Tuesday, April 26, 2011

न्यूयॉर्क का अन्तिम संस्कार

समकालीन अरबी कविता के स्तम्भों में एक अली मोहम्मद सईद अस्बार ने अदूनिस के उपनाम से कविताएं कीं. आज अदूनिस से आपका परिचय करवा रहा हूं -



धरती

कितनी बार कहा है तुमने मुझसे
"मेरे पास एक दूसरा देश है"
तुम्हारी हथेलियां भरती हुईं आंसुओं से
और तुम्हारी आंखें
भरती हुईं बिजली से
ठीक जहां सरहदें पास आने को होती हैं
क्या तुम्हारी आंखें धरती को जानती हैं
जब भी वह रोती है या तुम्हारे कदमों में उल्लास भर देती है
इस जगह जहां तुम गीत गा चुके, या वहां
जहां वह तुम्हारे सिवा हरेक राहगीर को पहचानती है
और जानती है कि वह एक है
सूखी हुई छातियां, भीतर से सूखीं,
और यह कि उसे अस्वीकार के अनुष्ठान के बारे में नहीं पता.

क्या तुम्हारी आंखों ने महसूस किया
कि खुद तुम ही धरती हो?

न्यूयॉर्क का अन्तिम संस्कार

धरती को एक नाशपाती
या एक स्तन की तरह सोचो.
ऐसे फलों और मृत्यु के बीच
बची रहती है एक अभियान्त्रिकी तरकीब -
न्यूयॉर्क,
इसे आप एक चौपाया शहर कह सकते हैं
जो हत्या करने को आगे बढ़ रहा है
जबकि सुदूर
अभी से कराहने लगे हैं डूब चुके लोग.
न्यूयॉर्क एक स्त्री है
इतिहास के मुताबिक जिसका एक हाथ
थामे है स्वनतन्त्रता नाम का चीथड़ा
और दूसरा घोंट रहा है धरती का दम.

3 comments:

Dinesh pareek said...

वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक

Dinesh pareek said...

वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक

बाबुषा said...

अदूनिस की और कवियाएं छापिए.