Wednesday, January 28, 2015

लक्ष्मण के कौव्वे

१९८८-८९ के दौरान आर. के. लक्ष्मण ने कौव्वों के स्केचेज़ की अपनी प्रदर्शनी लगाई थी. बचपन से ही कौव्वों के उन्होंने बहुत सारे चित्र बनाए थे. इस मौके पर जब उनसे कौव्वों की बाबत पूछा गया तो उन्होंने जो कहा उसका सार पेश करता हूँ –


बताइये और कौन से पक्षी हैं हमारे मुल्क में? कौव्वों को देखने को आपने कहीं खोजने नहीं जाना होता. वे कहीं से आते हैं और मेरी खिड़की पर बैठ जाते हैं. इतने सुन्दर होते हैं वे. वे किसी भी और पक्षी से ज़्यादा बुद्धिमान होते हैं. तोते मुझे नापसंद हैं. और मोर तो कतई नहीं – उनके रंग कुछ ज़्यादा ही भड़कीले होते हैं. जहाँ तक और दिलचस्प और एग्ज़ोटिक पक्षियों का सवाल है आपको उनकी तलाश में निकलना पड़ता है जैसे सालिम अली या ज़फ़र फ़तेह अली निकले थे. उतना समय नहीं है मेरे पास. घरेलू गौरैया दिलचस्प होती है लेकिन उसका रंग अपने बैकग्राउंड में घुल सा जाता है.

लेकिन किसी भी किस्म के बैकग्राउंड में एक ही पक्षी उभर कर सामने आता है – कौव्वा. नीला आसमान हो, बादलों भरा आसमान हो या हरी पत्तियाँ-पेड़ वगैरह हों – कोई भी बैकग्राउंड. वह चपल होता है और उसके मूवमेंट्स में एक निरंतरता होती है. एक अमेरिकी प्रयोग में दिखाया गया था कि अगर आप एक कौवे के आगे सात चीज़ें रखें और फिर उनमें से एक को हटा दें तो वह हटा दी गयी चीज़ को खोजने लगता है. स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट में एक और प्रयोग किया गया. काजू-बादाम से भरा एक कटोरा एक मेज़ पर रखा गया. जनाब कौवा भीतर आये और उन्होंने एक दाना निकालकर खाया और बाहर निकल गए. फिर थोड़ी देर बाद एक और दाना खाकर उड़े.  अब इस कटोरे को एक और कटोरे से ढँक दिया गया. ये साहब आये, उन्होंने देखा और इस दूसरी कटोरी को देखकर थोड़ी देर हैरत की और फिर दोनों कटोरों को खिसका कर मेज़ के कोने पर ले गए जब तक कि वे नीचे नहीं गिर गए और भाईसाहब को काजू-बादाम मिल गए. तो ... यह मेरी जानकारी में इकलौता पक्षी है जो सूखी रोटी दिए जाने की सूरत में उसे पानी के निकटतम स्रोत तक ले जाकर उसे भिगोकर खाता है.

मिथकों के हिसाब से यह शनि का वाहन है. इस लिए यह ख़ासा ताकतवर माना जाता है. जब मैंने सबसे पहले कौव्वों के स्केच बनाने शुरू किये थे तो मेरी माँ कहती थीं “यह बहुत शक्तिशाली होते हैं. बनाते रहो. तुम्हारी क़िस्मत ज़रूर चमकाएंगे ये!”

हां, कुछ लोग इन्हें पसंद नहीं करते, जैसे पारसी. वे उन्हें अपशकुन मानते हैं. यही पक्षी था जिसने पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण संभव कराया था. आप को पता है ये बात? वह समुद्र के बीचोबीच से आया और एक पेड़ के ठूंठ पर बैठकर आदेश देने के लहजे में राजा से बोला “यहाँ एक मंदिर बनाओ.”  हमारे पुराणों में न तो गौरैयों का ज़िक्र है, न तोतों का, लेकिन कौव्वे वहां बार-बार आते हैं. यह सब मैंने बाद में पढ़ा. कौव्वों के लिए मेरा आकर्षण अलबत्ता हमेशा से ही उतना ही रहा है. 

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