Wednesday, April 8, 2009

वे चिर - कुमार स्वर थे !



कविता लिखना मुझे कभी नहीं आया.
पं.कुमार गंधर्व का जन्मदिन (8 अप्रैल)
आया
और फूट पड़े ये शब्द.


कभी कभी सोचता हूँ
की-बोर्ड,इंटरनेट,मोबाइल
और मॉल्स में
तब्दील हो रहे समय
और परिवेश में जब
लोग बौरा गए हैं
पं.कुमार गंधर्व
होते तो क्या कर रहे होते ?

वे भानुकुल के बरामदे
के झूले पर बैठे
अपने सरोते से सुपारी कतर रहे होते

निरगुणी पद गा रहे भुवनेश
के साथ डग्गे पर संगत दे रहे होते

कलापिनी को तानपुरा मिलाने की
बारीकी बता रहे होते

वसु ताई से कह रहे होते
बहुत दिन हो गए
वह मालवी गीत सुना दो
"या मटकी सोरमजी से भरी हे
या मटकी गंगाजी से भरी हे

ये सब इसलिये हो रहा होता
क्योंकि कुमार गंधर्व समय
और घड़ी से बहुत आगे के थे
वे ज़माने के चोचलों से
से बहुत परे थे
वह "चिर"कुमार स्वर थे.



कबाड़खाना के दर्दियों के साथ बहुत दिनों मुलाक़ात हो रही है सो इसे विशिष्ट बनाने के लिये अशोक भाई की भेंट की हुई सी.डी में से कुमारजी का गाया राग मालकौंस सुना रहा हूँ.ध्यान से सुनियेगा इस छोटी सी द्रुत बंदिश में कुमारजी की बलखाती तानों का वैभव क्या कमाल कर रहा है.

पं.कुमार गंधर्व जैसे महान स्वर-साधक इस फ़ानी दुनिया से कभी रूख़सत नहीं होते.आइये कुमारजी को जन्म दिन की बधाई देते हुए उत्सव मनाएं.




भानुकुल:कुमारजी का देवास स्थित निवास
भुवनेश:कुमारजी के प्रौत्र और पं.मुकुल शिवपुत्र के पुत्र
कलापिनी:कुमारजी की सुपुत्री.
वसुताई:कुमारजी की सुर-संगीनी श्रीमती वसुंधरा कोमकली

6 comments:

siddheshwar singh said...

कमाल
और क्या !
उत्सव हो गया अपना भी..
बहुत दिनों बाद आए दद्दा !!

संध्या आर्य said...

अच्छी जानकारी मिली ............

Ek ziddi dhun said...

Kumar Gandharv ke bete bhi adbhut hain (sankipan ke bavjood). suniyega kabhi

एस. बी. सिंह said...

इतने दिनों बाद आपका आना और कुमार गन्धर्व जी की चर्चा के साथ। सचमुच हमारा अहोभाग्य है।

मुनीश ( munish ) said...

IN d'company ov' Elites'!

विनय (Viney) said...

अद्भुत!