Sunday, January 8, 2017

हल्द्वानी के किस्से - 5 - आठ



परमौत की प्रेम कथा - भाग आठ 

चाय-कम-चैंटू-सेंटर में लफंडर छोकरों द्वारा दी गयी अप्रत्याशित चुनौती से आहत और पराजित हुआ परमौत फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्लास जाए या नहीं. प्रत्यक्षतः उसकी रणनीति फ़ेल हो गयी थी और उसे किसी दूसरी दिशा में सोचना शुरू करना था. लड़कियों का कम्प्यूटर कोचिंग में घुसना और उक्त लड़कों घटनास्थल से गायब हो जाना एक साथ घटा. वह फिर से वहीं बैठ गया.

उसने हार नहीं माननी थी और किसी भी तरह इस नए अड्डे को अपने नियंत्रण में लाने का जतन करना था. वह सोच रहा था लड़के वहां न होते तो दूर से ही सही लेकिन कितने इत्मीनान से वह मिनट भर के वस्ल का सुख प्राप्त कर सकता था. उसने गिरधारी लम्बू के नगर में उभरते हुए गुंडे के हालिया स्टैटस की सेवाएँ लेने अर्थात इन वाहियात लौंडों की सुतवाई कराने के बारे में भी विचार किया पर इससे हीरोइन के बागी हो जाने और अपनी फजीहत होने का खतरा था जैसा उसने एक पिक्चर में देखा था. रकीब नंबर एक यानी लम्बू अमिताब ने उसके दिमाग के एक अलग कोने पर कब्ज़ा किया हुआ था. लगातार परेशान करने वाला उसके दिमाग का यह हिस्सा उसके भीतर की स्क्रीन पर अक्सर हताश करनेवाली लम्बी-लम्बी सीक्वेंसें प्रोजेक्ट करता रहता था जिसमें पिरिया लम्बू के साथ भाग जाती थी या उन दोनों की शादी का समारोह चल रहा होता या वे दोनों मोटरसाइकिल पर नैनीताल की तरफ़ जाते नज़र आते. एक साइड को पाँव लटकाए बैठी पिरिया की एक बांह लम्बू की कमर को थामे रहती. कभी कभार इस स्क्रीन पर परमौत हम तीनों दोस्तों के साथ मिलकर गोल्डन रेस्तरां के बाहर लम्बू को धुन रहा होता था. यह आख़िरी वाली सीक्वेंस देखने से परमौत का मन हल्का हो जाया करता.

लड़कों के चले जाने के बाद उसके मन में एक बात और आई. बेशर्मी से ताड़े जा रहे उस समूह में पिरिया के अलावा तीन लड़कियां और भी थीं. क्या मालूम उन लड़कों के मोहब्बत-शिरोमणि की निगाह उन तीनों में से किसी पर हो. इस विचार को उसने तुरन्त खारिज कर दिया. पिरिया के होते हुए किसी और पर निगाह कैसे डाल सकता है कोई भी. वह लाखों में एक थी. उस के लाखों में एक होने के तथ्य ने ही तो परमौत का ऐसा हाल बना दिया था. पहले उसने साढ़े चार तक वहीं रहकर एक दफ़ा और अपने मन की मुराद पूरी करने के बारे में सोचा लेकिन लौंडे फिर से आ गए तो? होंगे पिरिया के कितने ही आशिक साले. बला से सारा हल्द्वानी उसका आशिक हो जाए शादी तो उससे लेकिन मैं ही करूंगा. इस पॉजिटिव नोट पर अपने विचारों को विराम देते हुए रुद्दरपुर जाकर पिछली उगाहियाँ निबटाने का निर्णय उसे ज्यादा तात्कालिक महत्त्व का लगा.

टांडा के जंगल की प्रच्छन्न हरियाली और ट्रैफिकहीन रास्ते ने हमेशा की तरह उसकी विचारश्रृंखला को रास्ते पर लाने का काम किया और उसने वही किया जो उसे करने चाहिए था. वह दो बोतलें और कुछ सामान लेकर गोदाम पहुँच गया जहां 'आये कुछ चिप्स कुछ शराब आये' की तर्ज़ पर हम उसके आने की उम्मीद में प्रतीक्षारत थे. नब्बू डीयर की जेब में उसके हिसाब से एक बेमिसाल ऐतिहासिक दस्तावेज़ था जिसे वह "पहले परमोद को आने दो फिर दिखाता हूँ" कहकर आधे घंटे से हमारे सब्र का इम्तहान ले रहा था. परमौत के आने से हमारे शरीरों में आशानुरूप आशा का संचार हुआ.

बोतलें किनारे रख पहले उसने अपने सतत संघर्ष और उस दिन बाज़ार में हुई घटना का विस्तृत वर्णन किया और अपनी आशिकी के मार्ग में आई नवीनतम अड़चन से हमें परिचित करवाया. पिरिया की मोहब्बत में अपने जीवन की ऐसी-तैसी हो चुकने और दोस्ती के नाम पर हमसे इस मीठे नशीले दलदल से उसे बाहर निकालने में सहायता करने की मांग की - "कभी तुमारा भी ऐसा ई बखत आयेगा तो फिर परमोद-परमोद मत करना हरामियो ...!"

परमौत की मनःस्थिति में पिछले महीने-डेढ़ महीने में भयंकर परिवर्तन आया था और इसका असर उसके चेहरे पर साफ़ झलकना शुरू हो चुका था. मुझे अहसास हुआ कि दोस्तों के तौर पर हम कितने बड़े मतलबी और हरामी हो चुके थे. एक लड़की के चक्कर में हमारा दानवीर कर्ण ऐसी दयनीय हालत में पहुँच गया था और हम बस उसके बोतलें लेकर आने के इंतज़ार में सुबहों की शाम किया करते. उसे हमसे इससे ज़्यादा सहानुभूति और वफ़ा की दरकार थी. हम भयंकर रूप से असफल साबित हुए थे. मुझे ग्लानि होने लगी.

गिरधारी लम्बू जैसा संवेदनाहीन मानव भी गिलास बनाने के बजाय परमौत की कहानी सुनकर ग़मगीन हो गया दिखने लगा. नब्बू डीयर पर अलबत्ता बहुत अधिक असर नहीं हुआ पर उसने अपनी सीट बदल ली और परमौत के कंधे के गिर्द अपनी बांह डालकर उसे ज्ञान परोसने लगा - "नाराज मती हो यार परमौती ... इतना सबर किया है तो थोड़ा और कर. वो कैते नहीं हैं कि भगवान के यहाँ साली देर लगने वाली हुई अंधेर जो क्या होने वाली हुई. देख वस्ताद, सब को जीना भी यहीं ठैरा और मरना भी यहीं ठैरा. मुकेश गुरु क्या कह गए हुए कसम से कि जग को हंसाने के लिए पैन्चो बहुरुपिया रूप बदल-बदल के आने वाला हुआ. यहीं स्वर्ग हुआ और यहीं आप समझ ले नरक भी होने वाला हुआ. मुकेश गुरु कैने वाले हुए कि मोब्बत करके आदमी गर्दिश का तारा बन जाने वाला ठैरा ... और भगवान के यहाँ देर हुई अंधेर कब्भी नहीं होने वाली हुई ... ये देख ..." लुरिया भकार उर्फ़ राजकपूर की जोकर वाली पिक्चर से सीखे इस वेदज्ञान की बघार से परमौत को अभिभूत कर चुकने के बाद नब्बू डीयर ने जेब से शादी के कार्ड जैसा दिखने वाला वह दस्तावेज़ बाहर निकाला.

"अब चूतियापंथी तो करो मत यार नबदा. ये साला सादी का कार्ड क्यों दिखा रहा हुआ अब? ... और बता क्या कैने वाले हुए तेरे मुकेश गुरु ..." 

"मुकेश गुरु कहने वाले हुए बेटे कि चाहे कुछ भी हो जाए चाहे तुम हमको भूल जाओ और चाहे वो हमको भूल जाएँ लेकिन सच्ची मोहब्बत करने वाले हमेशा एक दूसरे के ही होने वाले हुए ... और ..." - विषय पर आते हुए नब्बू डीयर ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा - "गणिया की शादी का कार्ड लाया हूँ बे. हम सबको न्यौता भेजा है उसने. सुन रहे हो बे हल्द्वानी वालो - छब्बीज्जनवरी को फैरने वाला है छविराम का झंडा सतनारायण धरमसाला में ..."

गणिया उर्फ़ गणेश उर्फ़ छविराम की शादी की सूचना से गोदाम में एक सुखद हड़कंप मच गया.

"किस्से हो री ..." गिरधारी ने गिलास भरते हुए उत्सुकता से पूछा.

"किस से क्या मतलब? उसी से हो रई जिस से होनी थी - फूलन से और किस से ..."

"मतलब उस दिन अस्पताल में तूने-मैंने जो सुना था वो सचमुच की मोब्बत थी ... मतलब फूलन के भाई ने मना नहीं करा होगा ऐसे घंट से अपनी बहन की शादी करने से ... देखने में हीरोइन से कम नहीं हुई फूलन और घर भी साली का ठीकठाक हुआ ... कहाँ वो कहाँ ये अपना भ्यास गणिया ... हद्द हो गयी ..." अपने दर्द को भुलाकर परमौत अब फूलन-छविराम के विवाह की खबर से उत्तेजित होकर सरहद पर तैनात किसी सिपाही की तरह चौकस हो गया था.

"और कहाँ पिरिया और कहाँ तू रे खबीस परमौतिया. किसी के मूं पे जो क्या लिखा रहने वाला हुआ कि किसके मल्लब भाग्य में क्या लिखा ठैरा. तू जो ये इतने दिन से डुडाट पाड़ रहा है कि मर गया मर गया ...  गणिया को देख जरा. न साले के पास पैसे हुए, न शकल हुई. कैसे गदागद मारने वाला हुआ उसको वो फूलन का भाई काठगोदाम के थाने ले जा-जा के.  तुझे मालूम ही हुआ. एक बार भी डाड़ मारते देखा तूने गणिया को ... आज देख ... हड्डियां टोड़ा-टुड़ू के भी साला शान से अपने घर ले जाएगा फूलन को ... वो भी छब्बीज्जनवरी को ... काठगोदाम के थाने में ही अपनी बहन की शादी का तिरंगा फैराएगा दरोगा उस दिन... अपने को देख ज़रा - हम्मेशा साला डाड़ाडाड़-टिटाट-डुडाट ... अबे प्यार कर रहा है कि भांग का पौडर बेच रहा है पैन्चो... सबर कर, मेनत कर, ज़रा मरद बन के गणिया से सीख ... ऐसेई मर जाता हूँ मर जाता हूँ कैने से हो जाती होगी शादी ... ना तेरे को पैसे की कमी हुई, ना घर में पूछने को ईजा-बाबू हुए, एक तेरा हुड्ड ददा ठैरा बस ... उस से ही डरने वाला हुआ तू जैसे ... और फिर हम साले मर गए हैं कोई अभी से ..."

नब्बू डीयर का भाषण असरदार था और कभी-कभार उसकी जिह्वा पर सवार हो जाने वाली सरस्वती माता के आशीर्वाद के कारण पैदा होने वाली उसकी वक्तृता का लोहा हम लोग लम्बे समय से मानते आये थे. परमौत ने एक के बाद एक दूसरा गिलास हलक में उड़ेला और नब्बू डीयर के गले लगता हुआ सचमुच का इमोशनल होता हुआ बोला - "तेरी बात में दम हुआ यार नबदा ... सही कैता है ... ऐसेई हार जो क्या जाना हुआ ... नबदा सही कैने वाला हुआ ... हमारा उस्ताज ठैरा तभी तो... अब कल से पिरिया से सादी का प्रोजेक्ट चालू ... गोल्ल गंगनाथ द्यप्ता की कसम कल से ... हर हाल में ... उठो पंडित, चलो बेटा गिरधारी... गणिया-फूलन अमर रहें  ... आत्तो पाल्टी होगी ..."


(जारी) 

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