छत्तर मंज़िल, लखनऊ, 1870 |
अब्दुल हलीम शरर की किताब 'गुज़िश्ता लखनऊ' से एक बेहतरीन क़िस्सा -
गाज़ीउद्दीन
हैदर के ज़माने में संगीत कला का एक बहुत बड़ा आचार्य लखनऊ में मौजूद था जिसका नाम
हैदरी था. ये साहब चूंकि खोये-खोये रहते थे इसलिए इनका नाम ‘सिड़े हैदरी खां’ मशहूर
हो गया और वे गोलागंज में रहते थे. गाज़ीउद्दीन हैदर को उनका गाना गाने का बड़ा शौक़
था मगर कभी इसका मौका नहीं मिला था.
एक रोज़ तीसरे पहर गाज़ीउद्दीन हैदर हवादार पर
सवार दरिया किनारे तफ़रीह के लिए निकले. रोमी दरवाज़े के नीचे लोगों ने देखा कि सिड़े
हैदरी खां चले जा रहे हैं. बादशाह से अर्ज़ की कि “किब्ला-ए-आलम! हैदरी खां यही
हैं.” बादशाह तो उत्सुक थे ही, हुक्म दिया, “बुलाओ”. लोग पकड़ लाये और सामने खड़ा कर
दिया. बादशाह ने कहा, “अरे मियाँ हैदरी खां, कभी हमें अपना गाना नहीं सुनाते?”
बोले, “जी हां, क्यों न सुनाऊंगा. मगर मुझे आपका मकान नहीं मालूम है.” बादशाह यह सुनकर हंस पड़े और कहा, “अच्छा
हमारे साथ, हम तुम्हें खुद अपने मकान पर ले चलेंगे.” “बहुत ख़ूब” कहकर बेतकल्लुफ साथ
हो लिए.
छत्तर मंजिल के करीब पहुंचे थे कि हैदरी खां हत्थे से उखड़ गए और बोले, “मैं
तो चलता हूँ मगर पूरियां और बालाई खिलवाइएगा, तो गाऊंगा.” बादशाह ने वादा किया और
महल में बैठकर गाना सुनने लगे. थोड़ी ही देर सुनकर बहुत आनंदित हुए. उनको हाल आने
लगा और वे बेसुध हो गए. यह हालत देखकर हैदरी खां ख़ामोश हो गए. बादशाह ने फिर गाने
को कहा तो बोले, “हुज़ूर, ये तम्बाकू जो आपके पेचवान में भरा हुआ है, बहुत ही अच्छा
मालूम होता है. आप किसकी दुकान से मंगवाते हैं?”
गाज़ीउद्दीन हैदर खुद भी सिड़ी मशहूर
थे. इस सवाल पर नाराज़ हुए तो मुसाहिबों ने अर्ज़ की, “किब्ला-ए-आलम, ये तो सिड़ी है
ही. अभी तक यही नहीं समझा कि किससे बातें कर रहा है.”
अब लोग
बादशाह के कहने पर हैदरी खां को दूसरे कमरे में ले गए. पूरियां बालाई खिलवाईं, हुक्का पिलवाया. उन्होंने पाव भर पूरियां, आध पाव बालाई और एक पैसे की शकर मंगवाकर
अपनी बीवी को भिजवाईं (जो उनका हर जगह का नियम था).
जब तक उन कामों में रहे, बादशाह
ने शराब के जाम पिए और जब नशे का जोर हुआ तो फिर हैदरी खां की याद हुई. फ़ौरन
बुलवाकर गाने का हुक्म दिया. मगर जैसे ही उन्होंने अपना गाना शुरू किया, रोक कर
कहा, “हैदरी खां, सुनते हो? और अगर मुझे खाली खुश किया और रुलाया नहीं तो याद रखो
गोमती में डुबवा दूंगा,” अब तो हैदरी खां की अक्ल चक्कर में आई समझे ये बादशाह
है.
कहा, “हुज़ूर, अल्लाह मालिक है.” और जी तोड़कर गाने लगे.
ख़ुदा की कुदरत, या यह
कहिये कि हैदरी खां की ज़िंदगी थी कि थोड़ी ही देर में बादशाह पर असर हुस और वे रोने
लगे और खुश होकर कहा, “हैदरी खां, मांग क्या मांगता है.” अर्ज़ किया, “जो मांगूंगा,
दीजियेगा?”
बादशाह ने वायदा किया और हैदरी खां ने तीन बार हामी भरवाकर कहा, “हुज़ूर,
यह मांगता हूँ कि मुझे फिर कभी न बुलवाइएगा, और न गाना सुनियेगा.”
बादशाह ने
ताज्जुब से पूछा, “क्यों?”
अर्ज़ किया, “आपका क्या है? मुझे मरवा डालियेगा. फिर मुझ
सा हैदरी न पैदा होगा, और आप मर जाएंगे तो फौरन दूसरा बादशाह हो जाएगा.”
इस जबाव
पर गाज़ीउद्दीन हैदर ने नाराज़ होकर मुंह फेर लिया. ये मौक़ा पाते ही हैदरी खां अपनी
जान लेकर भागे और अपने घर आये.
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