Friday, October 5, 2007
पीले दैत्य का नगर : अन्तिम भाग
फीका पड़ता हुआ दिन धुंए के बादलों वाले आकाश में धुंधला जाता है। बड़े बड़े मकान और भी उदास और विशाल हो जाते हैं। उनकी काली गहराइयों में जहां तहां रोशनी टिमटिमाती हैः किसी अजनबी पशु की¸ जिसे इन कब्रों में रखी गई मृत संपत्ति का रात भर पहरा देना है¸ पीली आंखों जैसी चमकती। लोग दिन का काम कर चुके हैं - और बिना यह सोचे कि वह क्यों किया गया या कि उसका कोई मतलब था या नहीं - वे अपने घर अपने बिस्तरों पर लौटते हैं। फुटपाथों पर मानवीय बाढ़ की काली धारा है। सारे सिर उन्हीं गोल हैटों से ढंके हुए हैं¸ और सारे दिमाग - जैसा उनकी आंखों से पता चलता है - अभी से सो गए हैं।
काम किया जा चुका है और सोचने के लिए कुछ नहीं बचा है। उनके बारे में सोचने का काम उनके मालिकों का है। उन्हें क्या सोचना है? अगर काम है तो रोटी होगी और जीवन के सस्ते मनोरंजन भी होंगे जिनके परे पीले दैत्य के इस नगर में आदमी को कुछ और नहीं चाहिए। लोग अपने बिस्तरों तक जाते हैं¸ अपनी औरतों तक जाते हैं¸ अपने पुरुषों तक जाते हैं और रातों को उन घुटनभरे कमरों में प्रेम करते हैं ताकि शहर के लिए ताजा भोजन पैदा किया जा सके …। वे बस जाते हैं। कहीं कोई हंसी नहीं सुनाई देती न कोई मजाक : प्रसन्न मुस्कराहटें यहां नहीं चमकतीं।
मोटरगाड़ियां चीखती हैं चाबुक चलता जाता है बिजली के तार गुनगुनाते रहते हैं रेलगाड़ियां खड़खड़ाती जाती हैं। निस्संदेह कहीं न कहीं संगीत भी बजाया जा रहा होगा।
अखबार बेचने वाले लड़के अखबारों के नाम चिल्लाते हैं। इस रेलमपेल की दयनीय आवाज और किसी की चीख हत्यारे के ट्रैजीकामिक आलिंगन और मसखरे के मजाक में घुलती जाती है। छोटे छोटे लोग बेमन चलते जाते हैं किसी पहाड़ी की ढलान पर लुढ़कते पत्थरों जैसे …। और भी रोशनियां चमकने लगती हैं। पूरी की पूरी दीवारों पर बीयर व्हिस्की साबुन नए रेजर सिगार और शोज़ के बारे में लिखे शब्द दमकते हैं। सोने की अतृप्त पुकार कभी नहीं रुकतीः सड़कों पर लोहा लगातार खड़खड़ाता जाता है। अब जबकि हर जगह रोशनी है इस न थमने वाली चिंघाड़ का महत्व बढ़ जाता है और उसके भीतर नए मानी पैदा हो जाते हैं: वह एक और भी नई और दमनकारी ताकत में बदल जाती है।पिघले सोने की चौंधिया देने वाली दमक घरों¸ दुकानों के बोर्डों और रेस्त्राओं से लगातार उड़ेली जाती है। अपमानित करती और ढीठ यह चमक हर जगह जीतती है : अपनी ठण्डी दमक से आंखों को चुंधियाती¸ चेहरों को कुरूप बनाती। यह दुष्ट चमक अपने भीतर एक विकट वासना लिए होती है और साधारण लोगों की जेबों से उनकी कमाई को अपने भीतर लेना चाहती है। इस वासना को वह आंख मारते शब्दों में अभिव्यक्त करती हुई कामगारों को सस्ते मनोरंजन और छोटी छोटी चीजें खरीदने का लालच देती है …।
इस शहर में रोशनी की भयानक प्रचुरता है। शुरू में वह आकर्षक लगती हैः उत्तेजित करती है और खुश भी। रोशनी एक मुक्त तत्व है¸ सूर्य की गवीर्ली संतान। जब वह अपने निखार पर आती है वह दुनिया के किसी भी फूल से सुन्दर होती है और सारी थकी हुई¸ मर चुकी और गलत चीजों का विनाश कर सकती है।लेकिन यहां इस शहर में कांच के कटघरों में कैद रोशनी को देखते ही आप समझ जाते हैं कि बाकी चीजों की तरह रोशनी भी यहां गुलाम बना दी गई है। यह सोने की नौकरी करती है सोने के लिए है और लोगों के प्रति दुश्मनी की हद तक बेजार है …।
लोहा¸ पत्थर¸ लकड़ी - हरेक चीज की तरह रोशनी भी मनुष्य के खिलाफ षडयंत्र में शामिल है; उसे चौंधियाती हुई वह उस से कहती हैः “यहां आओ!” वह उसकी चापलूसी करती हुई कहती हैः “अपनी रकम मेरे हवाले करो!”लोग उसका आदेश मानते हैं: वे कूड़ा खरीदते हैं जिसकी उन्हें जरूरत नहीं होती और दिमाग को कुन्द करने वाले शोज़ देखते हैं। ऐसा लगता है मानो शहर के बीचोबीच बेतरह आवाज करता सोने का एक बड़ा टुकड़ा तेज तेज घूमता जाता है और सोने के महीन कण हवा में उड़ते जाते हैं जिन्हें लोग दिन भर तलाशते और दबोचते रहते हैं। लेकिन आखिरकार शाम आ जाती है और सोने का टुकड़ा उल्टा घूमना शुरू कर देता हैः वह एक ठण्डा भंवर चलाना शुरू करता है ताकि लोग दिन में इकठ्ठा किए हुए सोने के कणों को उसे वापस लौटा दें। हमेशा वे उस से ज्यादा लौटाते हैं जितना उन्हें मिला होता है और हर अगली सुबह सोने का टुकड़ा और बड़ा हो चुका होता है। अब वह और जोर से घूमता और उसके गुलाम लोहे की बनी तमाम चीजों का शोर लगातार ऊंचा होता जाता है।फिर और ज्यादा ताकत से वह दिन भर लोगों का खून और दिमाग चूसता है ताकि शाम तक यह खून और दिमाग ठण्डी पीली धातु में बदल जाए।
इस शहर का दिल सोने का एक लौंदा है। इसी की धड़कन में शहर का जीवन है इसी के विकास में जीवन का अर्थ है।यह इस के लिए होता है कि लोग दिन प्रति दिन धरती को खोदते हैं लोहा निकालते हैं घर बनाते हैं फैक्टि्रयों का धुंआ निगलते हैं अपने शरीर के पोरों में प्रदूषित हवा जमा करते हैं; यह इस के लिए है कि वे अपने सुन्दर शरीर बेच देते हैं। यह दुष्ट जादूगरी उनकी आत्माओं को ढीला बना देती है और उन्हें पीले दैत्य के हाथों में एक औजार में तब्दील कर देती है: एक ऐसा खनिज जिसे पिघलाकर वह सोना बनाता जाता है जो उसका खून और उसकी मांस मज्जा है। समुद्र के रेगिस्तान से रात आती है और शहर के ऊपर एक ठण्डी नमकभरी सांस फैला देती है। ठण्डी रोशनी उसे हजारों तीरों से बींधती है; लेकिन वह चलती जाती है और उदारता के साथ संकरी गलियों की भयंकरता और घरों की बदसूरती को अपनी अंधेरी पोशाक पहना देती है। लालचभरे पागलपन की एक चीख उसे मिलती है लेकिन वह चलती जाती है और गुलाम बना दी गई रोशनी की ढीठ चमक को बुझाती जाती है और शहर के संक्रमित घावों पर अपना कोमल हाथ रखती जाती है।लेकिन जब वह गलियों के गड़बड़झाले में पहुंचती है वह अपनी ताजा सांस से शहर की दुर्गंध को हटा पाना नामुमकिन पाती है। वह सूरज द्वारा गरमाई दीवारों से रगड़ खाती चलती है छतों के जंग खाए लोहे और फुटपाथों की गन्दगी पर से गुजरती है लेकिन जहरभरी धूल और शहर की बदबू से अघा कर अपने पंख तहा कर थम जाती है और घरों की सीढ़ियों और गटरों पर बेजान सी पसर जाती है। अब उसका बचा खुचा सिर्फ अंधेरा होता है - उसकी ताजगी जा चुकी होती है उसका ठण्डापन जा चुका होता है : पत्थर¸ लोहा¸ लकड़ी और लोगों के प्रदूषित फेफड़े उन्हें निगल चुके होते हैं। अब उसके भीतर कोई ठहराव नहीं बचा¸ न कोई कविता दमनकारी अंधकार में शहर किसी विशाल पशु की तरह कसमसाता सोता है। उसने दिन भर में ज्यादा खाना खा लिया था सो उसे गर्मी और बेचैनी लगती है। उसकी नींद में दुस्वप्न खलल डाला करते हैं।फड़फड़ाती हुई रोशनी बुझ जाती है : विज्ञापन करते ललचाते उसके सेवकों काम आज के लिए खत्म हो चुका। पत्थर की अपनी आंतों में मकान एक के बाद एक लोगों को निगल लेते हैं। गली के किनारे पर लम्बे कद का एक झुका हुआ आदमी खड़ा है और धीमे से अपना सिर घुमाकर बेजान आंखों से दांए बांए देखता है। कहां जाना होगा उसने? सारी सड़कें एक सी हैं¸ सारे मकान एक से¸ उनकी चमकहीन खिड़कियां एक दूसरे को उसी संवेदनहीनता से देखती हुईं …। अपने गरमाए हाथ से एक दमघोंटू नोस्टैल्जिया गला थाम लेता है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। मकानों की छतों के ऊपर एक धुंधला बादल मंडराता है - इस अभिशप्त शहर की दिन भर की भाप उस में है। कोहरे के इस आवरण के परे आसमान की सुदूर अनन्तता में शान्त सितारों की दबी हुई दिपदिप है। वह आदमी अपना हैट उतारकर सिर उठाता है और आसमान को देखता है। इस शहर के ऊंचे मकानों ने आसमान को धरती से इतना दूर कर दिया है जैसा दुनिया में और कहीं नहीं है। सितारे बस नन्हे अकेले बिन्दु भर हैं।दूर से एक चेतावनीभरी सीटी की आवाज आती है। उस आदमी की लम्बी टांगें झटके से गति में आती हैं और अपना सिर झुकाए अपनी बांहें झुलाता वह एक गली में मुड़ जाता है। काफी देर हो गई है और गलियां और भी वीरान होती जाती हैं। मiक्खयों की तरह नन्हे लोग अंधेरे में गायब होते जाते हैं और अंधेरा उन्हें निगलता जाता है।
हाथ में डंडा लिए पुलिसिए गली के किनारे पर चुपचाप खड़े हैं। वे तम्बाकू चबा रहे हैं और उनके जबड़े धीरे धीरे हिल रहे हैं।वह आदमी उनकी बगल से गुजरता है टेलीफोन के खंभों के पास से होता हुआ अब वह मकानों के काले दरवाजों की भीड़ के सामने है : उनके चौकोर जबड़े नींद में उबासियां ले रहे हैं। दूर कहीं एक टैक्सी चीखती है।
गली के अंधेरे पिंजरों में रात का दम घुटता है¸ रात मर चुकी है। अपना झुका हुआ ढांचा झुलाता वह आदमी सधे कदमों से चलता जाता है। उसकी मुद्रा में कुछ है जो बताता है कि उसका दिमाग काम में लगा हुआ है। शायद वह कुछ तय नहीं कर पा रहा या शायद कर चुका है…। मेरे ख्याल से वह एक चोर है। रात के अंधेरे में एक जीवित आदमी को देखना अच्छा लगता है। खुली हुई खिड़कियों से मानवीय पसीने की उबकाईभरी बदबू आती है।
दमघोंटू रूखे अंधेरे में विचित्र दबी आवाजें हिलती हैं… सोया हुआ है नीमबेहोशी में बड़बड़ाता पीले दैत्य का यह बर्बर नगर।
१९०६
अनुवाद : अशोक पाण्डे
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3 comments:
बहुत भयानक वर्णन है। मुझे करीब एक दशक हुआ न्यू यार्क मे रहते, पर कभी इस तरह नही लगा। अमेरिका के सबसे ज्यादा प्रगतिशील राज्यों मे एक है ये राजनैतिक dristi से, और संस्कृतिक dristi से भी। और प्रकृति को बहुत सहेज कर रखा गया है यहाँ पर , सिर्फ Manhattan से ५-१० कम दूर जाने कि जरूरत है। यातायात कि सुविधा भी यहाँ पर आम आदमी को ध्यान मे रखकर ही है, हम अक्सर मज़ाक करते है कि इस शहर मे कर से चलाने वालो के लिए बड़ी परेशानी है, पर ट्रेन , जो सार्वजानिक सवारी है वो बड़ी सुविधाजनक है/propeople है। अमीरी गरीबी हर जगह है। पर इस प्यारे शहर पर कम से कम आज इतनी तोहमत ठीक नही ............
तेरह साल पहले मैंने भी न्यूयॉर्क देखा था सुषमा। गोर्की का न्यूयॉर्क सड़ांध से भरे अमरीकी इतिहास की एक बानगी भर है। जिस पैसे के बूते पर आज अमरीका सब पर धौंस जमा रहा है वह असल में पिछली दो सदियों के कत्लोगारत की कमाई है। अच्छे ट्रैफिक को देखना हो तो मेरे साथ एक दफा प्राग चलिए … वही प्राग जो पिछली सदी में छ: बार तबाह किया गया। लेकिन अपने इतिहास पर गर्व करने वाले वहां के बाशिदों ने उसे इस कदर प्यार से बार बार बनाया … माफ कीजिए मैं इमोशनल हो रहा हूं लेकिन इतिहासरहित अमरीका के लिए या वहां के बाशिन्दों के लिए, जो जॉर्ज बुश जैसे अहमक को अपना सदर चुन सकते हैं, मेरे मन में ज़रा भी संवेदना नहीं। गोर्की ने इस किताब में और भी बहुत कुछ लिखा था। जल्दी ही आपको यहां देखने को मिलेगा
अमेरिकी इतिहास जो है उसे नाकारा नही जा सकता, पर यहाँ के सभी लोगो पर इस तरह लकीर नही फेरी जा सकती। जिस तरह सभी हिंदुस्तानियों को सिर्फ इसीलिये नही नाकारा जा सकता कि हमारे यहाँ भाजपा कि सरकार रही है, सभी हिंदु इसीलिये बुरे नही कि मोदी ने गुजरात मे शर्मनाक कन्द किये. न ही नंदिग्राम के लिए सभी वामपंथियों पर कालिक पोती जा सकती है। पिचले ६-७ सालो मे लोगो मे वार को लेकर बहुत रोष है और ये पिचले चुनाव मे दिखा है। महीने भर तक मेने कर्नेल के स्टूडेंट्स को धरना देते देखा है क्योटो प्रोटोकॉल को अपनानाने के लिए। मेरे घर से कुछ ही दूर पिचले सैट साल से एक घर के आगे रोज युद्ध विरोध मे नए स्लोगन लिखे जाते है। पर डेमोक्रेसी कि अपनी लिमिट्स है, however, इससे बेहतर कुछ मानव सभ्यता के पास है नही.
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