Monday, February 23, 2015

जैज़ पर नीलाभ - 13


अगर आपको यह पूछना पड़े कि जैज़ क्या है तो आप कभी नहीं जान पायेंगे. 
- लूई आर्मस्ट्रांग


सिडनी बेशेत अगर किंग ऑलिवर के बाग़ी शागिर्द थे, अवसाद और बौद्धिकता की अपनी ही दुनिया में विचरने वाले वादक तो लूई आर्मस्ट्रांग किंग ऑलिवर के उन शिष्यों में थे जिन्होंने जैज़ को दृढ़ता से उसकी जड़ों से जोड़े रखा और उसे लोकप्रियता की नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. बेशेत जैज़ के अन्तर्मुखी साधक थे तो आर्मस्ट्रांग उसके सन्देशवाहक, उसके राजदूत. बेशेत अगर एक मध्यवर्गीय परिवार से आये थे तो लूई आर्मस्ट्रांग ने न्यू और्लीन्ज़ को उसकी तमाम हलचल और ग़लाज़त और हिंसा के साथ देखा था और ऐसे ही माहौल से निकल कर अपार लोकप्रियता और शोहरत के अपने लम्बे जीवन की शुरूआत की थी. अकारण नहीं है कि अपनी कला और शोहरत के लिए किंग ऑलिवर को पूरी कृतज्ञता से याद करते हुए भी आर्मस्ट्रांग अपने बचपन और किशोरावस्था के कड़वे-कसैले अनुभवों को नहीं भूले. "हर बार जब मैं अपनी ट्रम्पेट बजाते हुए आंखें बन्द करता हूं," उन्होंने एक बार कहा था,"मैं अपने प्यारे पुराने न्यू और्लीन्ज़ के दिल में झांकता हूं. उसने मुझे जीने का एक ज़रिया, एक मक़सद दिया."


लुई आर्मस्ट्रांग को किंग ऑलिवर ने सन 1922 में न्यू ऑर्लीन्स से शिकागो बुला कर अपने बैण्ड में जगह दी थी और अगले कई वर्षों तक ये दोनों संगीतकार क्रियोल जैज़ बैण्ड में एक-दूसरे के पूरक बने रहे. किंग ऑलिवर और लुई आर्मस्ट्रांग के बीच जो घनिष्टता थी, वह उनके हर रिकॉर्ड में झलकती है. सारी ज़िन्दगी लुई आर्मस्ट्रांग किंग ऑलिवर को अग्रज-समान मानते रहे और उनकी कला, उदारता और शिक्षा को याद करते रहे और पूरी विनम्रता के साथ यह स्वीकार करते रहे कि उनकी सारी सफलता का श्रेय अगर किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है तो किंग ऑलिवर ही वह व्यक्ति हैं.


जैज़ संगीत के सामूहिक शिरकत वाले मूल तत्व को बरकरार रखते हुए किंग ऑलिवर और उनका क्रियोल जैज़ बैण्ड, दल के विभिन्न वादकों के व्यक्तिगत कौशल की बजाय मिले-जुले, कहा जाय कि सहयोगी, प्रयास पर ज़ोर देता था. लेकिन जैसे-जैसे समय गुज़रता गया, लुई आर्मस्ट्रांग ने धीरे-धीरे अपनी शैली विकसित करनी शुरू कर दी. उस ज़माने के रिकॉर्ड सुनें तो इस बात का स्पष्ट आभास हो जाता है कि लुई आर्मस्ट्रांग का कॉर्नेट, बैण्ड में शामिल अन्य वाद्यों की तुलना में अधिक मुखरहै. 




(किंग ओलिवेर्स क्रियोल जैज़ बैंड और लूई आर्मस्ट्रांग - जस्ट गॉन)

बाद में भी जब लुई आर्मस्ट्रांग किंग ऑलिवर के बैण्ड से बाहर आ कर अपेक्षाकृत बड़े बैण्डों में शामिल हो गये थे, तब भी हम यही पाते हैं कि सारा रिकॉर्ड एक तरह से उन्हीं के इर्द-गिर्द केन्द्रित है. 1920 के ही दशक में आगे चल कर जब लुई आर्मस्ट्रांग ने हॉट फ़ाइवऔर हॉट सेवेनजैसी मण्डलियों में संगत की और रिकॉर्ड तैयार किये तो हालाँकि वहाँ न्यू ऑर्लीन्स घरानेकी परम्परा में ट्रम्पेट, ट्रॉम्बोन और क्लैरिनेट की कतार मौजूद थी, मगर लुई आर्मस्ट्रांग को लगातार अधिक ज़ोरदारी के साथ कॉर्नेट बजाते और पूरे दल पर हावी होते सुना जा सकता है.



(लूई आर्मस्ट्रांग - वेस्ट एंड ब्लूज़ - शिकागो - २८ जून १९२८)

सवाल इसमें अच्छाई-बुराई का नहीं था, बल्कि एक विलक्षण प्रतिभा के अपने निजी और अनोखे व्यक्तित्व का था और फिर तीस के दशक में जब और भी बड़े दलों के साथ लुई आर्मस्ट्रांग ने अपने प्रारम्भिक चरण के कुछ अविस्मरणीय रिकॉर्ड तैयार किये - जिनमें वे ट्रम्पेट बजाने के साथ-साथ गाते भी थे - मिसाल के तौर पर उनका प्रसिद्ध रिकॉर्ड आई काण्ट गिव यू एनीथिंग बट लव’ (मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता अपनी मुहब्बत के सिवा) सुनें तो हम पाते हैं कि सारा रिकॉर्ड आर्मस्ट्रांग के ट्रम्पेट वादन और आर्मस्ट्रांग द्वारा ही संगत में गायी गयी गीत की पँक्तियों पर केन्द्रित है. आर्मस्ट्रांग के इस "गाने" में मज़े की बात यह थी कि वे कई बार गीत के शब्दों को छोड़ कर "स्कैट शैली" अपनाते, यानी शुद्ध अक्षरों और व्यंजनों पर चले आते और उनकी करख़्त खरखराती आवाज़ में ये अर्थहीन ध्वनियां ट्रम्पेट के स्वरों की पूरक बन जातीं.
 
इसी प्रकार के एकल रिकॉर्डों के बल पर लुई आर्मस्ट्रांग ने अलगे दस-पन्द्रह वर्षों तक जैज़ की शैली निर्धारित कर दी. उस समय के लगभग सभी ट्रम्पेट-वादकों पर तो उनका असर पड़ा ही, अन्य वाद्यों के फ़नकार भी उनके प्रभाव से अछूते नहीं रहे. यहाँ तक कि लुई आर्मस्ट्रांग द्वारा अदा किये गये अनेक टुकड़ेआज भी जैज़ की बहुत-सी रचनाओं में सुने जा सकते हैं.



(लूई आर्मस्ट्रांग हॉट सेवेन - वाइल्ड मैन ब्लूज़ - १९२७)

हालांकि किंग ऑलिवर के साथ लूई आर्मस्ट्रांग का एक ख़ास रिश्ता था, मगर धीरे-धीरे न्यू और्लीन्ज़ और मिसिसिपी नदी के सफ़र उनकी प्रतिभा के लिए कमतर साबित होने लगे. तब तक शिकागो जैज़ संगीत की दुनिया में एक केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आ चुका था और इस बीच आर्मस्ट्रांग किंग ऑलिवर के बैंड में पियानो बजाने वाले लिलियन हार्डिन के शरीक-ए-हयात बन चुके थे. नये क्षितिजों की खोज दोनों को पहले शिकागो और फिर लौज़ ऐन्जिलीज़ ले गयी जहां फ़िल्मों की रुपहली दुनिया में एक अलग ही आकर्षण था. 1943 में न्यू यौर्क में मुस्तक़िल तौर पर आ बसने से पहले आर्मस्ट्रांग इन्हीं केन्द्रों में अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे, साथ ही लम्बे-लम्बे दौरों पर भी जाते रहे. 


मंच पर अपने ट्रम्पेट-वादन के अलावा अपनी करिश्माई मौजूदगी के लिए विख्यात  लूई आर्मस्ट्रांग उन पहले-पहले अफ़्रीकी-अमरीकी लोकप्रिय संगीतकारों में थे जो "पार उतरे" थे, यानी जिन्होंने रंग और नस्ल की सारी बन्दिशें पार करके एक सच्ची अखिल अमरीकी ख्याति और हरदिल-अज़ीज़ी हासिल की थी. वे बिरले ही रंग और नस्ल की राजनीति में मुखर हिस्सा लेते, जिसकी वजह से उन्हें कलाकारों की बिरादरी की आलोचना का निशाना भी बनना पड़ता, मगर अपने ढंग से वे दृढ़ता से रंग और नस्ल के आधार पर किये जाने वाले भेद-भाव का विरोध करते और अपने विनम्र अन्दाज़ में भेद-भाव के समर्थकों को जवाब भी देते जैसा कि कई बहु-प्रचारित अवसरों पर देखा भी गया. इसीलिए जब कुछेक मौक़ों पर उन्होंने ज़बान खोली तो वह और भी असरन्दाज़ बन गया, मसलन जब उन्होंने स्कूली बच्चों को रंग और नस्ल के आधार पर अलग-अलग स्कूलों में भेजे जाने की व्यवस्था के ख़िलाफ़ आन्दोलन में हिस्सा लेते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति आइज़नहावर को "दोमुंहा" और "साहसहीन" कहा था, जो बयान राष्ट्रीय खबरों में छाया रहा था. फिर जैसे इतना ही काफ़ी नहीं था लूई आर्मस्ट्रांग ने अमरीकी विदेश मन्त्रालय द्वारा प्रायोजित सोवियत संघ के एक दौरे पर यह कहते हुए जाने से इनकार कर दिया था कि,"जिस तरह वे मेरे लोगों के साथ दक्षिण में बरताव कर रहे हैं, सरकार जाये भाड़ में" और यह कि वे विदेश में अपनी सरकार की नुमाइन्दगी नहीं कर सकते जब उसने  अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ रखी हो. यह भी क़ाबिल-ए-ज़िक्र है कि लूई आर्मस्ट्रांग के बयान के छै दिन बाद राष्ट्रपति आइज़नहावर ने केन्द्रीय पुलिस बल को आदेश दिया था कि लिटल रौक के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश कराने के लिए सिपाही उनके साथ जायें. सारी उमर वे अपनी किशोरावस्था के सरपरस्त यहूदी कौर्नोव्स्की परिवार के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए यहूदियों की ख़ास निशानी "डेविड का सितारा" अपने कोट पर तमग़े की तरह लगा कर मंच पर आते. 

यह तो उनकी कला और व्यक्तित्व ही था कि उन्हें सामाजिक रूप से उन तबकों में भी न्योता जाने लगा जो किसी काले आदमी के लिए प्रतिबन्धित क्षेत्र का दर्जा रखते थे. आर्मस्ट्रांग की ख़ूबी थी कौर्नेट और ट्रम्पेट पर उनकी असाधारण पकड़. वे कोई प्रचलित धुन बजाना शुरू करते और फिर सहसा छलांग लगा कर उसके कुछ ऐसे पहलू उजागर कर देते जिन पर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था. वे उन पहले-पहले संगीतकारों में थे जिन्होंने अपने वादन की रिकौर्डिंग को अपने ही प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल किया. अपने ख़ाली समय में उनका रियाज़ भी अनोखा था. वे अपनी रिकौर्डिंग सुनते-सुनते साथ-साथ बजाने लगते और इसके अलावा एक ही धुन की दो अलग-अलग रिकौर्डिंगों का मुक़ाबला करके अपनी तकनीक को सुधारते. यही वजह है कि १९६४ में जब बीटल्स की तूती बोल रही थी और आर्मस्ट्रांग की उमर ६३ साल के हो चली थी, उनके "हेलो डौली" शीर्षक रिकौर्ड ने बीटल्स के रिकौर्ड को लोकप्रिय गानों की बिलबोर्ड सूची के प्रथम स्थान से हटा कर वहां अपना झण्डा गाड़ दिया था. इससे वे अव्वल नम्बर पर आने वाले अमरीका के सबसे उमरदार संगीतकार बन गये.  



(लुई आर्मस्ट्रांग - हेलो डौली")

अगर लुई आर्मस्ट्रांग की शैली मुखरथी, संगीतकार के निजी कौशल और प्रतिभा की महत्ता स्थापित करने में उनका विश्वास था तो उन्हीं के एक अन्य समकालीन - ड्यूक एलिंग्टन - जैज़ की सामूहिकता को बरकरार रखने और उसे नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने में जुटे हुए थे. मगर ड्यूक एलिंग्टन की चर्चा बाद में.

1930 का दशक एक तरह से जैज़ संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता है, जिसमें एक-से-एक अनोखे एकल वादक सामने आये. जैज़ संगीत का क्षेत्र न्यू ऑर्लीन्स से शिकागो और फिर शिकागो से अमरीका के अन्य भागों में फैलने लगा. इसी युग की उपज थे कोलमैन हॉकिन्स, जिन्होंने औरों को पीछे छोड़ कर जैज़ संगीत में अपनी एक अलग जगह बनायी और जैज़ को उसका असली वाद्य - सैक्सोफ़ोन - उपलब्ध कराया. जैज़ में बैंजो और गिटार से ले कर पियानो, ट्रम्पेट, ट्रॉम्बोन, कॉर्नेट और क्लैरिनेट संगीत-शैली के रूप में निखर कर सामने आ चुका था, लेकिन जैज़ को अब भी एक ऐसे साज़ की तलाश थी, जो उसे पूरी तरह व्यक्त कर सके और इस साज़ को सामने लाये कोलमैन हॉकिन्स. कोलमैन हॉकिन्स ने ही पहले-पहल सैक्सोफ़ोन पर जैज़ की शानदार रचनाएँ प्रस्तुत कीं और आगे आने वाले वादकों के लिए एक नयी राह खोल दी.


(जारी)

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