30 अक्टूबर 1946 को इलाहाबाद में जन्मे विनोद कुमार श्रीवास्तव की यह रचना मुझे मेरे अग्रज-मित्र आशुतोष बरनवाल ने कबाड़खाने में प्रकाशन हेतु भेजी है. 1972 में भारतीय राजस्व सेवा में भरती हुए विनोद जी ने कविता और कहानी और अन्य विधाओं में लगातार रचनाएं की हैं. वे समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. फिलहाल अवकाशप्राप्ति के बाद वे मुम्बई में रहते हैं.
फ़ोटो http://ri-ir.org/ से साभार |
इस विकासशील देश की इस वेला में
-विनोद कुमार श्रीवास्तव
जैसे हम जान गए
कि हमारा राष्ट्रीय पक्षी मोर है
पंख नोचे जाने के बावजूद
हम यह भी जान गए हैं
कि हमारा राष्ट्रीय शौक है
एक दूसरे का मुंह नोचना
बातचीत या फिर बहस के नाम पर
फिर भी अगर तुम मान ही बैठे हो
कि अपने इस जनतंत्र मे
बोलने की आजादी है तो
मुंह खोलने से पहले
कुतर्कों का अपना खजाना दिखाओ
तर्कों का सुर बहुत मद्धिम होता है
खासकर अच्छे दिनो की हवा
और ढोल बाजे मे
बोलने की कूवत जुटा भी लो
तो फिर
जाति की समस्या पर बोलने से पहले
बताओ तुम अपनी जाति
रंग या धर्म पर बोलने से पहले
बताओ तुम अपने
रंग और धर्म के बारे मे
स्त्री या पुरुष की समस्या पर
बोलने से पहले
अपना लिंग बताओ
इसी तरह
समलैंगिकों के बारे मे
अमीरी और गरीबी के बारे मे
बोलने से पहले
अपनी आय बताओ
इसी तरह
राजनीति के बारे मे
या फिर चलो
किसी भी विषय पर
कुछ भी कहने से पहले
वह जगह दिखाओ
जहां तुम
नहीं बना दिये गए
थोड़े भी संदिग्ध
1 comment:
प्राथमिक जाँच में निर्दोष पाए गए दिवंगत रोहित के ऊपर अब मोटे तौर पर दो और आरोप हैं उसने बीफ पार्टी की और आतंकी याकूब का समर्थन किया इसीलिए उसकी आत्महत्या उचित, स्वागत योग्य और सराहनीय है.
जिस मारपीट के आरोप में उसे होस्टल से निकाल फेंका उससे हटकर लगाए ये दो आरोप उसका केरेक्टर अससिनेशन है. इनका उसकी सजा से कोई लेना देना नहीं है.
क्या बीफ पार्टी अपराध है या असंवैधानिक है ? विवेकानंद ने हिन्दू समाज में बीफ खाने की प्रथा को सही बताया तो क्या वो भी आत्महत्या करके ऐसा ही अपयश पाते या देश के लाखों हिन्दू जो बीफ खाते हैं वो ऐसे अंत के योग्य हैं ?
याकूब को सपोर्ट और फांसी का विरोध दो अलग बातें है
लगभग सारे देश में तब ये प्रश्न था की उसे फांसी नहीं आजीवन कारावास मिलना चाहिए था , मतलब सारा देश एंटी नेशनल हो गया ? किस संविधान में लिखा है की फांसी का विरोध एंटी-नेशनल है ?
फिर तो फांसी का विरोध करने वाले अब्दुल कलाम और सरकारी संस्था ला-कमीशन भी एंटीनेशनल हुए ?
खलिस्तानी आतंकवादी राजौना और भुल्लर का समर्थन करने वाले भाजपाई और अकाली दल भी एंटी नेशनल हुए ?
राजीव के २६ हत्यारों को दी फांसी का चेन्नई में भारी विरोध किया तो कोर्ट ने ४ को फांसी और बाकी को कारावास दिया . जुलाई १५ को सरकार की अर्जी पर फांसी को कारावास में बदल दिया गया
फिर क्या कारण है याकूब की फांसी का विरोध करने पर अम्बेडकरवादी छात्र को एक केन्द्रीय मंत्री राष्ट्रद्रोही घोषित कर देता है और देश का शिक्षा विभाग उसे हफ़्तों उसके ही होस्टल के सामने सड़क पर सोने मजबूर कर देता है ?
"वो आतंकवादी था" , "नक्सली था" , "देश द्रोही , जातिवादी और "गुण्डा था" , इन सब राजनितिक बयानबाज़ी से ऊपर उठकर हमें इस जातिवादी व्यवस्था का विरोध करना होगा मिलकर दोषियों को सजा दिलानी होगी .
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