Monday, January 19, 2015

एक गाँव है तुम्हारा बचपन

गाब्रीएल पाचेको की कृति
'चाइल्डहुड इन अ विलेज' 


बचपन का उत्सव

-अदूनिस

यहाँ तक कि हवा की भी ख्वाहिश है
कि एक गाड़ी बन जाए
जिसे खींच रही हों तितलियाँ.

मुझे याद है उस पागलपन की
दिमाग के तकिये पर पहली बार
झुकते हुए सवार हुआ था जो.
तब मैं अपनी देह से बातें कर रहा था
और मेरी देह एक विचार थी
जिसे मैंने लाल रंग से लिखा.

सूरज का सबसे खूबसूरत सिंहासन होता है लाल
और बाक़ी सारे रंग
लाल गलीचों पर इबादत करते हैं.

रात एक दूसरी ही मोमबत्ती जैसी होती है.
हर शाखा के, हर बांह के पास
आकाश में ले जाया जाने वाला एक संदेसा
जिसकी आवाज़ प्रतिध्वनित होती हवा की देह के भीतर.

जब मुझसे मिलता है सूरज
वह जिद करता है कोहरे के कपड़े पहनने की:
क्या रोशनी मुझे डांट रही है?

ओह, मेरे बीत चुके दिन
चला करते थे अपनी नींद में
और मैं टिक जाया करता था उन से.

प्रेम और स्वप्न दो कोष्ठक हैं.
उनके बीच रखता हूँ मैं अपनी देह
और संसार की खोज करता हूँ.

कई दफ़ा
मैंने देखा घास के दो क़दमों पर हवा को उड़ते हुए
और सड़क को नाचते हुए हवा से बने पैरों पर.

फूल हैं मेरी इच्छाएँ
दाग़ लगाती हुईं मेरे दिनों पर.

जल्दी मिले मुझे घाव,
और  जल्द ही मैंने जान लिया था
कि घावों ने निर्माण किया है मेरा.

मैं अब भी पीछे चलता हूँ उस बच्चे के
जो टहलता रहता है मेरे भीतर अब भी.

फिलहाल वह खड़ा हुआ है रोशनी से बने एक ज़ीने पर
आराम करने और रात का चेहरा दुबारा पढ़ने
के लिए कोई कोना तलाशता हुआ.

अगर एक मकान होता चन्द्रमा
मेरे पैर इनकार कर देते उसकी देहरी छूने से.

उन्हें ले जा चुकी धूल
मौसमों की हवाएँ उड़ा ले गईं मुझे.

मैं चलता हूँ
मेरा एक हाथ हवा में ,
दूसरा दुलराता हुआ केशों को
जिनकी मैं कल्पना करता हूँ.

एक सितारा भी
अन्तरिक्ष के मैदान में एक कंकड़ है.

सिर्फ़ वही
बना सकता है नई सड़कें
जो जुड़ा हुआ हो क्षितिज से.

चन्द्रमा, एक बूढ़ा आदमी,
रात उसके बैठने की जगह
और रोशनी उसकी लाठी.

मैं क्या कहूँगा उस देह से जिसे मैं छोड़ आया था
उस घर के मलबे में
जिसके भीतर मेरा जन्म हुआ था?
कोई नहीं सुना सकता मेरे बचपन की कथाएँ
सिवा उन सितारों के जो टिमटिमा रहे हैं उस के ऊपर
और जो अपने क़दमों के निशान छोड़ जाते हैं
शाम के रास्ते पर.

मेरा बचपन अब भी
जन्म ले रहा है एक रोशनी की हथेली में
जिसका नाम मैं नहीं जानता
और जो एक नाम देती है मुझे.

उसने आईने से बनाई एक नदी
और उस से पूछा अपने दुःख की बाबत.
अपने दुःख से उसने बारिश बनाई
और बादलों की नक़ल की.

एक गाँव है तुम्हारा बचपन.
चाहे कितनी ही दूर तुम चले जाओ
कभी पार नहीं कर सकोगे उसकी सरहदें.

झीलों से बने है उसके दिन
तैरती देहें उसकी स्मृतियाँ.

तुम जो उतरते हो
बीते समय के पहाड़ों से,
तुम उन पर कैसे चढ़ सकोगे दुबारा,
और क्यों चढ़ोगे?

एक दरवाज़ा है समय
जिसे मैं नहीं खोल सकता.
क्लांत हो चुका मेरा जादू,
सोए हुए मेरे मन्त्र.

मैं जन्मा था
गर्भ जैसे छोटे और गुप्त एक गाँव में.
मैं कभी कहीं गया ही नहीं वहां से.
किनारे नहीं, समुद्र पसंद आता है मुझे.

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अदूनिस - विडंबनाओं और पराकाष्ठाओं के कवि

सीरिया में १९३० में जन्मे सीरियाई लेबनानी मूल के कवि, साहित्यालोचक, अनुवादक, और सम्पादक अदूनिस (मूल नाम अली अहमद सईद) अरबी साहित्य और कविता का एक अत्यंत प्रभावशाली नाम हैं. अपने राजनैतिक विचारों के लिए अदूनिस को अपनी ज़िन्दगी का एक हिस्सा जेल में बिताना पड़ा था. १९५६ में अपना मूल देश त्यागने के बाद अदूनिस लेबनान में रहने लगे. मैं एक ऐसी भाषा में लिखता हूँ जो मुझे निर्वासित कर देती है,” उन्होंने एक दफा कहा था. कवि होने का मतलब यह हुआ कि मैं कुछ तो लिख ही चुका हूँ पर वास्तव में लिख नहीं सका हूँ. कविता एक ऐसा कार्य है जिसकी न कोई शुरुआत होती है न अंत. यह असल में एक शुरुआत का वायदा होती है, एक सतत शुरुआत.उनका नाम इधर अरबी कविता में आधुनिकतावाद का पर्याय बन चुका है. कई बार अदूनिस की कविता क्रांतिकारी होने के साथ साथ अराजक नज़र आती है; कई बार रहस्यवाद के क़रीब. उनका रहस्यवाद मूलतः सूफी कवियों के लेखन से गहरे जुड़ा हुआ है. यहाँ उनका प्रयास रहता है मनुष्य के अस्तित्व के विरोधाभासी पहलुओं के नीचे मौजूद एकात्मकता को और ब्रह्माण्ड के बाहर से अलग अलग दीखने वाले तत्वों की मूलभूत समानता को उद्घाटित कर सकें. लेकिन अलबत्ता उनकी कविता रहस्यवाद और क्रान्ति के दो ध्रुवों के बीच की चीज़ नज़र आती है, ये दोनों ध्रुव उस में घुलकर एक सुसंगत निगाह में बदल जाते हैं और यही उनके कविकर्म की विशिष्टता है.  एक नई काव्य भाषा का निर्माण कर पाने का उनका संघर्ष और आर्थिक-राजनैतिक वास्तविकताओं को बदलने की उनकी आकांक्षा अक्सर एक नई पोयटिक्स में तब्दील हो जाती है एक पोयटिक्स जो अल-ज़ाहिर (प्रत्यक्ष) से ढंके अल-बातिन (गुप्त) को उद्घाटित कर सकने वाली मानवीय रचनात्मकता को रेखांकित करती है. उनकी कुछ शुरुआती कविताओं की सुबोधगम्यता, सौष्ठव और लयात्मक संरचना उनकी कुछ बाद की कविताओं की जटिलता और लयात्मकता की अनुपस्थिति के बरअक्स बिलकुल अलहदा हैं. अदूनिस विडंबनाओं और पराकाष्ठाओं के कवि हैं, जो अपनी हर नई रचना में अपने आप से आगे बढ़ जाते हैं. हालिया समय में उन्होंने कविताके स्थान पर लेखनकी वकालत की है, जिसका आशय यह हुआ कि कविता ने अपनी फॉर्म के पारंपरिक ढाँचे से ऊपर उठ कर एक सम्पूर्ण कविता बनने का प्रयास करना चाहिए जिसके भीतर स्तरों, भाषाओं, आकारों और लयात्मक संरचनाओं की बहुलता समाहित हो. महान अरबी साहित्यिक-सांस्कृतिक आलोचक एडवर्ड सईद ने उन्हें आज का सबसे जोखिम उठाने और उकसा देने वाला अरबी कविबताया है. अदूनिस के संग्रह दिन और रात के सफ़ेके अनुवादक सैमुएल हाज़ो ने कहा है अदूनिस के पहले एक अरबी कविता थी और अदूनिस के बाद एक अरबी कविता है.”  शैली के लिहाज़ से प्रयोगधर्मी और स्वर के लिहाज़ से किसी पैगम्बर सरीखी, अदूनिस की कविता में आधुनिकतावाद के नए औपचारिक उपकरणों और शास्त्रीय अरब कविता की रहस्यवादी इमेजरी का मेल पाया जाता है. उन्होंने निर्वासन की वेदना, अरब संसार की आध्यात्मिक हताशा और पागलपन और ऐंद्रिकता के नशीले अनुभवों को जगाया है. लेकिन उनके कार्य की सबसे बड़ी खूबी वह रचनात्मक विध्वंस है जो उस हर पंक्ति में जलता हुआ नज़र आता है जिसे वे लिखते हैं.  –

हम मारे जाएंगे अगर नहीं रचेंगे देवताओं को

हम मारे जाएंगे अगर हम उनकी हत्या नहीं करेंगे.

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