Thursday, March 5, 2009

जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष था क्योंकि मैं लड़की थी

अनीता वर्मा ने नए संग्रह 'रोशनी के रास्ते पर' से एकाध कविताएं यहां हाल में आप पढ़ चुके हैं. मैं जितनी बार इस किताब को पढ़ता हूं जीवन और कविता पर मेरा विश्वास गहराता जाता है. अनीता जी ने इस किताब में वाक़ई जादू किया है. जादू करने के लिए कोई जतन नहीं लगाया है, चीज़ों को और भी सादगी नवाज़ी गई है. मैं इस संग्रह से आपको अभी कई उल्लेखनीय चीज़ें पढ़वाऊंगा. इस सीरीज़ में फ़िलहाल ये दो कविताएं और प्रस्तुत हैं:

दोष

जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष था
क्योंकि मैं लड़की थी
जब थोड़ी बड़ी हुई तब भी दोषी रही
क्योंकि मेरी बुद्धि लड़कों से ज़्यादा थी
थोड़ी और बड़ी हुई तो दोष भी बड़ा हुआ
क्योंकि मैं सुन्दर थी और लोग मुझे सराहते थे
और बड़ी होने पर मेरे दोष अलग थे
क्योंकि मैंने ग़लत का विरोध किया
बूढ़ी होने पर भी मैं दोषी रही
क्योंकि मेरी इच्छाएं ख़त्म नहीं हुई थीं
मरने पर भी मैं दोषी रही
क्योंकि इन सबके कारण असंभव थी मेरी मुक्ति.

रोशनी

उसका नाम रोशनी था
आदिवासी एक लड़की
जिसे बनना था नन
वह कभी पागलों सा करती
मोटे लाल पपोटे उसके
जंगली फूलों से दिखते
बोलती तो लकड़ी के दरवाज़े थरथराते
आरियों सी काटती उसकी चीख़

मुझे पता है मेरा अंत
यहीं कहीं है वह आसपास
फूल-फूल नहीं प्यार नहीं
मुरझाना है मुझे वसन्त में
सूरज बनना है
लाल एक पहाड़
कोई दो मुझे मेरी नींद

दिलासा एक आसान पत्थर था
जिस पर पतक देती वह सर
सिस्टर कैथरीन उसे बांहों में भर लेतीं
रोशनी मेरी बच्ची

कई वर्ष बाद मिली रोशनी
मेडिकल कॉलेज में
वह डॉक्टर बन रही थी
अच्छा करेगी वह
बच्चों को और स्त्रियों को
बच्चे, स्त्री, ग़रीब रोशनी.

9 comments:

Anshu Mali Rastogi said...

अनिताजी को इन बेहतरीन कविताओं के लिए मेरा सलाम कहें।

ravindra vyas said...

अशोकजी,अनिता जी का संग्रह एक जन्म में सब वाकई बहुत अच्छा है। मैंने इसे अपने मित्र सुशोभित सक्तावत से मांगा और पढ़ रहा हूं। कुछ कविताएं तो बार बार पढ़ता हूं जैसे वान गाग के अंतिम आत्मचित्र से बातचीत। इसके कवर पर गाग का ही बनाया खूबसूरत चित्र खिलता हुआ आडू का पेड है। दूसरा संग्रह भी जल्द ही पढ़ूंगा।

शोभा said...

कई वर्ष बाद मिली रोशनी
मेडिकल कॉलेज में
वह डॉक्टर बन रही थी
अच्छा करेगी वह
बच्चों को और स्त्रियों को
बच्चे, स्त्री, ग़रीब रोशनी.
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर कविताएं हैं ... बहुत ही अच्‍छी लगी।

L.Goswami said...

अत्यंत मार्मिक.

सुशील छौक्कर said...

अनिता जी की रचनाएं पढ़कर अच्छा लगा।

अनिल कान्त said...

बहुत ही मार्मिक .....अनीता जी को सलाम

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर कवितायें!

राजकुमार ग्वालानी said...

बेहतरीन कविताओं के लिए बधाई