Friday, March 18, 2016

हम अपने अब्बा को भुनाना नहीं चाहते


बाएँ से दाएं - मंटो की बेटियाँ नुसरत, नुज़हत और निगहत 

सआदत हसन मंटो की बेटी निगहत का एक छोटा सा इंटरव्यू आपने हाल ही में पढ़ा होगा. पाकिस्तान की पत्रकार नायला इनायत ने 13 जनवरी 2012 को निगहत का एक और इंटरव्यू लिया था. नायला के ब्लॉग से साभार इसे मैं यहाँ अनुवाद करके पेश कर रहा हूँ

1946 में बंबई में जन्मीं मंटो की सबसे बड़ी बेटी निगहत मंटो अब लाहौर के मशहूर ‘द मॉल’ के पास लक्ष्मी मेंशंस के मंटो हाउस में रहती हैं. मंटो अपने जीवन के आख़िरी सालों में इसी फ़्लैट में रहे थे. एक जमाने में यह मोहल्ला नामी-गिरामी विद्वानों और लेखकों-कवियों से अटा रहता था.

निगहत यहाँ पिछले 11 सालों से रह रही हैं. उनका कहना है कि वे इस फ़्लैट की रिपेयर कराने के बाद अपने पीटीआई के साथ इसमें रहने लगीं. बातचीत को थोड़ा हल्का-फुल्का बनाने की नीयत से मैं निकहत से पूछती हूँ – “मंटो साहब की सबसे प्यारी बेटी कौन सी थी?”

“मुझे ठीकठीक याद नहीं पड़ता अगर उन्हें किसी एक से सबसे ज़्यादा प्यार थे. बल्कि यूं कह सकते हैं कि ज़िंदगी ने  अपनी फेवरेट बेटी बना सकने का मौका उन्हें दिया ही नहीं.” वे सपाट चेहरे के साथ उत्तर देती हैं.

जब मैं उनसे पूछती हूँ कि उन्हें अपने वालिद की कितनी याद है, वे कहती हैं, “हमने कभी भी उनके साथ समय नहीं गुज़ारा. हम उन्हें दूसरों से और उनकी किताबों से उन्हें जानते हैं. हम ये नहीं कह सकते कि हम उनके नज़दीक थे. आप नौ साल की बच्ची से इन सब छोटी बातों को याद रखने की उम्मीद नहें कर सकते!”

मंटो की अल्पायु में हो गयी मृत्यु को लेकर वे बोलीं, “अगर वो जिंदा होते तो बाकी पिताओं की तरह उनके पास भी हमारे लिए योजनाएं होतीं. हमारी बदकिस्मती है कि वे जल्दी चले गए.”

निगहत मंटो के साथ हुए उस साक्षात्कार का आगे का हिस्सा इस तरह है –

हमें अपने और अपनी बहनों के बारे में बताइये. मंटो के चाहनेवालों को इस बारे में बहुत कम मालूम है.

निकहत मंटो: ऐसा कैसे? (आश्चर्य के साथ) नौजवान प्रशंसकों को शायद न पता हो लेकिन उनके लेखन की वजह से पुरानी पीढी मंटो के परिवार के बारे में एक-एक चीज़ जानती है. सच तो यह है कि मंटो के जो हार्डकोर फैन्स हैं, उन्हें उनके बारे में वे सारी बातें पता हैं जो हम तक नहीं जानतीं.

हम तीन बेटियाँ हैं – नुसरत, नुज़हत और मैं. मैं सबसे बड़ी हूँ. हमारी माँ एक साधारण गृहिणी थीं. जब उनका इंतकाल हुआ, हम बहुत छोटी थीं – मैं नौ की थी, नुज़हत सात की और नुसरत पांच की.

मंटो बहुत कम उम्र में चल बसे थे. आपके परिवार ने अपना गुज़ारा कैसे किया?

सच कहूं तो मुझे उस सब के बारे में कुछ भी याद नहीं. मैं कहना चाहूंगी कि हमें हमारे परिवार ने बचाया. हमारी दादी हमारी माँ के लिए एक सपोर्ट सिस्टम बन गई थीं. उन्होंने हर दुःख-तकलीफ में हमारा साथ दिया. बाद में हामिद जाला (मंटो के भतीजे) और ऊपर के फ्लैट्स में रहने वाली हमारी मौसियों और चाचियों ने ऐसा किया.

हमारा परिवार  बहुत मजबूत था. अब्बा के मर जाने के बाद हमारी सारी दिक्कतों को हमारे बड़ों ने बहुत सलीके से सुलझाया. परिवार के मामलों ने हमें हमारे बचपन में कभी परेशान नहीं किया. हमें तो बाद में पता चला कि उनकी मौत के क्या मानी थे.

अपनी माँ के बारे में बताइये.मंटो के लेखन से पता चलता है कि वे उन्हें बहुत प्यारा करते थे. जब मंटो परिवार पाकिस्तान चला आया था, उस समय परिवार पर क्या-कैसी विपत्तियाँ पड़ीं?

हां, वो उन्हें बहुत प्यार करते थे. आप ये फोटो देख रहे हैं (वे सफ़िया के फ़्रेम किये हुए फोटो की तरफ इशारा करती हैं). अब्बा उन्हें फोटो के लिए पोज़ देने को तैयार करते थे. वे उनकी साड़ियों पर प्रेस करते थे और उनकी बड़ी स्टाइलिश तस्वीरें खींचते थे.

हमारे वालिद हर तरीके से बहुत मजबूत आदमी थे लेकिन माँ बहुत भोली थीं. वे इतनी भोली थीं कि कई बार उन्हें मंटो का लिखा समझ में नहीं आता था. अब्बा अलग से छोटी कहानियां लिखते थे और उन्हें समझाया करते थे. यह सब हमें हमारी माँ ने बताया था क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि हमें उनकी बस धुंधली सी याद है. हमारी माँ ने जैसे हमें बताया था कि उन्हें गाजर का हलवा बहुत पसंद था. और ऐसी ही कई बातें.

पति की मृत्यु के बाद उनका जीवन किसी भी अन्य स्त्री की तरह मुश्किल रहा होगा. लेकिन उन्होंने उस समय को किसी के साथ साझा नहीं किया.

उनकी मौत के बाद पाकिस्तान की सरकार ने सफ़िया के साथ जो किया वह अधिक दर्दनाक था. उनकी किसी भी प्रकाशित रचना को कोई इनाम नहीं दिया गया. जब मेरी माँ उन्हें पीने से रोकती थीं तो अबा कहा करते थे, “सफू, तुम्हें पैसे की कोई चिंता नहीं करनी होगी.” उन्हें लगता था कि वे इतना सारा छोड़ कर जा रहे हैं कि उनके परिव्रा को कभी किसी तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन उन्हें हर बार बैन कर दिया गया. और मज़े की बात है कि वे अब भी बैन हैं.

क्या आप आधुनिक टीवी ड्रामों की तरफ इशारा कर रही हैं? 

हां, आज के टीवी ड्रामों में शारीरिक निकटता और बोल्ड कहानियाँ – सब कुछ दिखाया जा रहा है. लेकिन उनके किसी भी नाटक को टीवी के लिए अडॉप्ट नहीं किया गया. पीटीवी ने कुछ किये हैं मगर उनमें कोई क्वालिटी नहीं है. मुझे समझ में नहीं आता कि मंटो के नाटक कोई क्यों नहीं करना चाहता. क्या बैन के कारण लोग उन पर काम करने से खौफ़ खाते हैं? उनकी कहानी ‘बू’ इतनी ताकतवर है. आप उसकी स्क्रिप्ट में खो जाते हैं. और मुझे उसमें कोई अश्लीलता नज़र नहीं आती.

मंटो की कब्र पर वह इबारत नहीं लिखी दिखती है जिसके बारे में हम पढ़ा करते हैं. उस इबारत को कब किसने और क्यों बदल दिया?

उनकी कब्र पर लिखे शब्द उन्हीं के हैं: “यहाँ सआदत हसन मंटो दफन है जिसके सीने में किस्सागोई की सारी कला और रहस्य छुपे हुए हैं. मिट्टी के इस ढेर के नीचे दफ़न किया हुआ भी वह सोच रहा है वह बड़ा किस्सागो है या ख़ुदा.”

लेकिन वह इबारत अब नज़र नहीं आती. मेरी फुफ्फू जो मेरे अब्बा के बिलकुल उलट थीं, ने उसे बदल दिया था क्योंकि उनका मानना था कि उसे वैसे ही रहने देने के गंभीर परिणाम होंगे.

सो अब वह इबारत कहती है: “यहाँ मंटो दफ़न है जो अब भी मानता हैं कि इस धरती पर आख़िरी शब्द उसी के नहीं थे.”

मंटो ताजिन्दगी लालची प्रकाशकों के बारे में शिकायत करते रहे. उनकी मौत के बाद क्या हुआ? क्या किसी ने आपके परिवार को कोई रॉयल्टी दी?

प्रकाशकों की कौम अब भी बची हुई है. है ना? हमें किसी ने कोई रॉयल्टी नहीं दी. बाद में जब संग-ए-मील ने उनके काम को छापा, तब जाकर हमें रॉयल्टी मिली. मेरी माँ ने तमाम साहित्यिक हस्तियों जैसे अशफाक अहमद आदि से मदद माँगी पर किसी ने कुछ नहीं किया. हमारे चचा, चाची और दादी ने हमारी आर्थिक सहायता की. यहाँ एक बात याद राखी जानी चाहिए. मंटो दूसरों की तरह उस लोटे की तरह नहीं थे जो सरकार बदल जाने पर पाला बदल लिया करते थे.

साहित्यिक हलकों, मीडिया और सरकारी संस्थानों ने मंटो की जन्मशताब्दी को अधिकतर अनदेखा ही किया. ऐसा क्यों? क्या आपका परिवार इस बाबत कुछ करने वाला है?

हां उनकी जन्मशताब्दी है और इस मौके पर कई इवेंट्स होंगी. और मैं उनकी अनदेखी करने के लिए मीडिया को दोष नहीं देती. हम बेटियाँ अपने अब्बा को भुनाना नहें चाहतीं. यह एक बात है कि वे हमारे साथ हैं. हम उनकी उपलब्धियों को भुनाना नहीं चाहते. ऐसा नहीं कि हम ऐसा कर नहीं सकते. हम ऐसा करना नहीं चाहते.

उनकी जन्मशताब्दी पर आयशा जलाल उनकी जीवनी लिख रही हैं और मेरे छोटी बहन नुसरत आयशा जलाल के साथ काम कर रही हैं.

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