Saturday, October 18, 2014

जिसे जो उखाड़ना है उखाड़ ले, सरकार ने हमें कहा है नंदा राजजात कराने को

उत्तराखंड में हर बारह सालों में होने वाली नंदा राजजात यात्रा स्थानीय स्तर पर बहुत अधिक धार्मिक और सामाजिक महत्व रखती है. इसे पिछले वर्ष आयोजित होना था लेकिन केदारघाटी और समूचे उत्तराखंड में आई अभूतपूर्व त्रासदी के चलते स्थगित कर इसे इस वर्ष आयोजित किया गया.

नंदा राजजात यात्रा के बारे में ऐतिहासिक सामाजिक तथ्य जानने हों तो आप को इंटरनेट पर सैकड़ों वेबसाइट्स पर भरपूर सामग्री मिल जाएगी. पिछली नंदा राजजात यात्रा में ही भयानक अव्यवस्था देखने को मिली थी और जैसी कि आशंका थी इस साल तो सारी हदें पार हो गईं. सब कुछ जानने का थोथा दर्प करने वाला हमारा मीडिया इस बार पिछली बार से भी ज्यादा रीढ़विहीन नज़र आया. कहीं किसी सच्चाई की कवरेज नहीं हुई.

नंदा राजजात यात्रा हो गयी. हिन्दू आस्था बच गयी. परम्परा विनष्ट होने से बच गयी. राजजात को सही-सलामत निबटा देने का ज़िम्मा जिन अफसर-कर्मचारियों को दिया गया था, उनकी भी नौकरी बच गयी. आप सब को बधाई.

बागेश्वर में रहने वाले हमारे साथी केशव भट्ट ने भी इस यात्रा में हिस्सा लिया और अपने अनुभवों को कबाड़खाने पर बांटने की अनुमति दी जिसके लिए हम उनके शुक्रगुज़ार हैं. अच्छा लगे तो पूरा पढ़िएगा इस संस्मरण को वरना जय माता दी कहकर अपनी आस्था बचाए रखें!


ऐसी राजजात से तो तौबा

केशव भट्ट
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इस बार की नंदा राजजात यात्रा को हर किसी ने अपने चश्मे से देखा. कईयों की आस्था थी तो कई आस्था के नाम पर मौजमस्ती कर मालामाल हो गए. इस यात्रा में डरते-डरते मैं भी अपने साथी, विनोद उपाध्याय, आंनद खाती, संजय पांडे, पूरन जोशी, दीपक परिहार के साथ जाने के लिए तैयारी की. मैं इससे पहले कई बार इस पूरे ट्रेकिंग रूट से वाकिफ रहा हूं. तो भीड़ के दबाव को सोचते हुए सिर्फ रूपकुंड तक ही जाने का प्रोगाम बनाया. दो टैंट तथा राशन आदि तैंयार कर हम ३१ को बेदनी को फुर्र हो लिए.


दो दिन बेदनी बुग्याल का हाल देख हमारी हिम्मत फिर इस भयानक भीड़ के कारनामे आगे को देखने की नहीं पड़ी. बेदनी से कुछ आगे जाकर हम शोरगुल की दहशत से आली बुग्याल की शांत फिज़ा में चले गए. यहां भेड़-बकरियों के छौनों की मीठी पुकार थी. दूर-दूर तक प्रकृति का शांत आंचल फैला था. हवा की सरसराहट में मधुर संगीत था. टैंट वहीं लगा धरती के सीने में हम सभी पसर गए.

वर्ष २०१४ की राजजात यात्रा ने प्रकृति को मीठे कम खट्टे अनुभव ही ज्यादा दिए. वाण से सुतोल तक लगभग ७० किमी के हिमालयी भू-भाग को आस्था के नाम पर लोगों ने जो घाव दिए हैं उसे भरने में कहीं सदियां न लग जाएं. इस बार की राजजात को सरकार ने हिमालय का कुंभ नाम देकर हजारों लोगों का हिमालयी क्षेत्र में जमावड़ा लगा दिया. यात्रियों के रहने-खाने की व्यवस्था के नाम पर अरबों रूपयों की जमकर बंदरबांट हुई. आस्था का दिखावा कर अरबों रूपयों को लूटने में किसी ने भी गुरेज़ नहीं की. यात्रा मार्ग के रखरखाव के साथ ही व्यवस्था के नाम पर चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर जिलों को करोड़ों बांटे गए.



बेदनी, पाथर नचैनियां, बगुआवासा, शिला समुद्र में रहने के लिए टैंटों की व्यवस्था तथा सफाई के लिए करोडों रूपयों का ठेका दिया गया था. लेकिन इन जगहों पर प्लास्टिक की थैलियां, प्लास्टिक की बोतलें, डिस्पोज़ेबल थालियां, गिलास, कटोरियां तथा शराब की बोतलों के साथ ही मानव जनित कूड़े के ढेर बिखरे पड़े हैं. अब सरकार इस कूड़े का निस्तारण करने के नाम पर एक बार फिर नए घोटाले के द्वार खोल रही है.

राजजात यात्रा के नाम पर सरकार द्वारा दोनों हाथ से खजाना लुटाने पर लाखों लोगों में एकाएक आस्था की बाढ़ आ गई. इस बाढ़ में चपरासी से लेकर सचिव तक के अधिकारियों समेत नेताओं ने भी जम कर डुबकी लगा ली. अब बागेश्वर को ही ले लें तो यहां गरूड़ के डंगोली में रहने व खाने की व्यवस्था के नाम पर जिले को चालीस लाख मिल गए. रूपये मिलने के बाद जैसे सभी में प्राण आ गए. हर रोज गरूड़-डंगोली में मीटिंगों का दौर चलने लगा. माँ नंदा की जयजयकार करते हुए चालीस लाख धुंआँ हो गया. डंगोली के आसपास सड़क के किनारे बिखरी गंदगी लंबे समय तक बजबजाती रही. मानवीय आस्था का सच जानने का मन हुआ तो ३१ अगस्त २०१४ को बेदनी बुग्याल का रूख किया. वाण गांव की सड़क महंगी गाडि़यों से पटी पड़ी थी. गांव में खेतों के किनारे कुछ कपड़े वाले शौचालय लगे दिखे. पैदल रास्ते में सैकड़ों लोग आ-जा रहे थे. रणकीधार में हरा-भरा घास का मैदान गायब दिखा. यहां टिन डालकर एक दाल-चावल की दुकान खोली गयी थी. चारों ओर गंदगी बिखरी थी.




रिमझिम बारिश शुरू हो गई थी. आगे गैरोली पातल को खड़ी चढ़ाई का रास्ता हजारों लोगों के साथ ही घोड़े-खच्चरों की आवाजाही से फिसलन भरा हो गया था. इस रास्ते कई बार आना-जाना हुआ था. लेकिन ऐसी दुर्दशा पहले कभी नहीं देखी. गैरोलीपातल पहुंचे तो वहां का हाल काफी बुरा था. यहां एक बड़ा टैंट लगा था. राजजात यात्रा का यह विश्राम पढ़ाव था. बदबू के कारण यहां रुक नहीं सके. बेदनी की चढ़ाई के बाद तिरछा रास्ता हरियाली लिए था. बेदनी में पहुंचे तो लगा कि कहीं कुंभ में पहुंच गए हों. चारों ओर भयानक शोर मचा हुआ था. लाउडस्पीकर में उद्घोषक गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे थे. भजनों के नाम पर फूहड़ फिल्मी गानों की पैरोडी का कानफोड़ शोर सुनाई दे रहा था. हल्की बारिश अनवरत जारी थी. 

रास्ते में मखमली घास की जगह हर ओर कीचड़ पसरा दिखा. एक जगह लगे लंगर की आढ़ी-तिरछी लाईनों में सैकड़ों लोग अपनी बारी के इंतजार में खड़े थे. जेनरेटरों का शोर अलग मचा था. चारों ओर लगे सैकड़ों टैंटों से बेदनी बुग्याल का सौंदर्य गायब था. समूचा बुग्याल आस्था के जनसैलाब तले दर्द से कराहता सा दिखा.

इस बार की राजजात यात्रा में हिमालयी क्षेत्र की पैदल यात्रा में रूपकुंड तक लगभग बीस हजार यात्रियों का जाना रहा. यहां से अनुमानतः लगभग दस हजार यात्रियों ने आगे की यात्रा की. आस्था के इस सैलाब के पांवों तले गैरोलीपातल, बेदनी, पातर नचैणियां, बगुआबासा बुग्याल समेत शिला समुद्र का घास का मैदान बुरी तरह से कुचल कर घायल हो गए हैं. सामान ढोने वाले हजारों घोड़े-खच्चरों ने रही बची कसर पूरी कर दी. यही नहीं ब्रह्मकमल, विष्णुकमल, फेनकमल सहित दर्जनों फूल यात्री तोड़कर अपने साथ ले गए. मानव की इन हरकतों से हिमालय के इन क्षेत्रों को उबरने में लंबा वक्त लगेगा. बेदनी बुग्याल के चारों ओर शराब की खाली बोतलें आस्था के मर्म को बयां करती दिखी. राजजात यात्रा पर गए एक यात्री का कहना था, “नंदा राजजात में अव्यवस्थाओं की बानगी तो हम सभी ने देखी. जनता को गुमराह किया गया कि वाण गॉव से आगे सभी सरकारी व्यवस्था है.” इसका कोप मीडिया कर्मियों ने बेदनी बुग्याल में तब झेला जब आम जनता ने मीडिया के तम्बू बम्बू उखाड़कर उन्हें झूठी और बेबुनियाद खबरें चलाने के लिए जमकर कोसा.

सरकार ने दस हजार ड्राई फ्रूट्स के पैकेट, पांच हजार छाते, पांच हजार रैन कोट, पांच हजार जोड़ी जूते सहित हजारों की संख्या में बरसाती भेजी थी जिनका कहीं कोई अता-पता नहीं मिला. जब मैंने वाण गाँव आकर गबर सिंह बिष्ट की दूकान के गोदाम में देखा तो वहां सारा सामान ठूंस-ठूंस के भरा था. सिर्फ एक महिला जो कि फल्दिया गॉव की थी वह हंस फाउंडेशन की माँ मंगला व भोले महाराज द्वारा यात्रियों को प्रसाद के रूप में भेजे गए हजारों पैकेट (चार लड्डू, मटरी, नमकपारे) जो कि आधा आधा किलो के डिब्बों में पैक थे, को बाँट रही थी. खबर मिली कि इसी गोदाम में सारा माल दबाया गया है. मैंने खोज की तो पता चला कि इसका इंचार्ज ग्राम्य विकास विभाग के हरीश जोशी हैं. जिन्हें ढूँढने मैं बाजार पहुंचा क्योंकि हर एक व्यक्ति मुख्यमंत्री व चमोली जिले के जिलाधिकारी के विरुद्ध नाराजगी जाहिर कर रहा था. श्रद्वालुओं का कहना था कि इस तरह अगर यह सामान गोदाम में भरा जा रहा है तो किसके लिए. मैंने हरीश जोशी से जानकारी चाही तो वह गुंडई वाली भाषा में बोले जिसे जो उखाड़ना है उखाड़ ले, मुझे किसी की परवाह नहीं है. यहीं तक बात रुकती तो कोई बात नहीं उसे आव सूझा न ताव उसने गबर सिंह बिष्ट को एक पौवा पिलाया और उनसे कहा कि हंस फाउंडेशन का सारा माल बाहर फेंक दो वरना तुम्हारी दूकान में भरा सरकारी माल सब लोग हजम कर जायेंगे. गबर सिंह बिष्ट गुस्से में भरा हुआ पहुंचा. उधर हरीश जोशी ने गोदाम खोला और जितनी पेटी भी माँ मंगला और भोले महाराज द्वारा प्रसाद की भेजी थी सब बाहर लाकर पटक दी. भला वह बेचारी महिला क्या विरोध दर्ज कर पाती. फिर क्या था वाण गाँव के लोग पेटी की पेटियां अपने घरों में लादकर ले गए. बहुत देर तक महिला ने विरोध जताया लेकिन आखिर ऐसे नपुंसक समाज के आगे उसकी क्या चलती.


रात भर बेदनी में जगराता रहा. लाउडस्पीकर पर रातभर उद्घोषक अपना गला साफ करने में लगे रहे. सुबह नौटी के मुख्य पुजारी राजजात यात्रा में परम्पराओं के उल्लघंन से खासे नाराज थे. उनके मुताबिक वाण से लाटू देवता ही इस यात्रा मार्ग में पथ प्रदर्शक होता है. उसके पीछे से देवी का डोला चलता है. इसके बाद गढ़वाल और कुमाउं के विभिन्न जगहों से आई छंतोलियां पीछे से चलती हैं. लेकिन इस बार परम्परा को अनदेखा कर दिया गया. मुख्य राजजात की डोली व छंतोली बेदनी में पूजा आदि के कार्यों में लगी थी कि कई लोग अपनी छंतोलियों को लेकर आगे के पड़ावों को निकल गए. बेदनी कुंड के बगल में एक टीम गाने की शूटिंग में मस्त थी. चुनरी लहरा कर घुमने के शॉट का कई बार रिटेक हो रहा था. बड़ा अजीब सा लगा जब एक ने बताया कि हजारों लोग तो शिला समुंद्र पहुंच गए हैं. इनका क्या उद्देश्य रहा होगा आस्था, मौज मस्ती या फिर और कुछ.

सायं यात्रा पातर नचैणियां पहुँची. यहां जगह कम होने पर कई लोग आगे बगुआवासा चले गए. अगले दिन जात जब केलुवाविनायक पहुंची तो आगे चलने को लेकर कुछ छंतोलियों में हाथापाई भी हो गई. गाजी-गलौच से लेकर लाठी-डंडे तक खूब चले. देर सायं बगुआवासा, रूपकुंड, ज्योरागली होते हुए यात्रा शिलासमुद्र पहुंची. अगली सुबह यात्रा होमकुंड के लिए चली और देर सायं चन्दनियाघाट पहुंची. शिलासमुद्र में एक यात्री का स्वास्थ्य खराब होने पर उसे हैलीकाप्टर से ले जाया गया लेकिन रास्ते में उसकी मौत हो गई. अगले दिन चन्दनियाघाट से लाटाखोपड़ी होते हुए यात्रा सुतोल पहुंची. रास्ते में फिसलन में रपटने से कई लोग घायल हो गए. रास्ते को ठीक करने वाले ठेकदार ने ढलान में पत्थरों की सीढियां बनाने की बजाय कट्टों में मिट्टी भरकर सीढि़यां बना दी थी. जनदबाव पड़ने पर वो कट्टे फट गए और मिट्टी बिखर गई. पांच सितंबर को सुतोल से घाट होते हुए छह सितंबर को यात्रा नौटी पहुंच गई.

इस यात्रा से कई सवाल खड़े हो गए हैं. लेकिन लगता नहीं की सरकार इससे कोई सबक लेगी. क्योंकि इस यात्रा के कुशल व्यवस्था के लिए सरकार अपने चहेतों को पुरुस्कारों से नवाज़ दिया है. और साथ ही ये घोषणा की है कि अब हर साल बेदनी तक जाने वाली जात में भी सरकार बढ़-चढ़ कर प्रतिभाग करेगी. 

इधर, हाल ये हैं कि सरकार ने राजजात यात्रा की व्यवस्थाओं के मद्देनजर लगभग एक करोड़ में सुलभ संस्था को भी सफाई का जिम्मा दिया था बावजूद इसके बुग्यालों के चारों ओर कूड़े के साथ ही मल-मूत्र की गंदगी अभी तक बजबजा रही हैं. सुलभ के कर्मचारियों ने इन सभी बुग्यालों में जो भी कूड़ा एकत्रित किया वो वहीं उन बुग्यालों के नीचे फेंक दिया. यह जैविक और अजैविक कूड़ा इन बुग्यालों को वर्षों तक सड़ाते रहेगा; इसकी चिंता किसी को भी नहीं. सरकार के द्वारा इस यात्रा में विशेष प्रबंध किए जाने की सूचना पर हजारों की तादाद में लोग इस यात्रा में बिना अपनी किसी तैयारी के शामिल हो गए. इनमें ज्यादातर न तो हिमालयी भू-भाग की संवेदनशीलता से वाकिफ थे और न ही वे प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहे. कईयों ने इस यात्रा को मौज-मस्ती के रूप में लिया. शराब की सैकड़ों खाली बोतलें बुग्यालों में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी दिखीं. हजारों की भीड़ के लिए लगभग पांच-छह दर्जन शौचालय बनाए गए थे जो नाकाफ़ी रहे. बेदनी के नीचे ढलान में हजारों यात्री मल-मूत्र विसर्जित कर गए.


बहरहाल! देवी के डोले को ससुराल पहुंचाने की इस परम्परा को शांत ढंग से ही निभाया जाना चाहिए. इससे परम्परा के साथ ही प्रकृति को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा.



1 comment:

डॉ. नवीन जोशी said...

आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा ब्लॉग "नवीन जोशी समग्र"(http://navinjoshi.in/) भी देखें। इसके हिंदी ब्लॉगिंग को समर्पित पेज "हिंदी समग्र" (http://navinjoshi.in/hindi-sam... पर आपका ब्लॉग भी शामिल किया गया है। अन्य हिंदी ब्लॉगर भी अपने ब्लॉग को यहाँ चेक कर सकते हैं, और न होने पर कॉमेंट्स के जरिये अपने ब्लॉग के नाम व URL सहित सूचित कर सकते हैं।