Monday, August 3, 2015

उन इलाकों की हिफाज़त में ख़र्च हुए हम - "ठुल्ले" की कविता

फ़ोटो http://news.xinhuanet.com/ से साभार

वे साधारण सिपाही जो कानून और व्यवस्था में काम आए

-संजय चतुर्वेदी

शायद कुछ सपनों के लिए
शायद कुछ मूल्यों के लिए
कुछकुछ देश
कुछकुछ संसार
लेकिन ज़्यादातर अपने अभागे परिवारों के भरणपोषण के लिए
हमने दूर-दराज़ रात-बिरात
बिना किसी व्यक्तिगत प्रयोजन के
अनजानी जगहों पर अपनी जानें लगाई
जानें गंवाई

हम कानून और व्यवस्था की रक्षा में काम आए
लेकिन हमारे बलिदान को आंकना
और उस बलिदान के सारे पहलुओं को समझना
एक आस्थाहीन और अराजक कर देने वाला अनुभव रहेगा

जो अपने कारनामों के दम पर
इस मुल्क की सड़कों पर चलने का हक़ भी खो चुके थे
हमें उनकी सुरक्षा में अपनी तमाम नींदें
और तमाम ज़िन्दगी ख़राब करनी पड़ी
उन्माद और साम्प्रदायिकता का ज़हर और कहर
सबसे पहले और सबसे लम्बे समय तक हम पर गिरा
हम उन इलाकों की हिफाज़त में ख़र्च हुए
जहां हमारे बच्चों का भविष्य चुराकर
काला धन इकठ्ठा करने वालों के बदआमोज़ लड़के-लड़कियां
शिकार करें और हनीमून मनाएं
या उन विवादास्पद संस्थाओं की सुरक्षा में
जहां अन्तर्राष्ट्रीय सरमाए के कलादलाल
हमारी कीमत पर अपनी कमाऊ क्रांतियां सिद्ध करें

हमें बंधक बनाया गया
या शायद हम जब तक जिये बंधक बनकर ही जिये
लेकिन हमारे सगे-संबंधी इतने साधन सम्पन्न नहीं थे
कि राजधानी में दबाव डाल सकते
और उन्होंने हमारे बदले किसी को रिहा कर देने के लिए
छातियां नहीं पीटीं
हम यातना सहते हुए ही मरे
लेकिन हमारे बीवी-बच्चे जो आज भी बदहाल हैं
हवाई जहाज़ पर उड़ने वाले नहीं थे
इसलिए न उन्हें पचास हज़ार डालर मिले
न फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन के मौसेरे पुरस्कार

और यह हम तमाम गीतों और प्रार्थनाओं के बीच कह रहे हैं
कि हमारे अपने अफसरों नें
जिन्हें ख़ुद एक सिपाही होना था
हमें अपने घर झाड़ुओं की तरह इस्तेमाल किया
और यह भी हम तमाम गीतों और प्रार्थनाओं के बीच कह रहे हैं
कि कोई उल्लू का पट्ठा इतना अच्छा होगा
जो अपनी आंखों
और अपने दिमाग़ के सारे सितारों के साथ हमें बताए
कि अपने बीवी-बच्चों के साथ
जिस तरह की ज़िन्दगी जिए हम
वह क्या किसी देशी-विदेशी महापरिषद में
कभी कोई महत्वपूर्ण एजेंडा रही

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नोट: जनसत्ता में वर्ष 2000 में छपी संजय जी की इस कविता को पढ़ते हुए देश के एक नव-महामना की ज़बान की एक यह बानगी भी देखी ही जानी चाहिए - 

3 comments:

Rahul Gaur said...

Ashok Ji
Request again to kindly advise how and where from can I lay my hands upon poetry collection of Sanjay Ji Chaturvedi.
Regards

Ashok Pande said...

राहुल जी

आपके majhdhaar@rediffmail.com वाले पते पर मेल कर दिया है.

Ashok Pande said...

अरे वह मेल तो वापस आ गया राहुल जी

कृपया मुझे ashokpande29@gmail.com पर मेल भेजिए.