Sunday, April 4, 2010

कुछ ऐतबार कुछ ना-ऐतबार

....आज अपनी पसंदीदा अलबम 'सुनहरे वरक़' से यह ग़ज़ल आप सबकी सेवा में। आइए इसे सुनें ...... गुनें..... और मन ही मन कुछ बुनें....



ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया.
तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया

हँसा -हँसा के शबे-वस्ल अश्क-बार किया,
तसल्लियाँ मुझे दे-दे के बेकरार किया।

हम ऐसे मह्वे-नजारा न थे जो होश आता,
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होशियार किया।

फ़साना-ए-शबे-ग़म उन को एक कहानी थी,
कुछ ऐतबार किया कुछ ना-ऐतबार किया।




शब्द : दाग़ देहलवी
संगीत : खय्याम
स्वर : कविता कॄष्णमूर्ति

6 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया.
तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया
बहुत सुन्दर गज़ल. धन्यवाद सुनवाने के लिये.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

फ़साना-ए-शबे-ग़म उन को एक कहानी थी,
कुछ ऐतबार किया कुछ ना-ऐतबार किया।

बहुत खूब

मुनीश ( munish ) said...

मस्त है ये पत्ता भी . ...मैपल मने चिनार का दीक्खे !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यह गज़ल कल तो नही सुन पाया था!
आज इसे सुन कर मन प्रसन्न हो गया!

Pratibha Katiyar said...

gajab kiya tere wade pe aitbar kiya...wah!

Unknown said...

Tujhe to wada ay deedar humse kerna tha,
Ye kya kiya ke jahan ko ummeedwar kiya!
Na pooch dil ki haqeeqat magar ye kehte hain,
Woh beqaraar rahey jisney beqaraar kiya
Ye dil ko taab kahan hai ke ho Muaal-undesh,
Unhoun ney waada kiya, humne aitibaar kiya!