Sunday, March 6, 2011

ग्लूस्काबे के बाल

लातीन अमेरिकी मिथकों वाली कल की पोस्ट का अगला हिस्सा.


हवा

जब ईश्वर ने पहले वावेनौक इंडियनों की सृष्टि की, धरती की सतह पर थोड़ी मिटटी बच रही थे. इस बची-खुची गीली मिटटी से ग्लूस्काबे ने अपने आप को बना लिया.

ऊपर स्वर्ग से ईश्वर ने हैरत में आकर उससे पूछा - "तुम कहाँ से आए?"

"मैं अद्भुत हूँ." ग्लूस्काबे ने जवाब दिया "मुझे किसी ने भी नहीं बनाया."

ईश्वर ने नीचे उतरकर उसकी बग़ल में खड़े होकर अपने हाथ से ब्रह्माण्ड की तरफ इशारा किया और कहा - "मेरी रचना को देखो. अगर तुम इतने ही अद्भुत हो तो मुझे दिखाओ तुमने क्या-क्या रचा है."

"अगर मैं चाहूं तो मैं हवा का निर्माण कर सकता हूँ."

ऐसा कहकर ग्लूस्काबे ने अपने फेफड़ों की पूरी ताकत से फू-फू किया.

हवा बाहर निकली और तुरंत समाप्त हो गई.

"मैं हवा को बना तो सकता हूँ पर उसे हमेशा के लिए बनाये नहीं रख सकता." ग्लूस्काबे ने झेंपते हुए स्वीकार किया.

इस बार ईश्वर ने हवा बाहर निकाली और इतनी तेज़ कि ग्लूस्काबे ज़मीन पर गिर पड़ा और हवा में उसके सारे बाल उड़ गए.

(चित्र -कनाडा के नोवा स्कॉशिया के एक कचोटे से क़स्बे पार्स्बोरो में ग्लूस्काबे की मूर्ति. ग्लूस्कोबे पर एक ख़ासी बड़ी पोस्ट इस सीरीज़ के समाप्त होने पर)

7 comments:

अजेय said...

ohhhhh....वह बन्दा ईश्वर से हार गया. अफसोस!

अजेय said...

ohhhhh....वह बन्दा ईश्वर से हार गया. अफसोस!

अजेय said...

ohhhhh....वह बन्दा ईश्वर से हार गया. अफसोस!

अजेय said...

ohhhhh....वह बन्दा ईश्वर से हार गया. अफसोस!

अजेय said...

ohhhhh....वह बन्दा ईश्वर से हार गया. अफसोस!

प्रवीण पाण्डेय said...

एकदम नया।

Neeraj said...

आदमी के अन्दर ग्लुस्काबे जिन्दा है अभी , वही दुनिया बनाने की जिद ...