Monday, April 25, 2011

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - ७


(पिछली किस्त से जारी)

उसे बस दो ही अन्डॆ और फेंटने बाकी थे. बाक़ी सारी चीज़ें तैयार थीं - बस केक बनना था. बीस तरह के व्यंजन तैयार हो चुके थे और खाने से पहले वाले एपीटाइज़र भी. रसोई में तीता, नाचा और मामा एलेना ही थे. चेन्चा, गरत्रूदिस और रोसौरा वैडिंग ड्रेस में आख़िरी टांके लगाने में मशगूल थीं. चैन की सांस लेती हुई नाचा ने दो बचे हुए अण्डों में से एक को तोड़ने के लिए उठाया ही था इ तीता चिल्लाई -

"नहीं!"

तीता ने केक को फेंटना बन्द कर दिया और अण्डे को अपने हाथों में पकड़ लिया., आवाज़ बिल्कुल साफ़ थी, उसे अण्डे के भीतर से चूज़े की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. उसने अण्डे को अपने कानों के पास ले जा कर उस आवाज़ को और ज़ोर से सुना. मामा एलेना ने अपने काम रोक कर अधिकारपूर्ण आवाज़ में कहा -

"क्या हुआ? क्यों चिलाईं तु?"

"क्योंकि अण्डे के भीतर एक चूज़ा है. नाचा ने उसे नहीं सुना पर मैंने सुना."

चूज़ा? क्या पागल हो गई हो? ऐसा आज तक नहीं हुआ!"

दो लम्बे-लम्बे कदमों के साथ ही मामाएलेना तीता के बग़ल में आ खड़ी हुईं. उन्होंने तीता के हाथ से अण्डा लेकर फोड़ दिया. टिता ने जितना हो सकाअ था कस कर आंखें बन्द कर लीं.

"आंखें खोलो और देख लो अपना चूज़ा."

तीता ने धीमे-धीमे आंखें खोलीं. तीता ने देखा कि जिसे वह चूज़ा समझ रही थी वह ताज़ा अण्डा था.

"एक बात और ध्यान से सुनो, तीता. तुम मेरे धैर्य की परीक्षा ले रही हो. मैं तुम्हें ऐसे पागलॊं की तरह व्यवहार नहीं करने दूंगी. यह पहली और आख़िरी बार है. बरना जान लो तुम्हें पछताना पड़ेगा."

तीता की समझ में नहीं आया कि उस रात उसे क्या हो गया था. जो आवाज़ उसने सुनी थी वह थकान के कारण थी या उसे कोई भ्रम हुआ था. उस समय तीता को यही करना था कि वह केक को फेंटती रहती क्योंकि मामा एलेना के धैर्य की प्रतीक्षा लेने की उसे कोई इच्छा न थी.

जब आख़िरी दो अण्डे भी फेंट लिए जाएं, नीबू के छिलकों को भी फेंट लें जब मिश्रण काफ़ी गाढ़ा हो जाए, फेंटना बन्द कर पहले से फेंटा हुआ आटा भी उसमें मिला लें. लकड़ी की चम्मच से इस पूरे मिश्रण को एकसार बना लें. आख़िर में एक बरतन पर घी चुपड़क, थोड़ा सा आटा फैला कर, उसमें सारा मोश्रण डालकर तीस मिनट तक बेक करें.

तीन दिन तक लगातार बीस तरह के व्यंजन पका चुकने के बाद नाचा थक चुकी थी. केक को ओवन में डालने का इन्तज़ार उससे नहीं हो रहा था ताकि उसके बाद वह आराम कर सके. आज तीता भी हमेशा जैसी सहायक नहीं थी. ऐसा नहीं था कि उसने कोई शिकायत की थी - पर जैसे ही मामा एलेना रसोई से अपने कमरे की तरफ़ गईं - तीता ने एक लम्बी सांस छोड़ी. नाचा चम्मच अपने हाथ से नीचे रखा और तीता को गले से लिपटा लिया -

"अब हम रसोई में अकेले हैं. चलो मेरी बच्ची, अब जितना मर्ज़ी चाहो रो लो क्योंकि कल मैं यह नहीं चाहूंगी कि कोई तुम्हें रोता हुआ देखे. कम से कम रोसौरा तो हर्गिज़ नहीं."

नाचा ने तीता को काम करने से रोक दिया क्योंकि उसे लगा तीता कभी भी अचेत हो सकती है. अलबत्ता तीता की मनःस्थितिके लिए उसके पास शब्द नहीं थे लेकिन नाचा जानती थी तीता से अब काम नहीं हो पाएगा. असल में अब उस से भी यह सब नहीं हो सकता था. नाचा को रोसौरा के खाने की आदतें पसन्द नहीं थीं - बचपन से ही वह अपनी नापसन्द चीज़ों को मेज़ पर ही छोड़ देती थी या खाना तेकीला को खिला देती थी. तेकीला, रैन्च के कुत्ते, पुल्के का पिता था. वहीं तीता कुछ भी खा लेती थी. तीता को केवल कम उबले अण्डे नहीं भाते थे जिन्हें मामा एलेना उसे जबरन खिलाया करती थीं. तीता उन सारी चीज़ों को खा लिया करती थी रोसौरा जिन्हें देखकर भयभीत हो जाया करती. रोसौरा और नाचा कभी नज़दीक नहीं रहे थे. दर असल नाचा को रोसौरा नापसन्द थी और दो बहनों की प्रतिद्वन्द्विता अब इस मुकाम पर खत्म हो रही थी जब रोसौरा की शादी उस व्यक्ति से हो रही थी जिसे तीता प्यार करती थी. रोसौरा निश्चित तो नहीं थी पर उसे लगता था कि तीता के लिए पेद्रो पा प्यार कभी ख़त्म नहीं होगा. नाचा हमेशा तीता के पक्ष में होती थी और तीता का दर्द कम करने के लिए कुछ भी करने को सदैव तत्पर. अपने एप्रन से उसने उन आंसुओं को पोंछा जो तीता के गाल पर लुढ़क रहे थे और बोली -

"अब , मेरी बच्ची, हमें केक बनाना चाहिए."

इस काम में थोड़ा अधिक देर लग गई क्योंकि मिश्रण गाढ़ा नहीं हो पा रहा था. यह इस वजह से था कि तीता का रोना बन्द नहीं हुआ था.

सो, तीता और नाचा, एक दूसरे से लिपटे हुए तब तक रोते रहे जब तक कि सारे आंसू खत्म नहीं हो गए. उसके बाद तीता बिना आंसुओं के रोती रही, जो, कहते हैं ज़्यादा दर्द करता है. लेकिन कम से कम अब केक का मिश्रण गीला नहीं हो रहा था. अब वे अगली प्रक्रिया शुरू कर सकते थे - यानी फ़िलिंग तैयर करना.

(जारी)

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