मैं हूं - २
सुन्दर चन्द ठाकुर
अब उम्र मुझ पर हावी हो रही है
बहुत आहिस्ता वह हमेशा अपना असर दिखाती ही रही थी
आहिस्ता-आहिस्ता वह कहां पहुंच गई
जबकि मैंने जैसे अभी जन्म ही लिया है
मैं विस्मय से देखता हूं चीज़ों को
और अभिभूत होता हूं
एक चिड़िया की ख़ूबसूरती के आगे समर्पण कर देता हं
प्रकृति और पृथ्वी की सुन्दरता
इनका कहना ही क्या
वह मुझे हमेशा ही सम्मोहित कर जाती है
जैसे किशोर वय में स्त्री का खुला जिस्म सम्मोहित करता रहा
अब तो और भी ज़्यादा
इन्सान की जिजीविषा से ज़्यादा सुन्दर कुछ कहां
मैं बच्चा ही बने रहना चाहता था
संरक्षित और ग़लत बातों, विचारों, मंतव्यों से अनभिज्ञ
मगर मैं जान गया हूं अब बहुत कुछ
यही जानना जी का जंजाल बना
सोचने लगा हूं कि जीवन के कुछ तो मायने होने चाहिए
जीवन के क्या मायने हो सकते हैं
कि उसे जिया गया भरपूर
अच्छे भोजन अच्छे स्वास्थ्य और सुन्दर चीज़ों के बीच
एक विचारधारा भी हो तो बेहतर
मगर मैं उस दौर में बड़ा हुआ जब विचारधाराएं खोखली पड़ गईं थीं
हंसिये के नीचे फ़सल के हरे के बजाय खून का लाल दिखने लगा जब
विद्वज्ज्न बापू की लंगोट खींचने पर आमादा थे
रहस्य बेपर्दा होते रहे जब और चीज़ें रहस्यमयी होने लगी थीं
अब मैं कहता हूं कि जीवन के कुछ मायने नहीं होते हुए भी उसका मायना है
क्योंकि वह होता है और एक उम्र जीता है
मैं हूं
जहां भी हूं जैसा भी हूं जैसे भी हूं
मैं हूं
यही है जीवन का मायना
हिलता हुआ, सांस लेता हुआ, सोचता हुआ
जीवन में प्रेम है या नहीं
विचारधारा है या नहीं
रस है या नीरस
खुलती भोर में डूबती शाम में
बारिश अंधड़ झुलसती गर्मी में
भरा हुआ कभी खाली
खुश होता हंसता कभी रोता उदासी में सिकुड़ता
मैं हूं!
(जारी- अगले हिस्से में समाप्य)
3 comments:
आपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
नयी-पुरानी हलचल
खुश होता हंसता कभी रोता उदासी में सिकुड़ता
मैं हूं!
Bahut Khub,,,,,,,,,,
अब मैं कहता हूं कि जीवन के कुछ मायने नहीं होते हुए भी उसका मायना है
क्योंकि वह होता है और एक उम्र जीता है
bahut sunder.
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