Monday, March 7, 2016

अब तौ भैया कलचर पै भी है हमला लंगूरे का


दिल्ली की बसंतसेनाएं
- संजय चतुर्वेदी

सहमत लोगों में मुन्सी जी अजब खेल है नूरे का
सोभित कर नवनीत लिए सो निकसत राग हजूरे का


मीरा सूर नजीर कबीरा सारे ढक्कन होत भए
अब तौ भैया कलचर पै भी है हमला लंगूरे का


दरसन था सैलिंदर का तहरीर उतारी संकर ने
कलापारखी बांचै उसको गाना राजकपूरे का


आदम सेना सिवसेना पै चढ़ जा बेटा फरमाई
दिल्ली की बसंतसेनाएं रस पी के अंगूरे का


मरी बिचारी जनता उल्लू सीधा भया मसीहा का
संसद जाय मदारी बैठा सत्यानास जमूरे का


चढ़ी चासनी कल्चर की तौ लगे हाथ परमारथ भी 
निरंकार है प्रगतिशीलता अगमपंथ कोई सूरे का


हाथ लंगोटी आई सारे भूत भाग के निकस गए
महिमा मिली क्रान्ति का सपना हो गया धूरमधूरे का.


(1991)

1 comment:

Pratibha Katiyar said...

गज़ब! मजा आ गया.