन की जटिलताओं को लेकर बेहद संजीदा हो गए और साथ ही समूचे इंग्लैण्ड में वाइन के बड़े और नामचीन्ह विशेषज्ञ के तौर पर स्थापित हुए. उनके घर पर खाने की मेज़ पर एक से एक लज़ीज़ व्यंजनों के साथ ही वाइन्स का अनूठा और ख़ास संग्रह परोसा जाने लगा – डेनिस कोम्पटन से लेकर इयान बोथम तक तमाम क्रिकेटर्स आर्लट परिवार के नियमित मेहमान बनते रहे, जिनमें से ज़्यादातर अक्सर अपने आप को खुद ही उनके घर निमंत्रित कर लिया करते थे. 

और वाइन दरअसल उनके व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा ही बनती चली गयी. न केवल इस विषय पर उन्होंने कई बेस्टसेलर्स लिखे - वे जहां भी जाते उनके ब्रीफकेस में एक शानदार क्लैरेट की बोतल और वाइन पीने के गिलास हुआ करते थे. मित्रों का मनोरंजन करने को हमेशा तत्पर रहते थे आर्लट.

संसार की श्रेष्ठतम वाइन्स के साथ लगातार बहने वाले इस शख्स की कमेंट्री अलबत्ता अपनी श्रेष्टता की ऊंचाइयों से कभी नहीं उतरी. उनके भीतर का कवि जब तब उनकी कमेंट्री में कुछ ऐसे नगीने जड़ता रहा जिसने कई पीढ़ियों के श्रोताओं के दिलों क अपने शानदार ह्यूमर और विट से गुदगुदाया.

(जारी)

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