Friday, May 2, 2014

नाश का अंत होगा और नए गाँव उभर कर आयेंगे पृथ्वी पर - ‘पहल’ के गलियारों से – ३


‘पहल’ के अंक १५ से आपने दो-चार दिन पहले हसरत मोहानी पर लिखी इन्तज़ार हुसैन की श्रद्धांजलि पढ़ी थी. आज उसी अंक से चीनी क्रांतिकारी कवि तो-जू की पांच कवितायेँ. राजा खुगशाल का शानदार अनुवाद.

[तो-जू चीन के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक था. उसका जन्म कुयांग-हुनान प्रांत में जनवरी १९०८ को हुआ था. १९६६ में सांस्कृतिक क्रान्ति की शुरुआत होते ही उसके ऊपर ‘गैंग ऑफ़ फोर’ द्वारा मुकदमा चलाया गया. गम्भीर बीमारी के बाद नवम्बर १९६९ को उसकी मृत्यु हुई. ‘गैंग’ के पतन के बाद उसका नाम प्रकाश में आया. उसका पूरा जीवन क्रांतिकारी कार्यों के लिए समर्पित था. बचे-खुचे समय में उसने कुछ कवितायेँ और निबंध लिखे.]

१. जेल में*

शरद और झंझावातों में
कविता लिखने के लिए जीवित हूँ
लोहे के चित-कबरे सेल में
जो भेड़ियों और शिकारी कुत्तों से भरा है

मुझे घर की कुछ खबर नहीं
जबकि आज भी घर मेरे ख़यालों में कौंधता है
पूरा देश गायब नहीं हुआ अभी
भले ही लोग आधे मारे जा चुके हैं

विदेशी हमलावरों के खिलाफ
वे अपनी खोखली बातों में बहुत बड़े हैं

यातना देने की तमाम धूर्तताओं से
मैं पूछता हूँ – स्वर्ग बहरा क्यूं है?
झोपड़ियों के गरम आंसुओ!
मैं सच्चाई के लिए लड़ने वालों को याद करता हूँ.

(*तो-जू के यह कविता जेल में लिखी थी. क्रांतिकारी कार्यों के लिए उसे कुआ-मितांग ने बंदी बनाया था. उस समय जापानी सैनिक चीन में घुसपैठ कर रहे थे. विदेशियों को खदेड़ने के साथ कुओ-मितांग- रिजीम ने चीनी कम्यूनिस्टों के खिलाफ ‘एक्सटरमिनेशन’ अभियान चलाया, इस धरना से कि क्रांतिकारियों को कुचलने के बाद ही विदेशियों को चीन से बाहर किया जा सकता है.)

२. जनरल जुओ कुआन* की मृत्यु पर

जब मैंने सुना कि तुम
रक्ताल युद्ध में मारे गए

मेरी आँखों से आंसू बहे
और कपड़ों को भिगोते चले गए

तुम्हारे महान-उत्सर्ग से
फूल और चमकदार खिलेंगे

तुम्हारे खून के संसर्ग से
पृथ्वी और सुगन्धित होगी
विदेशी हमलावरों के खिलाफ
मैं वीरता के लिए जियूँगा
अपने देशवासियों के साथ
जो आज भी आपस में लड़ रहे हैं

ज्यों ही संघर्ष तेज़ होगा
ताइ-हांग के पहाड़ों पर
मैं दक्षिणी ग्रीष्म की वर्षा में
तुम्हारी आत्मा की वापसी के लिए पुकारूँगा

(१९४२)

[*जुओ-कुआन (१९०६-१९४२) कम्यूनिस्ट-इंग्लिश रूट आर्मी का जनरल, जो १९४२ में ताई-हांग क्षेत्र में लड़ते हुए मारा गया.]  

३. बाढ़ से लड़ कर लौटते हुए लोगों के लिए

हम बसंत के मौसम में प्रसन्न रहते हैं
किन्तु अकाल की क्रूर कृपा के लिए
आसमान को माफ़ नहीं करते

ईंटों और छप्परों को झिंझोड़ते हुए
झंझावात चलते हैं

पहाड़ियां डूब जाती हैं
भयंकर बाढ़ में

लेकिन लोगों में आसमानी इच्छाओं को
बदलने की ताकत होती है

बिच्छू और विषैले सांप
ज़हर नहीं छोड़ सकते
उस समय मैं
शरद की फ़सल के बाद की सुन्दरता का
इंतज़ार करता हूँ

कि विनाश का अंत होगा
और नए गाँव उभर कर आयेंगे पृथ्वी पर

(१९५९)

४. घर में क़ैद होने से पहले*

सीखचों के बाहर
पेड़ फूलते हैं

फूलों की खुशबू को
दूर दूर तक बहती हवा के
एकांत में बैठ कर
मैं तितलियों से
प्रसन्नता हासिल करता हूँ

जनरल जू-बो जेल में है
वह अब शिकायत नहीं कर सकता

युई-फ़ेई नम्रतापूर्वक
अंगीकार करता है यातना

अपराधों के आरोप उन्हें
कभी रद्द नहीं कर सकते
जो महान मकसद के लिए
लड़ते हैं जीवन में

(१९६७)

[१९६७ में तो-जू और उसकी पत्नी को ‘गैंग ऑफ़ फोर ने घर में नज़रबंद रखा. हान राजवंश का जनरल जू-बो झूठे आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया. ‘गैंग ऑफ़ फोर’ के कारनामों का भंडाफोड़ करने वाले युई-फ़ेई को क़ैद करके मार डाला गया.]  

५. पत्नी के लिए*

लड़ाई के मैदान से
कठिन है लौटना मेरे लिए

तुम्हारा गहरा लगाव
और आत्मा की ऊंचाई
मुझे गति देती है

क्रूर मौसम गुजरते हैं
और मेरे बाल सफ़ेद होते हैं

मेरी शेष ज़िन्दगी भी जहालत है
मैं अपनी दुर्बलताओं के साथ
दबा पड़ा हूँ

युद्ध के लिए देर हो गयी जिसे
एक पागल घोड़ा
अस्तबल में हिनहिनाता है
मौसम में

तुषार के भयंकर हमले से
भयभीत हैं
नारियल के पेड़

भुगते हुए को भूल कर लोग
धुंध की तरह नष्ट हो रहे हैं लोग-
इस विस्तृत संसार में-

निजी स्वार्थों से मुक्त रहा-
मेरा हृदय.

(१९६९)

[अपनी पत्नी के लिए लिखी यह तो-जू की अंतिम कविता है. उस समय वह मृत्यु से जूझ रहा था, जब अक्टूबर १९६९ में ‘गैंग ऑफ़ फोर’ ने उसे दूसरी जेल में रखा. इस के कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गयी थी.]

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर चयन अच्छी कविताऐं ।