संगोष्ठी में आशुतोष कुमार, शेखर जोशी और राजेन्द्र कुमार |
इलाहाबाद के साहित्यिक बिरादरी के सबसे खास
पुरनिये शेखर जोशी पर जन संस्कृति मंच (कविता समूह) और परिवेश द्वारा बहुत दिन बाद
इलाहाबाद वापस आने पर 20 जुलाई 2013 को
संगोष्ठी का आयोजन किया गया. पर ‘नई कहानी के चर्चित
कहानीकार शेखर जोशी के बजाय चर्चा के केन्द्र में था शेखर जोशी का कवि रूप जो उनके
कहानीकार रूप में विकास का एक हद तक साक्षी भी था’. यह बात
उनके प्रथम कविता संग्रह ‘न रोको उन्हे शुभा’ की चर्चा पर प्रायः सभी वक्ताओं द्वारा संज्ञान में ली गई. संग्रह की
भूमिका कवि वीरेन डंगवाल द्वारा लिखी गई है और लेखक द्वारा उसका समर्पण कवि
हरीशचन्द्र पांडेय के लिए किया गया है. अस्सी पार शेखर जी को अपने बीच पाकर जहाँ
शहर का साहित्यिक समाज गदद था वहीं इलाहाबाद के छूटने का दर्द कई बार शेखर जी की
आँखों से बाहर आने को आतुर दिखा.
संगोष्ठी में प्रथम वक्ता के रूप में शहर इलाहाबाद के मशहूर कवि
हरीशचन्द्र पांडेय को सुनना बेहद महत्त्वपूर्ण रहा. अपने सधे हुए वक्तव्य में
उन्होंने रेखाँकित किया कि शेखर जोशी की कविता में सिर्फ पहाड़ का सौन्दर्य ही
नहीं, श्रम का सौन्दर्य भी शामिल है. यथार्थ की जटिलताओं
से टकराती उनकी कविताओं में कलात्मक सन्धान के साथ कथ्य भी है. वस्तुतः वह जिस
यथार्थ के अनुभव से रूबरू होते हैं, उसकी जटिलताएं कविता में
संकेत के रूप में सामने आती हैं और कहानियों में इन्हें विस्तार मिलता है. वह अगर
कविता भी लिखते तो उतने ही बड़े कवि होते है जितने बड़े कहानीकार हैं. दिल्ली से आए
जन संस्कृति मंच, कविता समूह के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. आशुतोष
कुमार ने शेखर जोशी को श्रम के सौन्दर्य के साथ-साथ श्रम की विडंबना के कवि के रूप
में याद किया और कहा कि उनकी कविताओं में कई ऐसे सूत्र मिलाते हैं जिनसे नई कहानी
के संघर्ष को भी समझा जा सकता है.
इस अवसर पर बोलते हुए शेखर जोशी ने कविता के सौन्दर्य के बजाए इनकी
रचना प्रक्रिया को खोलना महत्त्वपूर्ण समझा. कई कविताओं के पाठ और इनके लिखे जाने
की स्थितियों पर प्रकाश डाला. उनका कहना था कि विचलित करने वाली स्थितियों में
बनने वाले रचनात्मक दबाव से ही यह कविताएं लिखी जा सकी है. इनका समय करीब 55
से 60 साल के लम्बे अंतराल में फैला हुआ है.
मैं नही जानता कि इन कविताओं के पसन्द किए जाने के पीछे इनकी गुणवत्ता है या मेरे
प्रति प्यार, लेकिन इनके सृजन के लिए मेरा परिवेश ही मुझे
जब-तब प्रेरित करता रहा है. इस अवसर पर उन्होंने सिख विरोधी दंगों के समय लिखी गई
लम्बी कविता ‘अखबार की सुर्खियों में चला गया करतार’ के साथ- साथ ‘पाखी के लिए’, ‘अस्पतल
डायरी’, आदि कई कविताएं सुनाकर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया.
अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ आलोचक राजेन्द्र कुमार ने कहा कि शेखर
जी की कविता में परिवेश और उसकी स्मृति-विस्मृति को फिर से जी लेने की इच्छा
व्यक्त हुई है. उनकी कविता जीवन का रीटेक है. गोष्ठी के आखिर में दोनो वक्ताओं ने
अपनी पसन्द की दो- दो कविताएं सुनाई. शुरुआत में वरिष्ठ कवि शिवकुटी लाल वर्मा,
शायर ख्वाज़ा जावेद अख्तर और महान स्त्रीवादी चिंतक शर्मिला रेगे को
श्रद्धांजलि दी गई. संयोजन दुर्गाप्रसाद सिंह ने किया जबकि संचालन रामायण राम ने
किया. कार्यक्रम में जसम के महासचिव प्रणय कृष्ण, रामजी राय,
जी.पी. मिश्र, कहानीकार अनिता गोपेश, नीलम शंकर, कवि संतोष चतुर्वेदी, विवेक निराला, अरुण आदित्य, प्रगतिशील
लेखक संघ के सचिव अविनाश मिश्र सहित बड़ी संख्या में छात्र नौजवान शामिल थे.
प्रस्तुति : प्रेम शंकर, राष्ट्रीय सचिव,
जन संस्कृति मंच
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