Thursday, January 4, 2018

लाड़ले की कविता

रोहतक में रहने वाली शुभा जी मेरी प्रिय कवयित्रियों में शुमार हैं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है -


लाड़ले
- शुभा

1.

कुछ भी कहिये इन्हें
दूल्हा मियाँ या नौशा मियाँ

मर चुके पिता की साइकिल पर दफ्तर जाते हैं

आज बैठे हैं घोड़ी पर नोटों की माला पहने
कोशिश कर रहे हैं सेनानायक की तरह दिखने की

2.

18 साल की उम्र में इन्हें अधिकार मिला
वोट डालने का
24 की उम्र में पाई है नौकरी
ऊपर की आमदनी वाली
अब माँ के आँचल से झांक-झांक कर
देख रहे हैं अपनी संभावित वधू

3.

सुबह छात्रा महाविद्यालय के सामने
दुपहर पिक्चर हॉल में बिताकर
लौटे हैं लाड़ले

उनके आते ही अफरातफरी सी मची घर में

बहन ने हाथ धुलाये
भाभी ने खाना परोसा
और माताजी सामने बैठकर
बेटे को जीमते देख रही हैं

देख क्या रही हैं
बस निहाल हो रही हैं

4.

अभी पिता के सामने सिर हिलाया है
माँ के सामने की है हांजी हांजी
अब पत्नी के सामने जा रहे हैं

जी हाँ जी हाँ कराने

7 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह क्या बात है ।

Anonymous said...

super

'एकलव्य' said...

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'सोमवार' ०८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

Pratibha Katiyar said...

ऐसे ही लाडलों से पाला पड़ता है रोज ही

Shakuntla said...

वाह क्या बात

शाहनाज़ इमरानी said...

शुभा जी ख़ुद भी एक सुन्दर कविता हैं।
बहुत सशक्त कविताएं लिखती हैं।

शाहनाज़ इमरानी said...

शुभा जी ख़ुद भी एक सुन्दर कविता हैं।
बहुत सशक्त कविताएं लिखती हैं।