किसी भी शहर से संवाद स्थापित करने में बरसों लग जाते हैं. और उसमें अंतरंगता लाने में तो खैर उस शहर के सूक्ष्म संकेतों, उसके मिज़ाज को भी महारत से पकड़ना पड़ता है. जोधपुर शहर का भी अपना विशिष्ट व्यक्तित्व है जिसमें कई नायाब बातें और अनूठे राज़ है, इसे आप चाहें तो उसका 'मन' कह सकतें है. जोधपुर के बारे में बिलकुल अनूठी और दिलचस्प बातों का पिटारा मनीष सोलंकी के पास है जो यहीं के 'जन्मे जाये' हैं और जिनके पास एक प्यारी सी कलम भी है. उनके जोधपुर पर एक आलेख का एक अंश यहाँ आपके लिए, उनसे साभार.
- दो ब्रेड के बीच में मिर्ची बड़ा दबा कर खाना यहाँ का ख़ास ब्रेकफास्ट माना जाता है.
- मिठाई की दुकान पर खड़े खड़े आधा किलो गुलाब जामुन खाते जोधपुर में सहज ही किसी को देखा जा सकता है.
- गर्मी से बचाव के लिए चूने में नील मिलाकर पोतने का रिवाज़ सिर्फ और सिर्फ जोधपुर में ही है.
- यहाँ की परंपरा में गालियों को घी की नालियां कहा जाता है. तभी तो गाली देने पर यहाँ का बाशिंदा नाराज़ नहीं होता, क्योंकि गाली भी इतने मीठे तरीके से दी जाती है, उसका असर नगण्य हो जाता है.
- बेंतमार गणगौर जैसा त्योहार सिर्फ जोधपुर में ही मनाया जाता है, जिसमें पूरी रात सड़कों पर सिर्फ महिलाओं की हुकूमत चलती है.
- दाल-बाटी, चूरमा के लिए जोधपुर में कहा जाता है,दाल हँसती हुई, चूरमा रोता हुआ और बाटी खिलखिल होनी चाहिए. यानि दाल चटपटी मसालेदार, चूरमा ढेर सारे घी वाला और बाटी सिककर तिड़की हुई होनी चाहिए.
- के. पी. यानि खांचा पोलिटिक्स की ट्रिक ख़ास जोधपुरी अंदाज़ है, जिसमे भीड़ से किसी भी आदमी को सबके सामने चुपचाप कोने में ले जाकर सिर्फ इतना पूछा जाता है - कैसे हो आप.
- जोधपुरियंस का ख़ास जुमला है 'काई सा' और 'किकर'. इसका अर्थ है कैसे हैं? इन दिनों क्या चल रहा है.
- 'चेपी राखो' इस शब्द का जोधपुर में मतलब है, जो काम कार रहे हो उसमें जुटे रहो.
- मिर्ची बड़ा, मावे की कचौरी और मेहरानगढ़ पर हर जोधपुर वासी को गर्व है.
- पानी की सप्लाई होते ही घर के आँगन को धोने का रिवाज़ जोधपुर में ही है.
- गली के नुक्कड़ पर पत्थर की खुली कुण्डी जोधपुर में लगभग हर जगह मिल जायेगी, जहां घर का बचा खुचा बासी भोजन गायों के लिए डाला जाता है.
- किसी भी काम के लिए सीधे मना करने की आदत किसी भी जोधपुरियन की नहीं होती. बहाने बना कर टाल देंगे, मगर सीधे मना नहीं करेंगे. जोधपुर में इस शैली के लिए ख़ास शब्द है- गोली देना.
- फास्ट फ़ूड के नाम पर पिज्ज़ा-बर्गर के मुकाबले मिर्ची बड़ा और प्याज की कचौरी पसंद की जाती है.
- सड़क पर जाम में फंसने के बजाय जोधपुरी लोग पतली गलियों से निकल जाना पसंद करते हैं.
- घंटा घर जोधपुर में ऐसी जगह है, जहां पैदा होते बच्चे के सामान से लेकर अंतिम संस्कार तक का सारा सामान मिल जाता है.
7 comments:
जोधपुर के बारे में कितना कुछ जाना।
जोधपुर ओ जोधपुर. वाह
किसी शहर की नब्ज पर हाथ रख देना इसी को कहते होंगे..तमाम चीजें जो किसी शहर को वह शहर बनाती हैं..अक्सर लम्बा वक्त वहाँ गुजारने के बावजूद नही दिख पाती..ऐसी पोस्ट्स मदद करती हैं किसी जगह के उस वक्त के साथ के रिश्ते को समझने मे..वैसे गोली देना अब नेशन-वाइड फिनामिनॉ हो गयी है..सरकारें भी अक्सर इसी लेमन्चूस के सहारे पांच साल गुजार ले जाती हैं..
जोधपुर वाले ख़ुद को जोधपुरियन कहते हैं? हमारे इधर अख़बारों के 'क्रियोल' वाले पन्नों में जयपुरियों को जयपुराइट्स तो कहा ही कहा जाता है।
"गोली देना" मुहावरा ख़ास राजस्थानी है, इस बात का भान भी कोश देखकर अभी हुआ। क्या इसका गोली नाम की जाति वालों से संबंध है, जिनकी औरतें दुल्हन के साथ (या शायद पहले) ससुराल भेजी जाती थीं? हमारे एक राजपूत जानकार इसी जाति के हैं।
सोनू जी,
गोली देना मुहावरे को किसी जाति विशेष से जोड़ना शायद इसे अनावश्यक रूप से कुछ ज़्यादा खींचना है.ध्यान दें, राजस्थानी में इसे 'गोळी देना'कहा जाता है. शुक्रिया आमद का.
majedar jankari mili....jodhpur yatra ki yad taza ho gayee.....dhanyvad..
जी, मैं मारवाड़ी नहीं जानता हूँ।
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