Sunday, March 8, 2015

आज़ाद चिड़िया सोचती है एक दूसरी बयार के बारे में - माया एन्जेलू की कवितायेँ

४ अप्रैल १९२८ को सेन्ट लुईस, मिसौरी में जन्मी थीं माया एन्जेलू. लेखिका, कवयित्री, इतिहासकार. गीतकार, नाटककार, नृत्यांगना, मंच व फ़िल्म निर्देशिका, अभिनेत्री और जनाधिकार कार्यकत्री हैं. उन्हें सबसे ज़्यादा ख्याति अपनी आत्मकथात्मक पुस्तकों "ऑल गॉड्स चिल्ड्रन नीड शूज़", "द हार्ट ऑफ़ अ वूमन", "सिन्गिंग एंड स्विंगिंग एंड गैटिंग मैरी लाइक क्रिसमस", "गैदर टुगैदर इन माई नेम" और "आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स" से मिली. "आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स" को राष्ट्रीय पुरुस्कार के लिए नामांकित किया गया. उनके कई काव्य संग्रह भी हैं जिनमें से एक को पुलित्ज़र पुरुस्कार के लिए नामित किया गया था.

१९५९ में डॉ. मार्टिन लूथर किंग के आग्रह पर उन्होंने सदर्न क्रिस्चियन लीडरशिप कॉन्फ़्रेन्स का उत्तरी निदेशक बनना स्वीकार किया. १९६१ से १९६२ तक वे मिश्र के काहिरा में द अरब ऑब्ज़र्वर की सह सम्पादिका बनीं, जो उस समय समूचे मध्य पूर्व में इकलौता अंग्रेज़ी साप्ताहिक था. १९६४ से १९६६ तक वे अकरा, घाना में अफ़्रीकन रिव्यू की फ़ीचर सम्पादिका रहीं. १९७४ में वे वापस अमेरिका लौटीं जहां जेरार्ड फ़ोर्ड ने उन्हें द्विशताब्दी कमीशन में नामित किया और उसके बाद जिमी कार्टर ने उन्हें कमीशन फ़ॉर इन्टरनेशनल वूमन ऑफ़ द ईयर में जोड़ा. विन्स्टन सालेम विश्वविद्यालय, नॉर्थ कैरोलाइना में उन्होंने प्रोफ़ेसर ऑफ़ अमेरिकन स्टडीज़ का आजीवन पद सम्हाला. 

हॉलीवुड की पहली अश्वेत महिला प्रोड्यूसर होने के नाते एन्जेलू ने खासा नाम कमाया है. लेकिन वर्तमान संसार उन्हें उनके प्रतिबद्ध काव्यकर्म के लिए जानता है और सलाम करता है. 

माया एन्जेलू (४अप्रैल १९२८ - २८ मई २०१४)

असाधारण स्त्री


-माया एन्जेलू

ख़ूबसूरत स्त्रियां हैरत करती हैं कहां है मेरा रहस्य.
न तो मैं आकर्षक हूं न मेरी देहयष्टि किसी फ़ैशन मॉडल जैसी 
लेकिन जब मैं उन्हें बताना शुरू करती हूं
वे सोचती हैं मैं झूठ बोल रही हूं. 
मैं कहती हूं
कि यह मेरी बांहों की पहुंच में है
मेरे नितम्बों के पसराव में
मेरे मुड़े हुए होंठों में 
कि मैं एक स्त्री हूं
असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

मैं एक कमरे में प्रवेश करती हूं
ऐसे अन्दाज़ से जैसे आप चाहें
एक आदमी की तरफ़
जिसके गिर्द लोग होते हैं 
या घुटनों के बल उसके सामने.
तब वे मेरे चारों तरफ़ इकठ्ठा हो जाते हैं
जैसे मधुमक्खियों का कोई छत्ता होऊं मैं.
मैं कहती हूं
यह मेरी आंखों की लपट में
मेरी कमर की लचक में 
और मेरे पैरों की प्रसन्नता में है 
कि मैं एक स्त्री हूं
असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

ख़ुद आदमियों को अचरज होता है
उन्हें क्या दीखता है मुझमें
वे इतनी मशक्कत करते हैं
पर वे नहीं छू सकते
मेरे भीतरी रहस्य को.
जब मैं दिखाने की कोशिश करती हूं
वे कहते हैं वे अब भी मुझे नहीं देख सकते
मैं कहती हूं
यह मेरी पीठ की चाप में है
मेरी मुस्कान के सूर्य में है
मेरे स्तनों की सैर में है
मेरी अदा की गरिमा में है.
मैं एक स्त्री हूं.

असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

अब तुम समझ रहे हो
क्यों मेरा सिर झुका हुआ नहीं है
मैं चिल्लाती नहीं उछल कूद नहीं मचाती
न मुझे बहुत ज़ोर से बोलना होता है.
जब आप मुझे गुज़रता हुआ देखें
इसने आपको भर देना चाहिए गर्व से.
मैं कहती हूं
यह मेरी एड़ियों की खटखट में है
मेरे केशों के मुड़ाव में है
मेरी हथेली में है
परवाह किए जाने की मेरी ज़रूरत में है
क्योंकि मैं एक स्त्री हूं
असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

मैं तब भी उठूंगी

तुम चाहो तो दर्ज़ कर सकते हो मुझे
अपने कड़वे मुड़ेतुड़े झूठों से
तुम रौंद सकते हो हरेक धूल में मुझे 
लेकिन तो भी मैं उठूंगी मिट्टी में से

क्या मेरा ढीठपन तुम्हें परेशान करता है?
इतने उदास क्यों दिखते हो तुम?
क्योंकि मैं इस तरह चलती हूं जैसे
मेरे ड्राइंगरुम में तेल के कुंए उलीचे जा रहे हैं.

ठीक चन्द्रमाओं और सूर्यों की तरह
किसी ज्वार की निश्चितता के साथ
ठीक ऊंची बल खाती उम्मीदों की तरह
मै तब भी उठूंगी

क्या तुम मुझे टूटा हुआ देखना चाहते थे?
झुका हुआ सिर और ढुलकी आंखें?
आंसुओं की तरह गिरे हुर मेरे कन्धे
मेरे आर्तनाद से कमज़ोर

क्या मेरा अहंकार तुम्हें पसन्द नहीं आता?
क्या तुम्हें भयावह नहीं लगता 
जब मैं यूं हंसती हूं जैसे
मेरे घर के पिछवाड़े सोने की खदानें खोदी जा रही हों.

तुम अपने शब्दों से मुझे गोली मार सकते हो
तुम काट सकते हो मुझे अपनी निगाहों से
तुम अपनी नफ़रत से मेरी हत्या कर सकते हो
लेकिन तब भी, मैं उठूंगी हवा की मानिन्द

क्या मेरा उत्तेजक रूप तुम्हें तंग करता है?
क्या यह तुम्हें अचरज में नहीं डालता
कि मैं यूं नाचती हूं जैसे मेरी जांघों के जोड़ पर हीरे लगे हुए हों?

इतिहास की झोपड़ियों की शर्म से उठती हूं मैं
दर्द में जड़े बीते समय से उठती हूं मैं
मैं हलकोरें मारता एक चौड़ा काला समुद्र हूं,
फूलती हुई मैं सम्हालती हूं ज्वार को
आतंक की रातों और भय को पीछे छोड़कर मैं उठती हूं
एक भोर के प्रस्फुटन में जो आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट है
मैं उठती हूं
उन तोहफ़ों के साथ जो मेरे पूर्वजों ने मुझे दिए
मैं ग़ुलाम का सपना और उसकी उम्मीद हूं.
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं.

अस्वीकार

प्यारे,
किन दूसरी ज़िन्दगानियों और संसारों में
मैंने जाना है तुम्हारे होंठों को
तुम्हारे हाथ
तुम्हरी बहादुर 
धृष्टतापूर्ण हंसी.
वे मिठासभरे प्राचुर्य
जिन्हें कितना लाड़ करती हूं मैं.
अभी क्या निश्चित है 
कि हम दोबारा मिल सकेंगे.
किन्हीं दूसरे संसारों में 
किसी बेतारीख़ मुस्तकबिल में.
मैं अपनी देह की जल्दबाज़ी को नज़र अन्दाज़ करती हूं.
एक और मीठी मुलाकात के 
बिना किसी वायदे के
मैं अहसान नहीं करूंगी मरने का.

जब तुम आते हो

जब तुम आते हो बिन बुलाए
पास बुलाते हुए मुझे
सुदूर कमरों में
जहां स्मृतियां निवास करती हैं

पेश करते हुए मुझे एक दुछत्ती, जैसे मैं कोई बच्ची होऊं
बहुत कम दिनों की बटोरी हुई चीज़ें
चुराए गए चुम्बनों के खिलौने
उधार के प्रेमों के सस्ते आभूषण
गुप्त शब्दों के सन्दूक.

मैं रोया करती हूं.

समय का बीतना 

भोर जैसी तुम्हारी त्वचा
मेरी जैसे कस्तूरी

एक रंगना शुरू करता है
एक सुनिश्चित अन्त की शुरुआत

दूसरा शुरू करता है
एक सुनिश्चित शुरुआत का अन्त.


मैं जानती हूं क्यों गाती है पिंजरे में बन्द चिड़िया

एक आज़ाद चिड़िया फुदकती है 
हवा की पीठ पर और तैरती जाती है धारा के साथ
जब तक कि धारा ख़त्म नहीं हो जाती. तब वह डुबोती है अपने पंखों को
सूरज की नारंगी किरणों में
और आसमान को अपना बताने की हिम्मत करती है.

लेकिन एक चिड़िया जो अकड़ती हुई चलती है अपने संकरे पिंजरे में
बमुश्किल देख पाती है गुस्से की सलाखों के पार
उसके पंख छांट दिए गए हैं और पांव बंधे हैं
सो वह गाने के लिए खोलती है अपना गला.

पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है एक भयावह थरथराहट के साथ
उन चीज़ों के बारे में जो अजानी हैं लेकिन अब भी जिनकी लालसा की जा सकती है
और उसकी लय सुनाई देती है सुदूर पहाड़ी में क्योंकि
पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है आज़ादी का गीत.

आज़ाद चिड़िया सोचती है एक दूसरी बयार के बारे में
और मुलायम रिवायती हवा
बहती है उसांसे भरते पेड़ों से होकर
और एक चमकीली भोर में घासदार मैदान पर 
इन्तज़ार करता है मुटाया कीड़ा और दावा करता है कि आसमान उसका है

लेकिन पिंजरे में बन्द चिड़िया खड़ी रहती है स्वप्नों की कब्रगाह पर
उसकी परछाईं चीखती है एक दुःस्वप्न में 
उसके पंख छांट दिए गए हैं और पांव बंधे हैं
सो वह गाने के लिए खोलती है अपना गला.

पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है एक भयावह थरथराहट के साथ
उन चीज़ों के बारे में जो अजानी हैं लेकिन अब भी जिनकी लालसा की जा सकती है
और उसकी लय सुनाई देती है सुदूर पहाड़ी में क्योंकि
पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है आज़ादी का गीत.

काम करती है औरत 

मुझे बच्चों की देखभाल करनी है
कपड़ों की मरम्मत करनी है
फ़र्श पर पोंछा लगाना है
खाने की शॉपिंग करनी है
तब चिकन फ़्राई करना है
शिशु को सुखाना है
सब को खाना खिलाना है
बगीचे से झाड़ झंखाड़ उखाड़ने हैं
कमीज़ों में इस्तरी करना है
बच्चों को कपड़े पहनाने हैं
कैन को काटा जाना है
मुझे इस झोपड़ी की सफ़ाई करनी है
तब बीमारों को देखना है
और कपास तोड़कर लानी है.

मुझ पर चमको, धूप
बारिश, बरसो मुझ पर
हौले से गिरो ओस की बूंदो
और फ़िर से ठण्डक पहुंचाओ मेरी बरौनियों को

तूफ़ान, मुझे यहां से कहीं उड़ा ले चलो
अपनी सबसे ख़ौफ़नाक हवा के साथ
तैरने दो मुझे आसमान के आरपार
जब तक कि मैं आराम कर सकूं

धीरे गिरो, बर्फ़ के फ़ाहो
मुझे ढंक दो सफ़ेदी से
ठण्डे बर्फ़ीले चुम्बन
और आज की रात आराम करने दो मुझे

सूरज, बारिश, ढलवां आसमान
पहाड़, समुद्रो, पत्तियो, पत्थरो,
तारों की रोशनी, चांद की आभा
बस तुम्हीं हो जिन्हें अपना कह सकती हूं मैं.

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