Wednesday, January 5, 2011

परिंदे - दूसरा भाग

[पिछली किश्त से आगे]

अगले दिन दरवाजे पर हुई थाप से सुधीर यकबयक चौंक कर उठा | दरवाजा खोला तो प्रोफ़ेसर और मिस अर्चना खड़े थे | "जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो भई डॉक्टर " प्रोफ़ेसर ने हाथ आगे बढ़ाया
सुधीर अभी उन्नींदा सा ही था, "लेकिन आप लोगों को कैसे पता चला ?" प्रोफ़ेसर एक ओर को हट गए
"हमें तो हमारी स्लैम बुक से पता चला है |" मिस अर्चना ने हाथ आगे बढ़ा लिया |
सुधीर ने बढ़कर हाथ मिलाया,"मिस ! इतनी पुरानी चीजें आपने रखी हुई हैं ? और आपको मेरा जन्मदिन भी याद है उसमे ?"
सुधीर को याद आया कि बहुत सारे जूनियर मिस अर्चना के काफी प्रशंसक थे | और उन्होंने ही मिस अर्चना से अनुरोध करके उनकी स्लैम बुक भरी थी |
"तुम भी क्या मिस मिस लगाये रहते हो यार |" प्रोफ़ेसर ने जैकेट की जेब में हाथ डाल लिए थे | सुधीर की तन्द्रा टूटी, ध्यान आया बरामदे में ठंडी हवाएं चल रही हैं |
"अन्दर आ जाइए |" सुधीर ने एक ओर हटते हुए कहा, "आदत नहीं जाती सर, शुरू से ही मिस कहते रहे हैं |"
मिस अर्चना और प्रोफ़ेसर उप्रेती अन्दर आकर बिस्तर पर बैठ गए (घर में कुर्सियां नहीं है) | "हाँ सुधीर ! और तुम्हारा वो हाँजी हाँजी करना भी | क्या पंजाबियों की तरह हिंदी बोलते हो |"
सुधीर खिसिया गए, "ठीक है मिस , अब से नहीं बोलूँगा |"
प्रोफ़ेसर ने दो दिन पुराना अखबार उठा लिया, "सुधीर तुम्हारा कमरा तो बाकी ट्रांसिट से भी ठंडा है | अरे यार, कुछ बंदोबस्त करो हीटर वगैरह का |" अर्चना ने गंभीर भाव से कहा - "अरे! दासगुप्ता सर को बोल दो , बोयज़ होस्टल से जब्त कर लेंगे तुम्हारे लिए भी |" प्रोफ़ेसर और सुधीर हँसने लगे, अर्चना ने दोनों की ओर देखा, "अरे सही में |" प्रोफ़ेसर उप्रेती दासगुप्ता को बेहद पसंद करते थे , "दासगुप्ता थोड़ा शरारती सा है, लेकिन अच्छा टीचर है |"
सुधीर ने उनकी ओर अविश्वास से देखा | "अरे मानों भई !" प्रोफ़ेसर सुधीर का असमंजस समझ गए थे, "दासगुप्ता साला अपनी इमेज सही नहीं रखता , पता नहीं क्यूँ |"
"दासगुप्ता सर ने प्रेम विवाह किया है न ?" अर्चना ने जिज्ञासा रखी |
"हाँ , मिस आपके ही बैच की हैं, कंप्यूटर साइंस ब्रांच से हैं, मिस इंदिरा सेन |"
"वो मिस नहीं , मिसेज हैं अब |" प्रोफ़ेसर ने टोका | "इंदिरा सही स्टुडेंट थी सी एस के टॉप लोगों में से थी | लेकिन टीचर से शादी ..." अर्चना ने अपने शब्दों को रोक दिया |
"दासगुप्ता ने सारा मामला बहुत अच्छी तरह संभाला था | उसके घर से मंजूरी नहीं मिली थी , हम लोगों ने उसकी शादी करवाई थी | स्वामी ने लड़की का कन्यादान किया था |" प्रोफ़ेसर हौले से हँसे, "तो आज क्या करने का प्लान है भई?" सुधीर ने बारी बारी से दोनों की ओर देखा, कुछ समझ नहीं आने पर कह दिया, "कुछ नहीं सर |"
"अरे ऐसे कैसे कुछ नहीं | आज कुछ मीठा तो बनाना होगा | मन्दिर में प्रसाद चढ़ाना चाहिए |" मिस अर्चना अपनी लय में बोलती जा रही थी | सुधीर को माँ का स्मरण हो आया | हर जन्मदिन पर फ़ोन करके ये दोनों चीजें प्राथमिकता में गिनवाती, मन्दिर में प्रसाद, घर पर मीठा | इन सब से जिंदगी की कड़वाहट शायद थोड़ी कम होती हो , सुधीर ने मन ही मन सोचा |
"अरे कहाँ खो गए ?" अर्चना ने सुधीर के कंधे पर हाथ रखा, "मैं कह रही थी कि इन सबसे जिंदगी में थोड़ी मिठास घुलती है |" सुधीर हँस दिए, लड़कियों की आदत एक जैसी होती हैं, माँ जैसी |
"तुम्हारा जन्मदिन भी बड़े अच्छे दिन आया है, आज मुझे मन्दिर जाना है | तुम भी चलो " मिस अर्चना के स्वर में सुधीर को हमेशा एक आदेश का भान रहता है |
"नहीं , मिस .. मन्दिर के लिए तो मुझे माफ़ ही करो " सुधीर ने कहा |
"अच्छा ? क्यूँ भई ?" प्रोफ़ेसर ने पूछा जिसका सुधीर ने कोई जवाब नहीं दिया |
"तुम आखिरी बार मन्दिर कब गए थे ?" मिस अर्चना ने पूछा |
"याद नहीं पड़ता | ऐसा नहीं कि भगवान से कोई दुश्मनी हो, बस वहाँ अन्दर रहा नहीं जाता |" सुधीर ने अपना बचाव किया | "ठीक है, फिर तुम अन्दर मत आना, बाहर से ही पूजा करना | वैसे भी यहाँ मन्दिर में एक साथ सिर्फ दो ही आदमी अन्दर रह सकते हैं | तुम अन्दर आ जाओगे तो पुजारी को बाहर खड़ा होना पड़ेगा |" मिस अर्चना मुस्कुरायी | सुधीर ने अब प्रतिरोध करना छोड़ दिया |

आज माता के मन्दिर की ओर जाने वाले काफी लोग ट्रैकरों का इंतज़ार कर रहे थे | कुछ लोग पैदल ही चलने लगे | "सुधीर ! पैदल चलें ? तुम चल लोगे ?" अर्चना ने सुधीर की ओर देखा | आसमानी लिबास में बेहद हल्के रंग का दुप्पटा हवा में उड़ रहा था | "हाँ जी | हम तो कॉलेज टाइम में पौड़ी तक पैदल ही निकल जाते थे |" सुधीर मुस्कुराया | "अच्छा ?" अर्चना को आश्चर्य हुआ | माथे पे उड़ रही अलकों को कान से पीछे करती, और दूसरे हाथ से दुप्पटे को उड़ने से बचाती अर्चना को देखकर सुधीर ने मदद का प्रस्ताव किया | "मिस, आप चाहें तो मैं आपकी ये पूजा की डलिया पकड़ लूँ ?" सुधीर ने हाथ आगे बढ़ाया | "ओह , श्योर , थैंक यू |" मिस अर्चना ने डलिया सुधीर की ओर बढ़ा दी | जल्दी में सुधीर की उँगलियाँ उनकी उँगलियों से छू गयी | "ओह माय ... तुम्हारी उँगलियाँ इतनी ठंडी क्यूँ है ? अरे खून नहीं है क्या शरीर में ?" अर्चना ने सुधीर को झिड़का , "देखो, यहाँ सही से खाना खाया करो , नहीं खाओगे तो वजन गिरने लगेगा |" "जी मिस " सुधीर से कुछ कहते न बना | "अपने हाथ जैकेट के अन्दर रखो " अर्चना ने दुबारा आदेश दिया | सुधीर ने चुपचाप बाँया हाथ जेब में रख लिया , और दाहिने की उँगलियाँ भी जेब में डाल ली | सामने एक नवविवाहिता चल रही थी, उसकी बाजुओं तक भरी लाल चूड़ियाँ बार बार खनक रही थी | उसी के आगे एक प्रौढ़ा थी, जो संभवत उसकी सास थी | जरा सा हट कर चलता युवक उसके कान में कुछ कहता और वो हौले से हँस देती | युवक ने थोड़ा सा पीछे हटकर, युवती से डलिया अपने हाथ में ले ली, और दाहिने हाथ से युवती का हाथ कसकर पकड़ लिया | वो थोड़ा कसमसाई , लेकिन फिर दाहिना हाथ भी उसने अपने बाँयें हाथ से मिला लिया | "तुम्हारा शादी करने का कोई इरादा भी है या ... ?" मिस अर्चना ने सुधीर से पूछा | सुधीर झेंप गए , मिस ने उन्हें सामने चल रहे विवाहित युगल को देखते हुए पकड़ लिया है शायद |
"पता नहीं मिस |"
"कभी कोई लड़की पसंद नहीं आई ?"
"आई थी मिस" सुधीर को अपने बेबाकी पर खुद भी आश्चर्य हुआ |
"फिर?"
"बस , जब तक मैं इंजीनियरिंग पूरी करता उसकी शादी तय हो गयी थी |"
"ओके !"
"हमारे यहाँ तो आप जानती ही हैं मिस कि एक बार लड़की की शादी तय हो गयी , इसका मतलब कि शादी हो ही गयी | फिर कुछ कहना सुनना बाकी नहीं रह जाता |"
"हूँ ..." मिस अर्चना अपने पैरों की ओर देखने लगी | पहाड़ी का ये मोड़ अन्दर की ओर था इसलिए हवा लगनी बन्द हो गयी थी, लेकिन काफी ठंडा और प्रकाश भी थोड़ा कम था |
अचानक से एक जीप उनके बगल में रुकी | उन्होंने मुड़कर देखा तो दासगुप्ता जीप से मुँह बाहर किये दिखाई दिए, "अरे मैडम, अरे सुधीर | आओ आओ, जगह है थोड़ी इसमें |" फिर मुड़कर अपने साथ वाले लोगों से विनय की, "भाईसाहब! आप कृपया पीछे बैठ जाएँ |" एक साधारण सा ग्रामीण इस विनम्र निवेदन से पानी पानी हो गया | जल्दी से उतर कर पिछली सीट पर चला गया | दासगुप्ता और उनकी पत्नी एक ओर, एक आदमी दांयी ओर बैठा था | सुधीर और मिस अर्चना बीच में एक आदमी की सीट पर बैठ गए | इंदिरा अर्चना से बातचीत का सिलसिला बढ़ने लगी | पुरानी बातों, और यादों को, ताजा करते, और हँसते रहते | दासगुप्ता बोले, "हाँ अर्चना, कैसा लग रहा है तुमको यहाँ ?"
"सर, पूरे चार साल यहीं गुज़ारे थे , कोई पहली बार थोड़े ही आई हूँ |"
"हाँ सो तो है , लेकिन फिर भी , काफी चेंजेज भी तो हुआ है इधर |"
"नहीं सर , कुछ भी तो नहीं बदला है | वही सर्दियाँ हैं, वहीं हम हैं |"
"पिछले साल हम यहीं रुके थे , बर्फ पड़ी थी , इस साल भी पड़ेगी न ?" इंदिरा ने दोनों हाथो को रगड़ना शुरू कर दिया जैसे पिछली बर्फ़बारी की याद आने से ही ठण्ड ज्यादा तेज़ लगने लगी हो |
"अभी फिफ्थ सेमेस्टर के एक्साम बाकी हैं , तब तक तो हम यहीं है |" दासगुप्ता ने मुस्कुराके इंदिरा की ओर देखा |
"इस बार भी यहीं ... रहते हैं न ..."इंदिरा साफ़ तौर पर नाराज दिख रही थी |
"देखेंगे" कहकर दासगुप्ता सर पहाड़ियों पर उग रहे सूर्य को देखने लगे |

सुधीर बाहर खड़े हो गए | मिस अर्चना ने अन्दर बुलाया तो नहीं आये | "भगवान को नहीं मानते हो क्या ?" मिस अर्चना ने दबी जुबान में गुस्से से कहा | "मानता हूँ |" सुधीर ने जवाब तो दिया लेकिन मन की कशमकश नहीं ख़त्म कर पाए | हाथ जोड़ दिए , लेकिन मन या आँखों में कोई भाव प्रकट न हुआ | अर्चना ने दुपट्टे का एक छोर सर पे रख लिया, पूजा का नारियल गर्भ-गृह में बैठे पंडित जी को दिया | धूप के तीन चार बत्तियां बनाकर जला लीं | अगरबत्तियां और धूप पहले से ही काफी जली हुई थी, फिर और धुंआ करके क्या... | सुधीर हाथ जोड़े हुए सोचते जा रहे हैं | माँ होती तो हाथ पकड के मन्दिर के अन्दर लेके जाती | उस दिन भी जब मैं गुस्सा होता था, किसी चीज को पाने की जिद करने के लिए | मेरा सबसे आसान तरीका होता था रोते रोते सड़क पर लेट जाना | माँ हँसती, कहती ठीक है लेकिन मन्दिर के अन्दर तो चल ले पहले | मन्दिर के अन्दर ही एक घर में बहुत बूढ़े बाबाजी रहते , जिनकी उम्र मुझे सौ साल की लगती | वे मुझे खूब सारे फल खाने को देते और मैं उनके मन्दिर में कहीं भी घूम सकता था | बस बदले में मुझे मन्दिर में आये लोगों को गीता सार सुनाना होता | मन्दिर से बाहर आते आते मैं भूल जाता कि मैं किस चीज़ के लिए जिद कर रहा था, और माँ का हाथ थामकर उछल उछल कर एक के बाद एक बातें बनाने लगता | माँ, भैया कहता है कि ... "प्रसाद ले लो ! कब तक हाथ जोड़े खड़े रहोगे ?" अर्चना की आवाज सुधीर के कानों में पड़ी | सुधीर की तन्द्रा टूटी, लोग जाने की तैयारी में हैं | सुधीर ने प्रसाद लेने के लिए हाथ बढ़ाया | "अरे मुझसे नहीं , पंडित जी से ले लो | फिर तुम्हें सबको बाँटना है, आज तुम्हारा जन्मदिन है न |"

सुधीर अपने कमरे में लेटे हुए छत को घूर रहे थे | दोपहर का वक़्त होने के बावजूद कमरे में अँधेरा था , सर्दियों की वजह से दीवारों में सीलन थी | छत पर पानी से बने हुए पैटर्न देखते रहे | बाल सफ़ेद होने लगे हैं क्या ? उसने उठकर आइना ढूँढने की कोशिश की | बैग के अन्दर वाले हिस्से मे से आइना निकालकर देखा | कमरे की लाईट जलाई, ओह लाईट तो कल रात से ही गायब है | खिड़की के पास ले जाकर आईने में कुछ खोजने जैसे लगा | नहीं , बाल सफ़ेद नहीं हुए हैं , सुधीर ने आईने को चेहरे के दायें बाएं घुमाया | शेव भी नहीं की है, लेकिन अभी गरम पानी कहाँ से मिलेगा | दुबारा जाकर बिस्तर पर लेट गए | कुछ सोचने के बाद एकदम से उठे और गैस पर गरम करने के लिए पानी चढ़ा दिया | पुरानी डायरी खोल के पढ़ने लगे जो आदमी, समझिये उसे पढ़ के कुछ और बूढ़ा होता जा रहा है | शायद वाकई मैं बूढ़ा हो रहा हूँ , सुधीर ने मन ही मन सोचा | ये डायरी एक ज़माने से पढ़ी नहीं , लेकिन हर जगह इसे अपने साथ रखकर घूमता हूँ | इसे फेंक देना चाहता हूँ , लेकिन पुरानी चीज़ों से पता नहीं लगाव क्यूँ होता जाता है | छः दिसंबर बयानवे, पौड़ी , आज मैंने श्रद्धा को फ़ोन किया | सोलह दिसंबर बयानवे, श्रद्धा को फ़ोन किया | टेड़े मेड़े अक्षरों में कुछ कुछ गूढ़ जानकारी सी लिखी हुई थी | तीस जनवरी तेरानवे, श्रद्धा के घर फ़ोन किया , बात नहीं हो पायी | सुधीर ने डायरी को टेबल की ओर उछाल दिया | ओंधे मुँह गिरने से पहले डायरी के बीच से एक छोटा सा कार्ड गिर गया | तीन दिसंबर बयानवे , हैप्पी बर्थडे टु माय डियरेस्ट फ्रेंड , फ्रॉम श्रद्धा |

- क्रमश:

4 comments:

डॉ .अनुराग said...

यायावरी यादो की करना शगल है .....लोग जिसे आवारगी कहते है

Shalini kaushik said...

pahla pyar aisa hi hota hai .bahut bhavpoorn.mere blog {http://shalinikaushik2.blogspot.com}par bhi aapka hardik swagat hai.

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन की पगडंडियाँ न जाने कहाँ क्या मोड़ ले लेंगी, नहीं ज्ञात। ज्ञात अज्ञात में घूमती मन की प्रतिध्वनियाँ।

vandana gupta said...

दोस्तों
आपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com