रोहतक में रहने वाली शुभा जी मेरी प्रिय कवयित्रियों में शुमार हैं. उनकी एक कविता प्रस्तुत है -
लाड़ले
-
शुभा
1.
कुछ
भी कहिये इन्हें
दूल्हा
मियाँ या नौशा मियाँ
मर
चुके पिता की साइकिल पर दफ्तर जाते हैं
आज
बैठे हैं घोड़ी पर नोटों की माला पहने
कोशिश
कर रहे हैं सेनानायक की तरह दिखने की
2.
18
साल की उम्र में इन्हें अधिकार मिला
वोट
डालने का
24
की उम्र में पाई है नौकरी
ऊपर
की आमदनी वाली
अब
माँ के आँचल से झांक-झांक कर
देख
रहे हैं अपनी संभावित वधू
3.
सुबह
छात्रा महाविद्यालय के सामने
दुपहर
पिक्चर हॉल में बिताकर
लौटे
हैं लाड़ले
उनके
आते ही अफरातफरी सी मची घर में
बहन
ने हाथ धुलाये
भाभी
ने खाना परोसा
और
माताजी सामने बैठकर
बेटे
को जीमते देख रही हैं
देख
क्या रही हैं
बस
निहाल हो रही हैं
4.
अभी
पिता के सामने सिर हिलाया है
माँ
के सामने की है हांजी हांजी
अब
पत्नी के सामने जा रहे हैं
जी
हाँ जी हाँ कराने
7 comments:
वाह क्या बात है ।
super
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'सोमवार' ०८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ऐसे ही लाडलों से पाला पड़ता है रोज ही
वाह क्या बात
शुभा जी ख़ुद भी एक सुन्दर कविता हैं।
बहुत सशक्त कविताएं लिखती हैं।
शुभा जी ख़ुद भी एक सुन्दर कविता हैं।
बहुत सशक्त कविताएं लिखती हैं।
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