Saturday, June 23, 2012

वो मेरी भूख को भी अब कुपोषण ही बताता है

ख्यात जनकवि बल्ली सिंह चीमा की एक नई गज़ल पेश है. इत्तेफाक है कि बल्ली भाई अभी हल्द्वानी में मेरे घर पर विराजमान हैं और  ये गज़ल उन्होंने बाकायदा डिक्टेट कर के लिखाई है. 


पराई कोठियों में रोज संगमरमर लगाता है
किसी फुटपाथ पर सोता है लेकिन घर बनाता है

लुटेरी इस व्यवस्था का मुझे पुरजा बताता है
वो संसाधन गिनाता है तो मुझको भी गिनाता है

बदलना चाहता है इस तरह शब्दों व अर्थों को
वो मेरी भूख को भी अब कुपोषण ही बताता है

यहाँ पर सब बराबर हैं ये दावा करने वाला ही
उसे ऊपर उठाता है मुझे नीचे गिराता है

मेरे आज़ाद भारत में जिसे स्कूल जाना था
वो बच्चा रेल के डिब्बों में अब झाड़ू लगाता है

तेरे नायक तो नायक बन नहीं सकते कभी 'बल्ली'
कोई रिक्शा चलाता है तो कोई हल चलाता है



पुनश्च - इस गज़ल का अंग्रेज़ी अनुवाद  हाल के दिनों में अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच के एक अंक के लिए किया गया है. उसे भी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. अनुवाद निशा थपलियाल, विकास गुप्ता और यमल गुप्ता का है.

Lays marble in strangers houses
Makes houses but sleeps on the footpath
He counts me as a tool of this predatory system;
He counts me only when he counts the resource.
He who claims that everyone is equal;
Pulls me down and elevates others.
He plays with words and meanings;
My hunger is only malnutrition to him now.
In my free India who was supposed to go to school;
That child now sweeps the floor in trains.
Your heroes will never be called heroes, Balli!
Some pull rickshaws and some heave ploughs.

12 comments:

Unknown said...

touching !

Unknown said...

touching !

प्रशान्त said...

कड़वा मगर सच..सोलहों आने सच...गज़लगोई शानदार...

प्रशान्त said...

कड़वा मगर सच..सोलहों आने सच...गज़लगोई शानदार...

Unknown said...

मेरे आज़ाद भारत में जिसे स्कूल जाना था
वो बच्चा रेल के डिब्बों में अब झाड़ू लगाता है

तेरे नायक तो नायक बन नहीं सकते कभी 'बल्ली'
कोई रिक्शा चलाता है तो कोई हल चलाता है

adam kee yad aaee,
bahut khoob

sanjay patel said...

बल्ली भाई को मेरे विनम्र वंदन.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बदलना चाहता है इस तरह शब्दों व अर्थों को
वो मेरी भूख को भी अब कुपोषण ही बताता है

यहाँ पर सब बराबर हैं ये दावा करने वाला ही
उसे ऊपर उठाता है मुझे नीचे गिराता है

सच्चाई को बयान करती प्रस्तुति

virendra sharma said...

लुटेरी इस व्यवस्था का मुझे पुरजा बताता है
वो संसाधन गिनाता है तो मुझको भी गिनाता है
सारी गडबड व्यवस्था गत दोष की है एक मंत्रालय का नाम ही यहाँ मानव संसाधन मंत्रालय है मंत्री जी से पूछा जाए क्या मानव भी संसाधन है या संसाधन मानव के लिए हैं ?

गुड्डोदादी said...

विह्लल
अश्रु पूर्ण

मेरे आजाद भारत के कल का नेता आज ईंट गारा
ढोता है

अफ़लातून said...

बल्ली सिंह चीमा को सलाम ।

Unknown said...

balli saheb ke tewar barkarar rahen..salam.

Surendra Chaturvedi said...

kaise bhi ye shabd un bhagyavidhataon ke kano tak bi pahuncen jo dehs ki neetiyan banate waqt sabse nichle paydan par baaithon ko sirf mohra samjhte hain....Bhrashtindia.blogspot.com