Tuesday, November 5, 2013

उस्ताद अमीर ख़ान – शख्सियत और उनका संगीत - अंतिम

उस्ताद अमीर ख़ान – शख्सियत और उनका संगीत

प्रोफ़ेसर दीपक बनर्जी



एक इंसान के तौर पर उस्ताद

दोषहीन सलीका, उर्दू का बेहद ऊंचे मेयार वाला डिक्शन, लोगों के साथ हर तरह के बर्ताव में शालीनता, संकोची पर औपचारिक नहीं, अपने शिष्यों के लिए दयावान – इन सारी चीज़ों से बना था खोल जिसे लोग जानते थे. खोल के भीतर यह गर्मजोशी से भरा प्रेम करने वाला व्यक्ति था, अक्सर संकोची और हकबकाया सा, कभी कभी अपने आप को लेकर सुनिश्चित कि उसके हिस्से कितना सम्मान आना चाहिए. एक बुद्धिजीवी, लेकिन भावनाओं और उनमें अपने आप को डुबो लेने पर हमेशा जोर देने वाला; जीवन नाम के रहस्य के लिए गहरा आदर, लेकिन रीति-रिवाज़ से हमेशा दूर. अधिकतर मनुष्यों की तरह अमीर खान भी विरोधाभासों का एक पुलिंदा था.

अमीर खान बेहद संकोची व्यक्ति थे. हर चीज़ को लेकर उनकी एप्रोच विश्लेषणात्मक होती थी, जहां दूसरों को समतल विस्तार नज़र आता था, अमीर खान उनमे नुक्स ढूंढ निकालते थे. हज़ारों युद्ध जीत चुकने के बाद भी वे अधिकतर लोगों के मुकाबले ज़्यादा असुरक्षित थे. अपने संगीत में उन्होंने तलवार की धार पर चलने को चुना, फिसल जाने के भय से वे भीतर कांपा करते थे. हर प्रस्तुति से पहले वे खासा तनाव निर्मित कर चुके होते थे “मैं किनारे चलता हूँ न, थोड़ी सी भूल में गज़ब हो सकता है!”

ज़्यादातर उस्ताद अपनी मुठ्ठी ज़रा कम ही खोला करते हैं. वे किसी भी आदमी को अपना गायन रेकॉर्ड नहीं करने देते. इस मामले में अमीर खान खासे खुले दिल के थे. इसके अलावा ज़्यादातर उस्ताद अपनी फीस को लेकर बहुत सावधान रहते हैं. सारे स्थापित समकालीन उस्तादों की तुलना में अमीर खान की फीस सबसे कम थी और संगीत-क्लबों के लिए उनकी फीस बहुत लचीली थी – और भी कम. यह बड़े अफ़सोस की बात होगी, वे कहते थे, कि सिर्फ अमीर ही अच्छा संगीत सुन सकें.

अपने संगीत में उन्होंने जो कुछ किया था उस पर उन्हें ख़ासा गर्व था. पिता की मृत्यु के बाद, घर के सबसे बड़े पुत्र होने के कारण घर उन्होंने ही चलाना था लेकिन वे पूरी तरह से प्रशिक्षित संगीतकार भी नहीं थे. दूसरी तरफ उनका मानना था कि यह बड़े भाग्य की बात थी कि माइक्रोफोन और एम्पलीफायर ने उनकी पीढ़ी के संगीतकारों को यह मौका दिया कि वे ऐसी शैली विकसित कर सकें जिसमें बारीकीयों को जगह दी जा सके. पहले सार्वजनिक गायानों में उस्तादों को गला फाड़ कर चिल्लाना पड़ता था और उन कई चीज़ों को छोडना जिन्हें वे बेहतर कर सकते थे. कम से कम मुझे ऐसा नहीं करना पड़ा, वे कहते थे, और यह भाग्य की बात है.

उनका सेन्स ऑफ ह्यूमर शानदार था, जिसमें कभी कभार ही कपट शामिल रहता था. चीज़ों, घटनाओं या वक्तव्यों  की अनुपयुक्तता उन्हें बड़ी कौतुकभरी लगती थी; खासतौर पर जब सलीके की मांग होती थी कि सार्वजनिक गलती को अनदेखा किया जाए. उस समय तो वे अपनी सूरत पत्थर बना लेते थे पर बाद में दोस्तों के साथ इस बाबत खूब मज़ा लिया करते. और उनके दोस्त जो कुछ भी करते थे उसे लेकर वे हमेशा दयालु बने रहे.

संगीत की दुनिया से उनके कुछ दोस्त थे, और बाकियों से ढेर सारे, मेरे जैसे, जिन्हें संगीत खींचता था पर जो तमामतर पेशों से ताल्लुक रखते थे. ऐसे दोस्तों के साथ उन्हें आनंद आता था. उन्हें लगता था कि संगीत के संसार का उत्सव बहुत छोटे समय का होता है, और अपने मस्तिष्क को तीखा रखने के लिए उन्हें अपनी बुद्धिजीवी मित्रमंडली की ज़रूरत पड़ती थी. उन्हें हर तरह की चीज़ों के बारे में सवाल पूछना अच्छा लगता था. एक बुद्धिजीवी एप्रोच से आपको अज्ञान की सुविधा से वंचित रहना पड़ता है.


अपने दोस्तों के साथ भी वे अकेले इंसान थे. अक्सर उनके रियाज़ के बाद – मेरा सौभाग्य रहा है कि ऐसे मौकों पर मैं कई बार उपस्थित रहा था – वे मुझसे संगीत के उन बिंदुओं पर बात करते थे जिन्हें सुलझाने पर उन दिनों वे काम कर रहे होते थे. मैं सुना करता था पर मेरी समझ में उसका छोटा सा अंश ही आ पाता था. “आप जानते हैं मुझे संगीत के बारे में कितना कम आता है. तब भी आप संगीत पर अपने विचारों पर मुझसे बात क्यों करते हैं. मैंने एक बार उनसे पूछा. “क्योंकि तुम सुनते हो और तुम्हें मुझ से कुछ चाहिए नहीं होता." ऐसी होती है कीमत प्रतिष्ठा की. 

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