Saturday, August 3, 2013

एक साथ जब वे दिखीं उनके चेहरे ढके थे पवित्र कपड़े से


मृतक की प्रेमिकाएं 

-प्रमोद कौंसवाल

कहते तो यहां तक हैं
वो मरी ही नहीं
उनकी आत्माएं यहीं कहीं हैं
त्रस्त और व्यथित
भूखी आत्माओं के अन्नसकंट में

वे कभी एक साथ नहीं देखी गईं
सिवाय तब जब वो अलग हो गई थी
और बाद में आधे
-अधूरे बंद-खुले
बेनूर चेहरों में दिखी थीं
मासूमियत बचाने की चिंता के साथ

इतना तो साफ़ है जो मर गया वो प्रेमी था
लेकिन तमाम मर चुकी आत्माओं की तरह
वो जीवित था और
प्रेमिकाएं मारी जा चुकी थीं

उनकी मरने की कहानियों का अंत नहीं है
वो सब अलग अलग मरीं
इस बारे में उनकी कई सच्ची-झूठी कहानियां हैं
वो फैलाई भी गई थीं
और ख़ुद भी फैल जाती थीं
क्योंकि वो प्रेमिकाएं थीं

उनके हर काम आहिस्ता होते थे
बहुत कानाफ़ूसी में
उन्होंने साबित किया
कैसे चुपचाप किए गए कामों की आवाज़
दुनिया में सबसे तेज़ सुनी जाती है

एक तो उनमें इस तरह मरी कि
घास लकड़ी खोजते खोजते
वो एक खड़ी पहाड़ी पर चढ़ गई
और उसी पहाड़ी की दूसरी तरफ़
मर गई फ़िसलकर
उसकी मां कहती है
ससुराल जाने से पहले उसकी तमन्ना
मां के प्राणों में बस जाना था

दूसरी इस तरह मरी वह कहती
मरी नहीं विलीन हो गई
सृष्टि में दफ़्न हो गए उसके विकार
एक अख़बार का संपादक उसे
नौकर की बेटी जानते हुए ही
पहनकर ले गया कमीज़ की तरह
देस
-परदेस की यात्रा पर
जिसे उसने बाद में नौकरी के नाम पर
विश्वविद्यालयी पूजा पाठ में लगाया

तीसरी जगदीशपुरा के जंगलों में भटकती रही
उसे खा गया भाट नाम का जानवर
जिसने पहले उसे ख़ुद के पिता की तरह कहा
धर्मशाला की चार बंद दीवारें सहम गई
खांसते हुए उसने बंद की खिड़की
कहा मैं गोताख़ोर हूं लगा दूं छलांग इस नदी में

ये और इनकी तमाम और सहेलियों के
शादी के कार्ड कभी नहीं छपे
आमदनी का प्रमाण पत्र नहीं लिखा गया
मूल निवासी कहां की
किसी को क्या दिलचस्पी होती

एक साथ जब वे दिखीं
उनके चेहरे ढके थे पवित्र कपड़े से
उनके हाथ हिलौरे ले रहे थे
जैसे वो कहती थी उनको नोचा जाता रहा
वो बात बेबात कहती गिद्द भेड़िए चील
जैसे यही उनके सबसे रटे रटाए प्यारे शब्द थे
फोटू में भी वो दिखी तो छपी हुई दिखी
हां इस पूरे वाक़िए में
ख़ास बात ये भी थी
उनकी फ़ोटू के नीचे
मेरा नाम दर्ज था जो मृतक बताया गया
और उन सबके लिए लिखा गया
ये हैं मृतक की प्रेमिकाएं

1 comment:

वर्षा said...

और अब भी भटक रही हैं कितनी...मृतक की प्रेमिकाएं। सुंदर कविता है प्रमोद जी।