कबीरदास जी के इस भजन को मैंने आशा भोसले के स्वर
में सुनवाने का वादा किया था. अपने कबाड़ में ढूंढते खोजते मुझे एक और नगीना मिल
गया. पंडित मधुप मुदगल ने भी इसे गाया था. दोनों से सुनिए –
पहले आशा भोसले –
हमन है इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या
रहें आजाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या
जो बिछुड़े हैं पियारे से भटकते दर-ब-दर फिरते
रहें आजाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या
जो बिछुड़े हैं पियारे से भटकते दर-ब-दर फिरते
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या
खलक सब नाम अपपे को बहुत कर सिर पटकता है
हमन गुरनाम साँचा है हमन दुनिया से यारी क्या
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बेकरारी क्या
खलक सब नाम अपपे को बहुत कर सिर पटकता है
हमन गुरनाम साँचा है हमन दुनिया से यारी क्या
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बेकरारी क्या
कबीरा इश्क का नाता दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाज़ुक है हमन सिर बोझ भारी क्या
जो चलना राह नाज़ुक है हमन सिर बोझ भारी क्या
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