Sunday, May 4, 2014

तुम हो सुबह और रोशनी


सेज़ारे पावेसे की कविता – पहली खेप

अपनी बयालीसवीं सालगिरह से कुल दो हफ्ते पहले २७ अगस्त 1950 को इतालवी कवि सेज़ारे पावेसे ने अपने शहर तूरिन के एक होटल में नींद की गोलियों की ओवरडोज़ खा ली. ल्यूको के साथ १९४७ में छपे अपने वार्तालापों की किताब के पहले पन्ने पर लिखे उसके सुसाइड नोट में कहा गया था – “मैं सबको माफ़ करता हूँ और हर किसी से माफ़ी मांगता हूँ. ओके? ज़्यादा गॉसिप मत करना.”

९ सितम्बर १९०८ को जन्मे सेज़ारे पावेसे कवि होने के साथ साथ अच्छे उपन्यासकार, आलोचक और अनुवादक थे. २०वीं सदी की इतालवी कविता पर उनका गहरा प्रभाव माना जाता है.

इटली के कुएन्यो प्रांत के सान्तो स्तेफानो बेल्बो में उनका जन्म हुआ था. इसी गाँव में उनके पिता ने भी जन्म लिया था और बाद में उनका परिवार हर साल गर्मियों की छुट्टियां बिताने यहीं आया करता था. इसी गाँव में उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई जबकि तूरिन के  तमाम स्कूलों में उन्होंने आगे की पढ़ाई की. विश्विद्यालय के दिनों में उन्हें साहित्य के प्रति गहरा अनुराग हुआ और उन्होंने तूरिन विश्विद्यालय से अपनी ग्रेजुएट डिग्री के लिए वाल्ट व्हिटमैन की कविताओं पर शोधकार्य किया.
फासिस्ट-विरोधी हलकों में पावेसे का उठना-बैठना था. १९३५ में उन्हें गिरफ्तार कर उन पर पर मुकदमा चलाया गया क्योंकि उनके कब्ज़े से एक राजनैतिक बंदी के पत्र पुलिस को मिले थे.

वे १९३६ में रिहा होकर तूरिन पहुंचे और उसी साल उनका पहला कविता-संग्रह ‘हार्ड लेबर’ छपा. 8 सितम्बर के बाद उन्होंने अपनी बहन के साथ सेरालूना में शरण ली और युद्ध की समाप्ति पर इतालवी कम्यूनिस्ट पार्टी की सदस्यता ले ली.१९४५ में उन्होंने पार्टी के समाचारपत्र का प्रकाशन किया. इस बीच उनकी कई अन्य किताबें  छप कर आ चुकी थीं. यह क्रम १९४५ के बाद भी जारी रहा अलबत्ता वे हमेशा एक गहरे अवसाद में रहा करते थे जो अंततः उनकी मृत्यु का कारण बना.

प्रस्तुत हैं सेज़ारे पावेसे की कविता की एक बानगी-

तुम हमेशा लौट आती हो सुबह को*

भोर की मद्धम सांस
आती है तुम्हारे मुंह से
ख़ाली सड़कों के किनारों पर
तुम्हारी आँखों की सलेटी रोशनी,
भोर की मीठी बूँदें
अंधेरी पहाड़ियों पर.
तुम्हारे कदम और तुम्हारी सांस
भोर की हवा की मानिंद
नष्ट करती है मकानों को.
काँपता है शहर,
सांस छोड़ते हैं पत्थर –
तुम जीवन हो, एक जागना.

खो गया सितारा
भोर की उजास में
हवा की थरथराहट,
गर्मी, सांस-
ख़त्म हुई रात.

तुम हो सुबह और रोशनी.

(*यह कविता पावेसे ने अपनी प्रेमिका अमेरिकी अभिनेत्री कॉन्स्टेन्स डाउलिंग के लिए लिखी थी.)

बिल्लियाँ जान जाएँगी

फिर से गिरेगी बारिश
मीठे फुटपाथों पर,
एक हल्की बारिश
किसी सांस या पदचाप सरीखी.
हवा और भोर फिर से
खिलेंगे हौले से
तुम्हारे कदमों के तले
जब तुम दोबारा से प्रवेश करोगी
फूलों और देहरियों में
बिल्लियाँ जान जाएँगी.

और भी दिन होंगे
आवाजें होंगी और भी.
अकेली मुस्कराओगी तुम
बिल्लियाँ जान जाएँगी.
तुम सुनोगी प्राचीन शब्दों को,
क्लांत ख़ाली शब्द
बीते हुए दिनों के उत्सवों की
न पहनी गयी पोशाकों जैसे.

तुम भी बनाओगी भंगिमाएं,
जवाब तुम भी दोगी शब्दों से –
बहार की सूरत,
तुम भी बनाओगी भंगिमाएं.

बिल्लियाँ जान जाएँगी
ओ बहार की सूरत,
और हल्की बारिश
गुलाबी रत्न जैसी भोर
जो चीर कर रख देती है उसका दिल
जिसे अब तुम्हारी इच्छा नहीं होती
वे हैं उदास मुस्कराहट
तुम मुस्कराती हो अकेली.

और भी दिन होंगे
और आवाजें और जागना.
ओ बहार की सूरत

हम सहन करेंगे भोर को.