Thursday, April 28, 2011

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - १०

(पिछली किस्त से जारी)


"क्या तुमने तीता को देखा? बेचारी. उसकी बहन उसके प्रेमी से शादी करने जा रही है. एक दिन मैंने उन दोनों को बाज़ार में एक दूसरे का हाथ थामे हुए देखा था. वे बहुत ख़ुश लग रहे थे."

"क्या बात करती हो? पाकीता का कहना है कि एक दिन चर्च में उसने पेद्रो को तीता को प्रेमपत्र देते हुए देखा था - ख़ुशबू वगैरह के साथ."

"लोग कह रहे हैं कि वे एक ही मकान में रहने वाले है. अगर मैं मामा एलेना की जगह होती तो ऐसा हरगिज़ न होने देती."

"पता नहीं कैसे वो ये सब सहन कर ले रही हैं, कितनी बातें हो रही हैं पूरे इलाके में."

तीता ने इन बातों की ज़रा भी परवाह नहीं की. वह पराजित की भूमिका निभाने के लिए नहीं बनी थी, वह विजेता की मुद्रा ओढ़ेगी. एक महान अभिनेत्री की तरह उसमे अपना हिस्सा बख़ूबी निभाया, उन ची़ओं के बारे में सोचते हुए जिनका शादी, पादरी, चर्च, अंगूठी वगैरह से कोई लेना-देना नहीं था.

उसे याद आया एक दिन जब वह नौ साल की थी उसने लड़कों के साथ खेलने का फ़ैसला किया था. हालांकि उसे लड़कों के साथ खेलने की इजाज़त नहीं थी पर वह अपनी बहनों के खेलों से ऊब चुकी थी. गाम्व के कुछ लड़कों के साथ भागकर वह रियो ग्रान्दे नदी तक पहुंची. वहां तेज़ तैरने की बाज़ी लग गई. इसमें वह जीत गई थी - उसे याद आया उसे अपने ऊपर कितना गर्व हुआ था उस दिन.

एक और शान्त रविवार को उसने एक अन्य जीत हासिल की थी . वह चौदह की थी और अपनी बहनों के साथ घोड़ागाड़ी की सवारी पर निकली थी, जब एक शरारती लड़के ने पटाख़े चला दिए. घोड़े गांव की दिशा से बाहर भागते चले गए.

तीता ने कोचवान को एक तरफ़ धकेला और अकेले उन घोड़ों कॊ काबू किया. जब तक गांव के चार घुड़सवार उनकी मद को पहुंचते सब ठीक हो चुका था - उन्हें भयंकर आश्चर्य हुआ कि तीता ने अकेले ...

गांव वालों ने क्या ज़बरदस्त स्वागत किया था उसका.

तीता ने अपना ध्यान ऐसी ही स्मृतियों की तरफ़ लगाए रखा ताकि उसके चेहरे पर सन्तुष्ट मुस्कराहट बनी रह सके. लेकिन अब शादी के चुम्बन का समय था और रोसौरा को बधाई देनी थी. पेद्रो जो रोसौरा के साथ खड़ा था, उस से बोला -

"और मैं, क्या मुझे बधाई नहीं दोगी?"

"क्यों नहीं! मुझे उम्मीद है तुम प्रसन्न रहोगे."

पेद्रो इस समय उसके काफ़ी नज़दीक खड़ा था -जितना परम्परा अनुमति देती थी उस से अधिक. इस मौके का फ़ायदा उठाकर पेद्रो उसके कान में फुसफुसाया -

"मुझे उम्मीद है मैं प्रसन्न रहूंगा क्योंकि इस शादी के माध्यम से मैंने वह पा लिया है जो मैं चाहता था - तुम्हारे नज़दीक रह पाने का अवसर क्योंकि मैं केवल तुम्हें सच्चा प्यार करता हूं."

ताज़ी हवा की तरह थे ये शब्द तीता के लिए. जो आग बिल्कुल बुझ चुकी थी वह दुबारा जल गई. पिछले कुछ महीनों तक उसे अपनी भावनाओं को लगातार छिपाना पड़ा था पर अब उसके चेहरे पर खुशी और सन्तोष के भाव स्पष्ट थे. उसकी आन्तरिक ख़ुशी जो मर चुकी थी, पेद्रो की गरम सांस से पुनर्जीवित हो उठी, जो उसकी गरदन पर पड़ रही थी. उसके गरम हाथों का उसकी पीठ पर स्पर्श, उसका सीना तीता की छातियों से सटा हुआ ... वह हमेशा पेद्रो की बांहों में रह सकति थी पर मामा एलेना की तीखी निगाह देखकर वह एकदम से अलग हो गई. मामा एलेना तीता के पास आईं -

"क्या कहा पेद्रो ने तुमसे?"

(जारी - अगली किस्त में अध्याय दो का समापन)

1 comment:

Pawan Kumar said...

27 और 28 अप्रैल को लिखी दोनों पोस्ट एक साथ पढ़ डाली..... वैसे अगली पोस्ट का बेसब्री से इन्तिज़ार है,
पुलित्ज़र पुरुस्कार से सम्मानित लेखिका, कवयित्री, इतिहासकार. गीतकार, नाटककार, नृत्यांगना, मंच व फ़िल्म निर्देशिका, अभिनेत्री और जनाधिकार कार्यकत्री समाया एन्जेलू. की कविता पढ़ने का आभार........ अश्वेत महिला होने वाबजूद एन्जेलू ने खासा नाम कमाया जो उनकी जीवटता का ही प्रतीक है ..... उम्दा लेखन है दोस्त. क्या पंक्तियाँ है.......वाह वाह

एक आज़ाद चिड़िया फुदकती है
हवा की पीठ पर और तैरती जाती है धारा के साथ
जब तक कि धारा ख़त्म नहीं हो जाती. तब वह डुबोती है अपने पंखों को