एक बेहद उदास कर देने वाली कम्पोजीशन।
आत्मा के किसी निविड़ कोने में सतत गूंजता सहस्त्राब्दियों पुराना एक विलाप।
घर के पिछवाड़े में रात भर जली छूट गई एक बत्ती* जो दिन भर जली रहती है: शाम के किसी बीहड़ पल वही भुला दी गई बत्ती आपकी ज़िन्दगी को यादों से अटा डालती है सारी चीज़ों को तहस-नहस करती हुई।
गायक हैं एक बार फिर महान पॉल रोब्सन.
*(सन्दर्भ: येहूदा आमीखाई की कविता: 'किसी को भूलना')
Sometimes I feel like a motherless child
Sometimes I feel like a motherless child
Sometimes I feel like a motherless child
A long way from home
A long way from home
A long way from home
A long way from home
Sometimes I feel like I'm almost gone
Sometimes I feel like I'm almost gone
Sometimes I feel like I'm almost gone
A long way from home
A long way from home
A long way from home
A long way from home
5 comments:
अशोक साहब, अभी तो आपके पिछले गीत की अनुभूतियां भी खत्म नहीं हुईं है!
मैथिली जी, असल में ये दोनों गीत एक दूसरे के अपरिहार्य पूरक हैं. मुझे बहुत अच्छा लगा कि कोई इतने अच्छे से महान रोब्सन को सुन रहा है. शुक्रिया.
कितना रुलाएंगे? कोई शिकायत नहीं है। हम पॉल रॉबसन के साथ रोना चाहते हैं।
पाश्चात्य साहित्य में गहरी रुचि के बावजूद वहां के गीत-संगीत से मेरा बहुत सामान्य-सा रिश्ता रहा है . आप मुझे लगातार उसे 'अप्रीशिएट' करना सिखा रहे हैं . अपने को अधिक संवेदनशील महसूस करता हूं और पहले से समृद्ध भी .
शुक्रिया! बहुत-बहुत शुक्रिया!
its b'ful ! thanks.
ghughutibasuti
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