Thursday, June 5, 2008
विजयशंकर चतुर्वेदी की कविता
विजयशंकर चतुर्वेदी आज़ाद लब नाम से एक लोकप्रिय ब्लॉग का संचालन करते हैं, बम्बई में रहते हैं और मीडिया से जुड़े हुए हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक कविता 'एलबम'.
घर-घर में पाए जाने वाले एलबम और तसवीरें बीसवीं सदी की कविता के विषय बनने शुरू हुए: विश्व कविता के और भारतीय कविता के भी. शिम्बोर्स्का, रूज़ेविच, वास्को पोपा से लेकर असद ज़ैदी, मंगलेश डबराल, वीरेन डंगवाल, बशीर बद्र और तमाम हिदी कवियों ने एलबमों और फ़ोटोग्राफ़ों पर कविताएं रची हैं.
विजयशंकर की यह कविता जिस तरह अपनी मन्द चाल में चलते-चलते अचानक एक आशातीत उड़ान भर लेती है, उसने मुझे एकबारगी हकबका दिया था. यहां यह समझ लेना जल्दबाज़ी होगी कि विजयशंकर एक महाकवि का नाम लेकर 'नेमड्रॉपिंग' जैसा कुछ कर रहे हैं. असल में जो उन्होंने किया है वह बताता है कि कविता अब भी क्या-क्या कर सकती है. और सबसे बड़ी बात यह है जैसा कि सारी अच्छी कविताओं के साथ होता है, असल कविता को पाने और समझने के लिये कविता से परे जाना होता है.
एलबम
यह अचकचाई हुई-सी तस्वीर है मेरे माता-पिता की
क़िस्सा है कि इसे देख दादा बिगड़े थे बहुत.
यह रही झुर्रीदार नानी मुझे गोद में लिए हुए
खेल रहा हूँ मैं नानी के चेहरे की परतों से
फौज़ी वर्दी में यह नाना हैं मेरे
इनके पास खड़ी यह बच्ची माँ है मेरी
फिर मैं हूँ स्कूल जाता थामे माँ की उँगली.
एक धुंधली तस्वीर है बचपन के साथी की
साँप के काटने से जब मरा बहुत छोटा-सा था.
इस फ़ोटो में यह दुबली लड़की बहन है मेरी
दिखती है खिड़की से जाने किसकी राह देखती
यह मैं हूँ और पत्नी उदास घूंघट में
ठीक बाद में यह है उसका बढ़ा हुआ पेट
फिर तीन-चार तस्वीरें हैं हमारे बाल-बच्चों की.
कुछ तस्वीरें ऐसी भी हैं इस एलबम में
जिन्हें देखने की दिलचस्पी अब किसी में नहीं बची
ये सब साथ-साथ पढ़ने-लिखने वाले लड़के थे.
आख़िर में तस्वीर लगी है एक बहुत बूढे बाबा की
कान के पीछे हाथ लगाए आहट लेने की मुद्रा में
यह बाबा नागार्जुन है.
(बाबा नागार्जुन का फ़ोटो राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'नागार्जुन रचनावली' से साभार)
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16 comments:
बहुत ही शानदार कविता है। बेहद स्वाभाविक। ज़्यादातर छप रही कविताओं की तरह बनावटी नहीं।
सुंदर कविता है.
Hi,
Very good poetry. Very realistic and poetic.
I will translate it into Tamil and publish in my own blog.
Expecting a more from vijay saheb.
Wishes..
Madhiyalagan Subbiah,
Tamil poet
इतिहास को संजोने वाला एलबम जब अपनी परते खोलता है तो एक अद्भुत मंजर सामने होता है, कभी आँखे नम हो जाती हैं तो कभी चेहरा खिल उठता है. कभी चेहरे के पीछे की कहानी जो केवल आपको मालूम है नजर आने लगती है. इन्ही सब की तरह है यह कविता एलबम. लाजवाब...
वाकई अल्बम है, जिसमें हर तस्वीर नजर आ रही है साफ-साफ। और अंत में बाबा नागार्जुन। अद्भुत कविता। बधाई ।
अदभुत कविता और उसी मूड का पूर्वावलोकन करता आपका कविता प्रवर्तन.
बहुत बढ़िया
विजय भाई को बहुत बहुत बधाई.
हमे इतनी सुंदर कविता पढ़वाई.
अद्भुत कविता है.
मुझे भी घर के एलबम की याद आगई.
अविनाश जी की बात से सहमत हूँ.
अच्छा लगा इसे पढ़ कर...
भाई, अशोक पांडेजी का किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं समझ में नहीं आ रहा. उन्होंने मेरी यह कविता इतने प्यार, इतने खुलूस और इतनी बेहतरीन भूमिका के साथ छापी है कि आभार मानना औपचारिकता लगेगा.... और आप सुधी पाठकों ने जिस तरह इसे पसंद किया, सराहा वह किसी भी कवि का दिमाग ख़राब कर देने को पर्याप्त है. लेकिन विश्वास दिलाता हूँ कि मुझसे यथासंभव ऐसी चूक न होगी.
मैं यह कविता आप सबको समर्पित करता हूँ. धन्यवाद!
विजय भाई बिल्कुल अभी पढ़ी कविता ।
अपनी तरंग में बिल्कुल आखिर तक ले जाकर चौंका देती है ।
एक अच्छा सा अहसास देकर विदा होती है ये कविता ।
विजय जी,
कविता से परे जाकर समझने की कोशिश की
और लगा कि जैसे कविता हाथ लग गई.... !
संवेदना के महीन धागों से बुनी गई ये कविता
मेरी नज़र में ऊन के गोले की तरह बगैर किसी
उलझन के खुल गई है......!!
...और बाबा की तस्वीर
एक अलग कविता जैसी ही है.
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आभार
डा.चंद्रकुमार जैन
विजय भाई आपका दिमाग़ ख़राब हो ही नहीं सकता. आपके मन और मस्तिष्क में बसी असीम समवेदनाओं की थाह देती है यह कविता.
अशेष शुभेच्छाएँ.
बिना अधिक नाटकीय और अतिरिक्त भावुक हुए, नॉस्टैल्ज़िया की -- स्मृति के अनूठे संसार में सहज-मंथर चहलकदमी की -- बहुत अच्छी कविता .
बहुत बढिया. आपके दोष धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं.
hum sab ke ghar me rahane wale baba ko pakar liya aapne.aapki kavita dhire dhire pariwar or sahitya ko ekdoosare me ghula deti hai.
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