[पिछली किश्त से जारी]
अगले दिन मिस अर्चना, मीरा कुछ खाना लेकर आये | सुधीर रात भर अस्पताल में ही रहे | प्रोफ़ेसर उप्रेती के साथ वाले बिस्तर पर लेटे रहे | "अब कैसी तबियत है प्रोफ़ेसर उप्रेती की ?" मीरा ने पूछा | "अभी सो रहे हैं | रात भर कुछ -कुछ बोलते ही रहे | अभी जाकर सोये हैं |" सुधीर ने जवाब दिया | "डॉक्टर ने क्या कहा है ?" मिस अर्चना ने बैठते हुए कहा | "ठीक हैं | बस थोड़ा तनाव की वजह से | काफी कमज़ोर भी हो चले हैं, वजन सामान्य से काफी गिर गया है |" सुधीर ग्लूकोज़ की बोतल को खाली होते हुए देखता रहा | "तुम खाना खा लो" मीरा ने सुधीर की ओर खाने का डब्बा बढ़ा दिया | "कुछ रिपोर्ट्स आनी बाकी हैं , उसके बाद ही सही सही कुछ कहा जा सकता है |" सुधीर ने डब्बा मेज़ के ऊपर रखते हुए कहा | "ठीक है, अभी थोड़ी देर में स्वामी सर आयेंगे | वे रहेंगे प्रोफ़ेसर के पास | तुम खाना खा लो" अर्चना ने कहा | "यहाँ पौड़ी में धूप अच्छी आती है | थोड़ी चहल पहल रहती है तो महसूस होता है कि दुनिया में और लोग भी रहते हैं | मैं थोड़ा बाहर हो आती हूँ |" कहते हुए मीरा बाहर चली गयी |
"तुमने खाना खाया " सुधीर ने अर्चना की ओर देखकर पूछा | एक पल के लिए तुम कहना थोड़ा अजीब लगा, लेकिन अधूरी बात अधूरी नहीं रख पाया | अर्चना को अच्छा लगा, "नहीं, अभी नहीं |"
"तो आप भी अभी खा लो, काफी खाना रखा है मीरा जी ने |"
"तुम ही सही रहेगा |" मिस अर्चना मुस्कुराई |
सुधीर ने खाने के डब्बे को खोला | एक ख़ाली डिब्बे में आधी सब्जी डालकर अर्चना ने अपने पास ले लिया |
"क्या हम डॉली को खबर करें ?" अर्चना ने पूछा |
"मैंने पूछा था प्रोफ़ेसर से, उन्होंने मना किया |" खाने का कौर मुँह में डालते हुए सुधीर ने कहा |
"लेकिन...प्रोफ़ेसर की हालत...डॉली को पता तो होना ही चाहिए |" मिस अर्चना ने सुधीर को समझते हुए कहा, "क्या प्रोफ़ेसर ने साफ़ साफ़ मना किया ? तुमने पूछा या उन्होंने खुद कहा ?"
सुधीर खाना हाथ में लेकर रुक गए, "प्रोफ़ेसर रात भर डॉली के बारे में बात करते रहे | डॉक्टर बीच बीच में आके उन्हें चुप होने के लिए कह रहे थे | जब मैंने उनसे पूछा कि प्रोफ़ेसर क्या डॉली को यहीं बुला लें, तो उन्होंने मना कर दिया | इससे ज्यादा मैं पूछ नहीं सका |" धूप दरवाजे तक आ गयी थी | सुधीर ने दरवाजे की ओर देखा | अर्चना ने पीछे मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा, कोई नहीं था | "क्या बात है ?" अर्चना ने सुधीर की ओर देखकर पूछा |
"नहीं, कुछ नहीं | क्या तुम पूरी सर्दियाँ यहीं रहोगी ? अभी तुम्हें कोई क्लास नहीं मिली है | छुट्टियों के बाद ही वो सब होगा... एक -डेढ़ महीने बाद |"
"हाँ ... तुम लोग भी तो यहीं हो |"
शाम को वापस ट्रांसिट आकर सुधीर अपने कमरे में लेट गए | चाय पीने का मूड हुआ, उठकर बोयज़ हॉस्टल की ओर जाने लगे | होस्टल की ओर जाने वाली पगडण्डी से एक पल रूककर मेंढक पहाड़ी की ओर देखा, हम शापित लोग हैं , मन ही मन सोचा और फिर आगे बढ़ गए | बोयज़ हॉस्टल में फिफ्थ सेमेस्टर के ही कुछ स्टुडेंट रह गए थे | कुछ स्टुडेंट सुधीर के पास आये, वे प्रोफ़ेसर उप्रेती की तबियत के बारे में जानना चाहते थे | सुधीर का ध्यान बार बार भटक कर प्रोफ़ेसर के कहे वाक्य पर अटक रहा था कि हम शापित लोग हैं | डॉक्टर तुम यहाँ से कहीं और चले जाओ, और अर्चना को भी ..."वे ठीक हैं , कुछ ही दिनों में वापस आ जायेंगे |" सुधीर ने जल्दी से कहा | सुधीर को ऐसा लगा कि जाने से पहले उन्होंने उसे अविश्वास से देखा हो | रमेश को चाय बनाने को कहकर सुधीर एक खाली टेबल पर बैठ गए | हॉस्टल मेस पूरी तरह खाली थी | आज आखिरी पेपर ख़त्म होने के साथ आधे से ज्यादा हॉस्टल खाली हो चुका था | कल सारे लड़के चले जायेंगे | फिर हॉस्टल मेस बन्द हो जायेगी , सुधीर को अपने खाने का इंतजाम बाहर कहीं किसी होटल में करना होगा | सारे टीचर्स भी कल चले जायेंगे | दासगुप्ता सर ने भी सामान पैक कर लिया था, इंदिरा के विरोध के बावजूद | हम शापित लोग हैं ... स्माल सेल लंग कार्सिनोमा ... उफ़ |
तीन साल तक लंग कैंसर से लड़ने के बाद आखिर प्रोफ़ेसर ने अपनी लड़ाई रोक दी | डॉली से लड़ाई भी प्रोफ़ेसर जारी नहीं रख सके, उन्हें बुला लिया गया | प्रोफ़ेसर ने शोभा से दूसरी शादी की थी | डॉली , प्रोफ़ेसर की पहली पत्नी से हुई बेटी थी | अनुपमा, जिसे प्रोफ़ेसर ने तलाक़ दिया था | कुछ दिनों बाद, अनुपमा का शव पंखे से लटकता हुआ पाया गया | डॉली को प्रोफ़ेसर अपने पास लेकर आ गए | जिंदगी भर इस अपराधबोध से प्रोफ़ेसर मुक्त नहीं हो सके | शोभा ने बाद में डॉली को सब कुछ बता दिया था , जिसके बाद डॉली ने कभी प्रोफ़ेसर को माफ़ नहीं किया | अपनी माँ के नाम पर ही अनुपमा नाम डॉली ने अपना लिया |
देहरादून में ही प्रोफ़ेसर का अंतिम संस्कार करना निश्चित हुआ | मुखाग्नि देने के लिए सुधीर से कहा गया | सुधीर की यादों में अभी प्रोफ़ेसर की बातें चल रही थी | स्वामी को ये सब मत बताना, अर्चना और तुम भी कहीं और चले जाना | अर्चना का हाथ थामकर प्रोफ़ेसर बच्चों की तरह रोये थे, "मुझे माफ़ कर देना अनुपमा |"
शव आधा जल गया था | दहक वातावरण में अभी थी | सुधीर बोझिल क़दमों से पीछे पीछे हटे |
तीन दिन बाद राख ली जाती है | सुधीर ने अस्थियों को एक घड़े में भरा, और अनुपमा को दे दिया | राख के एक एक टुकड़े में प्रोफ़ेसर के होने का अहसास था | यार डॉक्टर, यहाँ पहाड़ों में अपनी जिंदगी खराब मत करो | हम लोग तो दुनिया से भागे हुए लोग हैं, तुम क्यूँ भाग रहे हो | राख जैसे पूरे शरीर में चढ़ती जा रही हो |
"पौड़ी!!! पौड़ी!!! " ऋषिकेश बस अड्डे पर पौड़ी की बस तैयार खड़ी थी , कंडक्टर हर आने जाने वाले से पूछ रहा था | सुबह के चार बजे थे | "भेजी, कहाँ जाना है ?" कंडक्टर ने सुधीर को हिलाकर पूछा | "पौड़ी" सुधीर की आँखें कहीं और देख रही थी | "वो वाली में बैठ जाओ |" कंडक्टर ने कहा | सुधीर जाने लगे तो कंडक्टर फिर से चिल्लाया - "अरे भैजी! इधर इधर |" जब ध्यान देने के बाद भी उसने देखा कि सुधीर के कदम कहीं के कहीं जा रहे हैं | उसने मन ही मन कुछ अंदाजा लगाया, भागकर आया | "भेजी ?" सुधीर की अधमुंदी आँखों में देखने लगा | हाथ पकड़ने की कोशिश की तो सुधीर ने हाथ में रखी प्लास्टिक की थैली अपने से सिमटा ली, जैसे कंडक्टर उससे वो थैली छीनना चाहता हो | उसने हाथ पकड़कर सुधीर को बस के अन्दर बिठा दिया | मन्दिर वाले बाबाजी आखिरी दिनों में चल नहीं पाते थे , जमीन पर घिसट घिसट कर चलते थे | "अर बेटा! सुना दे जरा गीता सार |"
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतं |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ||
"भाईसाहब !" कंडक्टर ने सुधीर को हिलाया, "आपकी तबियत तो ठीक है ?" सुधीर को याद आया, बाबाजी के साथ एक औरत रहती थी | माँ से उसने पूछा कि वो कौन है | वो उनकी चेरी है, माँ ने कहा | सुधीर को लगा कि पत्नी को कहते होंगे | ये तो उसे काफी दिनों बाद पता चला कि चेरी उस लड़की को कहते है, जो किसी बाबा के साथ भाग आई होती है |
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ||
कंडक्टर ने सुधीर का माथा छुआ "शायद थोड़ा ज्वर है आपको, बस थोड़ी दूर और है आपका कॉलेज | कॉलेज के टीचर हैं न आप ?" सुधीर ने ठंडा हाथ अपने माथे पर महसूस करके आँखें खोली | "हाँ, हाँ कॉलेज ही जाना है | आया क्या ?" कंडक्टर ने तसल्ली जैसे देते हुए कहा , "बस थोड़ी दूर है |"
"आ गया भाई साहब ! आपका कॉलेज |" कंडक्टर ने सुधीर को जगाया, "तबियत ठीक है अब आपकी ?" "हाँ मैं ठीक हूँ |" सुधीर ने उनींदी आखों से बाहर देखा | फिर तेजी से बस से उतर गया | कॉलेज दिखायी दे रहा था, सर्द बैगनी छाँव में | कॉलेज के आसपास का पूरा गाँव धूप में नहाया हुआ था | तेज तेज क़दमों से सुधीर चलना लगा | "चलो " पीछे से कंडक्टर की आवाज आई , और बस आगे बढ़ गयी | सुधीर ने अपने को स्वस्थ महसूस किया | कदम आगे बढ़ाया ही था कि माथे में भयंकर पीड़ा शुरू हो गयी | "गुड मोर्निंग सर |" रमेश मफलर पहने हुए सामने खड़ा था | "सर , आप बड़ी जल्दी आ गए | सामान नहीं लाये |" उसने पूछा | सुधीर को याद आया कि उसके साथ कोई सामान नहीं है | "सर!" रमेश पीछे से चिल्लाता रह गया | कॉलेज के गेट के बगल से एक छोटी सी पगडण्डी थी | सुधीर उसी पगडण्डी पर चलने लगे | बस थोड़ी दूर और, सुधीर अपने आप से कहते जा रहे थे | थकान बढती जा रही थी , सुधीर को महसूस होने लगा था कि उन्हें ज्वर है | पगडण्डी मेंढक पहाड़ी के पास जाकर सर्पिलाकार तरीके से मुड़ गयी | जिससे वो रास्ता खत्म होने का आभास से रही थी | पहाड़ी के सिरे पर पहुंचकर सुधीर ने इधर उधर घूमकर देखा | फिर जल्दी से थैले को उलटकर राख हवा में उछाल दी | सुधीर को काफी हल्का महसूस हो रहा था मानों इस राख के साथ उसने अपने अस्तित्व का कुछ टुकड़ा भी हवा में बिखेर दिया हो | राख उड़ती हुई घाटी से नीचे गिर रही थी, इस उम्मीद में कि कभी हवा में उड़ते हुए वो शायद चौखम्भा पहुँच जाए | वो राख को देखता रहा, हम शापित लोग हैं |
can we do nothing for the dead ? And for a long time the answer had been - nothing! - Katherin Mansfield
अगले दिन मिस अर्चना, मीरा कुछ खाना लेकर आये | सुधीर रात भर अस्पताल में ही रहे | प्रोफ़ेसर उप्रेती के साथ वाले बिस्तर पर लेटे रहे | "अब कैसी तबियत है प्रोफ़ेसर उप्रेती की ?" मीरा ने पूछा | "अभी सो रहे हैं | रात भर कुछ -कुछ बोलते ही रहे | अभी जाकर सोये हैं |" सुधीर ने जवाब दिया | "डॉक्टर ने क्या कहा है ?" मिस अर्चना ने बैठते हुए कहा | "ठीक हैं | बस थोड़ा तनाव की वजह से | काफी कमज़ोर भी हो चले हैं, वजन सामान्य से काफी गिर गया है |" सुधीर ग्लूकोज़ की बोतल को खाली होते हुए देखता रहा | "तुम खाना खा लो" मीरा ने सुधीर की ओर खाने का डब्बा बढ़ा दिया | "कुछ रिपोर्ट्स आनी बाकी हैं , उसके बाद ही सही सही कुछ कहा जा सकता है |" सुधीर ने डब्बा मेज़ के ऊपर रखते हुए कहा | "ठीक है, अभी थोड़ी देर में स्वामी सर आयेंगे | वे रहेंगे प्रोफ़ेसर के पास | तुम खाना खा लो" अर्चना ने कहा | "यहाँ पौड़ी में धूप अच्छी आती है | थोड़ी चहल पहल रहती है तो महसूस होता है कि दुनिया में और लोग भी रहते हैं | मैं थोड़ा बाहर हो आती हूँ |" कहते हुए मीरा बाहर चली गयी |
"तुमने खाना खाया " सुधीर ने अर्चना की ओर देखकर पूछा | एक पल के लिए तुम कहना थोड़ा अजीब लगा, लेकिन अधूरी बात अधूरी नहीं रख पाया | अर्चना को अच्छा लगा, "नहीं, अभी नहीं |"
"तो आप भी अभी खा लो, काफी खाना रखा है मीरा जी ने |"
"तुम ही सही रहेगा |" मिस अर्चना मुस्कुराई |
सुधीर ने खाने के डब्बे को खोला | एक ख़ाली डिब्बे में आधी सब्जी डालकर अर्चना ने अपने पास ले लिया |
"क्या हम डॉली को खबर करें ?" अर्चना ने पूछा |
"मैंने पूछा था प्रोफ़ेसर से, उन्होंने मना किया |" खाने का कौर मुँह में डालते हुए सुधीर ने कहा |
"लेकिन...प्रोफ़ेसर की हालत...डॉली को पता तो होना ही चाहिए |" मिस अर्चना ने सुधीर को समझते हुए कहा, "क्या प्रोफ़ेसर ने साफ़ साफ़ मना किया ? तुमने पूछा या उन्होंने खुद कहा ?"
सुधीर खाना हाथ में लेकर रुक गए, "प्रोफ़ेसर रात भर डॉली के बारे में बात करते रहे | डॉक्टर बीच बीच में आके उन्हें चुप होने के लिए कह रहे थे | जब मैंने उनसे पूछा कि प्रोफ़ेसर क्या डॉली को यहीं बुला लें, तो उन्होंने मना कर दिया | इससे ज्यादा मैं पूछ नहीं सका |" धूप दरवाजे तक आ गयी थी | सुधीर ने दरवाजे की ओर देखा | अर्चना ने पीछे मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा, कोई नहीं था | "क्या बात है ?" अर्चना ने सुधीर की ओर देखकर पूछा |
"नहीं, कुछ नहीं | क्या तुम पूरी सर्दियाँ यहीं रहोगी ? अभी तुम्हें कोई क्लास नहीं मिली है | छुट्टियों के बाद ही वो सब होगा... एक -डेढ़ महीने बाद |"
"हाँ ... तुम लोग भी तो यहीं हो |"
शाम को वापस ट्रांसिट आकर सुधीर अपने कमरे में लेट गए | चाय पीने का मूड हुआ, उठकर बोयज़ हॉस्टल की ओर जाने लगे | होस्टल की ओर जाने वाली पगडण्डी से एक पल रूककर मेंढक पहाड़ी की ओर देखा, हम शापित लोग हैं , मन ही मन सोचा और फिर आगे बढ़ गए | बोयज़ हॉस्टल में फिफ्थ सेमेस्टर के ही कुछ स्टुडेंट रह गए थे | कुछ स्टुडेंट सुधीर के पास आये, वे प्रोफ़ेसर उप्रेती की तबियत के बारे में जानना चाहते थे | सुधीर का ध्यान बार बार भटक कर प्रोफ़ेसर के कहे वाक्य पर अटक रहा था कि हम शापित लोग हैं | डॉक्टर तुम यहाँ से कहीं और चले जाओ, और अर्चना को भी ..."वे ठीक हैं , कुछ ही दिनों में वापस आ जायेंगे |" सुधीर ने जल्दी से कहा | सुधीर को ऐसा लगा कि जाने से पहले उन्होंने उसे अविश्वास से देखा हो | रमेश को चाय बनाने को कहकर सुधीर एक खाली टेबल पर बैठ गए | हॉस्टल मेस पूरी तरह खाली थी | आज आखिरी पेपर ख़त्म होने के साथ आधे से ज्यादा हॉस्टल खाली हो चुका था | कल सारे लड़के चले जायेंगे | फिर हॉस्टल मेस बन्द हो जायेगी , सुधीर को अपने खाने का इंतजाम बाहर कहीं किसी होटल में करना होगा | सारे टीचर्स भी कल चले जायेंगे | दासगुप्ता सर ने भी सामान पैक कर लिया था, इंदिरा के विरोध के बावजूद | हम शापित लोग हैं ... स्माल सेल लंग कार्सिनोमा ... उफ़ |
तीन साल तक लंग कैंसर से लड़ने के बाद आखिर प्रोफ़ेसर ने अपनी लड़ाई रोक दी | डॉली से लड़ाई भी प्रोफ़ेसर जारी नहीं रख सके, उन्हें बुला लिया गया | प्रोफ़ेसर ने शोभा से दूसरी शादी की थी | डॉली , प्रोफ़ेसर की पहली पत्नी से हुई बेटी थी | अनुपमा, जिसे प्रोफ़ेसर ने तलाक़ दिया था | कुछ दिनों बाद, अनुपमा का शव पंखे से लटकता हुआ पाया गया | डॉली को प्रोफ़ेसर अपने पास लेकर आ गए | जिंदगी भर इस अपराधबोध से प्रोफ़ेसर मुक्त नहीं हो सके | शोभा ने बाद में डॉली को सब कुछ बता दिया था , जिसके बाद डॉली ने कभी प्रोफ़ेसर को माफ़ नहीं किया | अपनी माँ के नाम पर ही अनुपमा नाम डॉली ने अपना लिया |
देहरादून में ही प्रोफ़ेसर का अंतिम संस्कार करना निश्चित हुआ | मुखाग्नि देने के लिए सुधीर से कहा गया | सुधीर की यादों में अभी प्रोफ़ेसर की बातें चल रही थी | स्वामी को ये सब मत बताना, अर्चना और तुम भी कहीं और चले जाना | अर्चना का हाथ थामकर प्रोफ़ेसर बच्चों की तरह रोये थे, "मुझे माफ़ कर देना अनुपमा |"
शव आधा जल गया था | दहक वातावरण में अभी थी | सुधीर बोझिल क़दमों से पीछे पीछे हटे |
तीन दिन बाद राख ली जाती है | सुधीर ने अस्थियों को एक घड़े में भरा, और अनुपमा को दे दिया | राख के एक एक टुकड़े में प्रोफ़ेसर के होने का अहसास था | यार डॉक्टर, यहाँ पहाड़ों में अपनी जिंदगी खराब मत करो | हम लोग तो दुनिया से भागे हुए लोग हैं, तुम क्यूँ भाग रहे हो | राख जैसे पूरे शरीर में चढ़ती जा रही हो |
"पौड़ी!!! पौड़ी!!! " ऋषिकेश बस अड्डे पर पौड़ी की बस तैयार खड़ी थी , कंडक्टर हर आने जाने वाले से पूछ रहा था | सुबह के चार बजे थे | "भेजी, कहाँ जाना है ?" कंडक्टर ने सुधीर को हिलाकर पूछा | "पौड़ी" सुधीर की आँखें कहीं और देख रही थी | "वो वाली में बैठ जाओ |" कंडक्टर ने कहा | सुधीर जाने लगे तो कंडक्टर फिर से चिल्लाया - "अरे भैजी! इधर इधर |" जब ध्यान देने के बाद भी उसने देखा कि सुधीर के कदम कहीं के कहीं जा रहे हैं | उसने मन ही मन कुछ अंदाजा लगाया, भागकर आया | "भेजी ?" सुधीर की अधमुंदी आँखों में देखने लगा | हाथ पकड़ने की कोशिश की तो सुधीर ने हाथ में रखी प्लास्टिक की थैली अपने से सिमटा ली, जैसे कंडक्टर उससे वो थैली छीनना चाहता हो | उसने हाथ पकड़कर सुधीर को बस के अन्दर बिठा दिया | मन्दिर वाले बाबाजी आखिरी दिनों में चल नहीं पाते थे , जमीन पर घिसट घिसट कर चलते थे | "अर बेटा! सुना दे जरा गीता सार |"
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतं |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ||
"भाईसाहब !" कंडक्टर ने सुधीर को हिलाया, "आपकी तबियत तो ठीक है ?" सुधीर को याद आया, बाबाजी के साथ एक औरत रहती थी | माँ से उसने पूछा कि वो कौन है | वो उनकी चेरी है, माँ ने कहा | सुधीर को लगा कि पत्नी को कहते होंगे | ये तो उसे काफी दिनों बाद पता चला कि चेरी उस लड़की को कहते है, जो किसी बाबा के साथ भाग आई होती है |
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ||
कंडक्टर ने सुधीर का माथा छुआ "शायद थोड़ा ज्वर है आपको, बस थोड़ी दूर और है आपका कॉलेज | कॉलेज के टीचर हैं न आप ?" सुधीर ने ठंडा हाथ अपने माथे पर महसूस करके आँखें खोली | "हाँ, हाँ कॉलेज ही जाना है | आया क्या ?" कंडक्टर ने तसल्ली जैसे देते हुए कहा , "बस थोड़ी दूर है |"
"आ गया भाई साहब ! आपका कॉलेज |" कंडक्टर ने सुधीर को जगाया, "तबियत ठीक है अब आपकी ?" "हाँ मैं ठीक हूँ |" सुधीर ने उनींदी आखों से बाहर देखा | फिर तेजी से बस से उतर गया | कॉलेज दिखायी दे रहा था, सर्द बैगनी छाँव में | कॉलेज के आसपास का पूरा गाँव धूप में नहाया हुआ था | तेज तेज क़दमों से सुधीर चलना लगा | "चलो " पीछे से कंडक्टर की आवाज आई , और बस आगे बढ़ गयी | सुधीर ने अपने को स्वस्थ महसूस किया | कदम आगे बढ़ाया ही था कि माथे में भयंकर पीड़ा शुरू हो गयी | "गुड मोर्निंग सर |" रमेश मफलर पहने हुए सामने खड़ा था | "सर , आप बड़ी जल्दी आ गए | सामान नहीं लाये |" उसने पूछा | सुधीर को याद आया कि उसके साथ कोई सामान नहीं है | "सर!" रमेश पीछे से चिल्लाता रह गया | कॉलेज के गेट के बगल से एक छोटी सी पगडण्डी थी | सुधीर उसी पगडण्डी पर चलने लगे | बस थोड़ी दूर और, सुधीर अपने आप से कहते जा रहे थे | थकान बढती जा रही थी , सुधीर को महसूस होने लगा था कि उन्हें ज्वर है | पगडण्डी मेंढक पहाड़ी के पास जाकर सर्पिलाकार तरीके से मुड़ गयी | जिससे वो रास्ता खत्म होने का आभास से रही थी | पहाड़ी के सिरे पर पहुंचकर सुधीर ने इधर उधर घूमकर देखा | फिर जल्दी से थैले को उलटकर राख हवा में उछाल दी | सुधीर को काफी हल्का महसूस हो रहा था मानों इस राख के साथ उसने अपने अस्तित्व का कुछ टुकड़ा भी हवा में बिखेर दिया हो | राख उड़ती हुई घाटी से नीचे गिर रही थी, इस उम्मीद में कि कभी हवा में उड़ते हुए वो शायद चौखम्भा पहुँच जाए | वो राख को देखता रहा, हम शापित लोग हैं |
can we do nothing for the dead ? And for a long time the answer had been - nothing! - Katherin Mansfield
: निर्मल वर्मा के लिए
3 comments:
नीरवता सी छा गयी पढ़ने के बाद।
aapke blog pe is post pe tippani option band hai...
sunya ho raha hai man....is kahani ke
bad.....
sadar
Nirmal's writing can be enjoyed in company of two essential "W"s only.
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