१९६५ में ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी पाकिस्तान के दौरे पर आये.
शाह ने नवाब कालाबाग़ की मेहमाननवाजी में रहना पसंद किया जो उन दिनों तत्कालीन
पश्चिमी पाकिस्तान के गवर्नर थे. दस हज़ार एकड़ की रियासत के मालिक इस सामन्तवादी
राजे ने फिल्म अभिनेत्री नीलोफ़र से आग्रह किया कि वे शाह के सामने अपना नाच पेश
करें. नीलोफ़र के मना करने पर उन्हें पुलिस पकड़ कर नवाब के दरबार में ले आई. नीलोफ़र
ने तब भी विरोध किया और जब उन्हें यातनाएं दी गईं तो उन्होंने आत्महत्या करने की
भी कोशिश की. जब जालिब साहब को इस वाकये का पता चला उन्होंने नीलोफ़र को देखने
हस्पताल जाते वक्त इस बहादुर औरत की शान में एक कविता लिखी. यह कविता बाद में एक
फिल्म में बतौर गीत मशहूर हुई और इसे आवाज़ दी थी बादशाह-ए-ग़ज़ल मेहदी हसन ने. सुनिए
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(जारी)
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