Sunday, July 21, 2013

काफ़्का और गाबो के बहाने एक उम्मीद


“किसी किताब ने हमारे भीतर जमे हुए समुद्र के वास्ते एक कुल्हाड़ी होना चाहिए.”

१९०४ में जब फ्रान्ज़ काफ़्का अपने दोस्त ऑस्कर पोलाक को अब बहुत प्रसिद्ध हो चुके ये शब्द लिख रहा था, अनजाने में ही उसने तब तक अप्रकाशित अपनी रचना ‘द मेटामॉर्फ़ोसिस’ के उस प्रभाव को देख लिया था जो १९४० के दशक में काफ़्का की इस किताब का स्पानी अनुवाद पढ़ रहे कोलंबिया के बोगोटा में विश्वविद्यालय के एक छात्र पर पड़ने वाला था.  

आज से १३० साल पहले इसी माह (३ जुलाई १८८३) प्राग में पैदा हुए काफ़्का का असर अल्बैर कामू से लेकर बोर्हेस तक बीसवीं सदी के तमाम लेखकों पर देखा जा सकता है – विचित्र और अतियथार्थपूर्ण स्थितियों के लिए ‘काफ़्काई’ (Kafkaesque) शब्द तक ईजाद होकर भाषों का हिस्सा बन चुका है – लेकिन ग्रेगोर साम्सा के कायान्तरण का सबसे बड़ा असर ग़ाब्रीएल गार्सीया मारकेज़ के सारे रचनाकर्म की प्रेरणा बना.

गाबो ने १९८१ में स्वीकार किया था कि ‘द मेटामॉर्फ़ोसिस’ पढ़ने के बाद उनकी नींद के पैटर्न हमेशा के लिए बदल गए. उन्होंने कहा था “मुझे मालूम ही नहीं था कि आपको इस तरह लिखने की इजाज़त है. अगर मैंने ‘द मेटामॉर्फ़ोसिस’ पहले पढ़ ली होती तो लिखना भी कब का शुरू कर दिया होता.”

गाबो पर काफ़्का का यह असर इस पृष्ठभूमि और और भी ‘काफ़्काई’ बन जाता है जब हम सोचते हैं कि अगर उसके दोस्त मैक्स ब्रॉड ने काफ़्का की अंतिम इच्छा मान ली होती और उसकी सारी पांडुलिपियाँ आग के हवाले कर दी होतीं.

ब्रॉड ने काफ़्का का चुनिन्दा काम दुनिया के सामने लाने का सद्कार्य किया ज़रूर पर उसके लिखे हज़ारों पन्ने आज भी इजराइली राष्ट्रीय पुस्तकालय में धरे हुए हैं जिन्हें छपना बाकी है. इस सिलसिले में लम्बे समय से चल रहे एक मुक़दमे में पिछले साल तेल अवीव के एक न्यायाधीश ने फ़ैसला सुनाया कि काफ़्का का अप्रकाशित काम जेरूशलम में इजराइली राष्ट्रीय पुस्तकालय की संपत्ति है.

इतना तय है कि देर-सबेर यह काम जब भी सामने आएगा दुनिया के किसी कोने में कहीं कोई युवा लेखक पहली बार उस काफ़्का से रू-ब-रू होगा और हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि उस युवा के भीतर आज़ाद किये जाने को बेताब एक जमा हुआ समुद्र होगा.

1 comment:

Unknown said...

यह बात मुझे हमेशा हैरान करती है कि काफ्का का इतना पढ़कर यह हाल है और जब वो हजारों पन्ने मैं पढ़ पाऊंगा,तब क्या होगा...और यह भी जादुई बात लगती है कि काफ्का के हजारों पन्ने अब भी मौजूद हैं और पढ़े जा सकते हैं और उन्हें अभी किसी ने नहीं पढ़ा है ......