- माज़ेन
मारूफ़
नींद का मेरा
हिस्सा है
चार घंटे और
ग्यारह मिनट.
अपने बिंधे हुए
दिल को लुढकाता हूँ
चादर पर
वह जा टकराता है
दरवाज़े से
पीछे छोड़ता हुआ
कीचड़ की एक
लकीर.
मुझे उम्मीद है
एक रात
एक पेड़ पहुंचेगा
लकीर की बग़ल में
खड़ा होने को.
फिर एक दूसरा
पेड़ आएगा
फिर तीसरा
फिर चौथा
फिर नवां ...
वगैरह वगैरह.
एक रात
बड़ी हो जाएगी
लकीर
और एक सड़क बन
जाएगी
एक रात
जब मैं सोया
होऊँगा
मेरे दोस्त बाहर
बह आएंगे
मेरे सिर से.
वे पहुँच जाएंगे
सड़क तलक
एक नींद
निकालेंगे
पेड़ों तले.
और
मैं जगूंगा एक
रात
अकेलेपन से
भयभीत
और उनका पीछा
करने लगूंगा.
(चित्र: हेनरी रूसो की पेंटिंग 'द स्लीपिंग जिप्सी')
1 comment:
सुंदर कविता !
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