आजाद हिन्दुस्तान के शहीदों में गिने जाएंगे डा. दाभोलकर
जन संस्कृति मंच
कल 20 अगस्त, मंगलवार
के दिन पुणे में मार्निंग वाक पर निकले मशहूर अंधविश्वास-विरोधी, तर्कनिष्ठा और विवेकवादी आन्दोलनकर्ता डा. नरेन्द्र दाभोलकर की अज्ञात
अपराधियों ने नृशंस ह्त्या कर दी . डा. दाभोलकर लम्बे समय से समाज में अंध-आस्था
की तिजारत और राजनीति करनेवालों के निशाने पर रहे। डा. दाभोलकर की जिस दिन ह्त्या
हुई , उसी दिन वे पर्यावरण की दृष्टि से हानिरहित गणेश
प्रतिमाओं के आगामी त्योहारों के समय प्रयोग के लिए प्रेसवार्ता करनेवाले थे.
दाभोलकर लम्बे समय से महाराष्ट्र विधानसभा में अंधविश्वास और काला-जादू विरोधी
विधेयक को पास करके क़ानून बनवाने के लिए प्रयासरत थे, जिसका
भारी विरोध कई तरह के साम्प्रदायिक संगठन कर रहे थे, हालांकि
शिवसेना और भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दल इस विधेयक के पक्ष में थे. उनकी
ह्त्या के बाद अचानक जागी पुलिस हाल के दिनों में उन्हें 'सनातन
प्रभात' और 'हिन्दू जन जागृति समिति'
जैसे संगठनों से मिल रही धमकियों के आरोपों की जांच कर रही है. उनकी
ह्त्या काफी सुनियोजित थी क्योंकि हत्यारों को पता था कि पुणे में वे प्रायः
सप्ताह के दो दिन यानी सोमवार और मंगलवार को ही रहते हैं .
डा. दाभोलकर (65) सतारा जिले में एक ऐसे परिवार में पैदा हुए थे जो समाजवादी आन्दोलन से
जुड़ा हुआ था. पेशे से वे डाक्टर थे और लगभग 10 साल डाक्टरी
पेशे में काम करने के बाद उन्होंने अपना जीवन सामाजिक चेतना निर्माण और परिवर्तन
के लक्ष्य को समर्पित कर दिया. समाजवादी नेता बाबा अढाव के साथ 'एक गाँव, एक कुंआ' आन्दोलन में
उन्होंने 1983 से काम करना शुरू किया और 1989 में उन्होंने महाराष्ट्र अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति का निर्माण किया.
दाभोलकर तांत्रिकों, बाबाओं, चमत्कार
से रोग दूर करने का दावा करनेवाले धोखेबाजों और तमाम पिछड़ी हुई धर्मानुमोदित
प्रथाओं के खिलाफ आन्दोलन को स्कूलों, कालेजों और गाँव-गाँव
तक ले गए. पिछले 30 वर्षों से वे लगातार ऐसे तत्वों से जूझते
तथा तर्क और विवेकशीलता की चेतना निर्मित करते हुए सक्रिय रहे. इस दरमियान
उन्होंने 30 से अधिक किताबें लिखीं, मराठी
साप्ताहिक 'साधना' का सम्पादन किया और
सतारा नशा-मुक्ति केंद्र की स्थापना भी की . सन 2000 में
उन्होंने अहमदनगर के शनि शिन्गनापुर मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश के लिए
ज़बरदस्त आन्दोलन चलाया. उन्होंने निर्मला देवी और नरेन्द्र महाराज जैसे बेहद
ताकतवर धर्मगुरुओं को खुली चुनौती दी. इस साल होली के ठीक पहले भयानक सूखे का
सामना कर रहे महाराष्ट्र में आसाराम बापू द्वारा हजारों लीटर पेयजल से होली खेले
जाने को डा. दाभोलकर ने चुनौती दी और अंततः सरकार को इस पर प्रतिबन्ध लगाना पडा.
हमारे देश में पिछडापन और सामंती अवशेष तो अंधविश्वासों के लिए
ज़िम्मेदार हैं ही, भ्रष्टाचार, सट्टे और दलाल पूंजी की मार्फ़त अमीर और ताकतवर बने मुट्ठी भर लोग अपनी
चंचला पूंजी की हिफाजत की दुश्चिन्ता से घिर कर ढोंगियों और आपराधिक धर्मगुरुओं के
संरक्षक बने हुए हैं . इनमें राजनेता, नौकरशाह और थैलीशाह
बड़े पैमाने पर शामिल हैं जिनकी सहायता के बगैर अंधश्रद्धा का अरबों-खरबों का
कारोबार एक दिन नहीं चल सकता. बौद्धिक- वर्ग का भी अच्छा- खासा हिस्सा न केवल
संस्कारतः अंध-श्रद्धा की चपेट में है, बल्कि कुछ लोगों ने
तो इसको पालने-पोसने में निहित स्वार्थ तक विक्सित कर लिए हैं . दूसरी ओर, बड़े पैमाने पर गरीबी और बेरोज़गारी से बदहाल देश की जनता का एक बड़ा
हिस्सा मानसिक राहत के लिए 'हारे को हरिनाम' की मनोदशा में ढोंगी धर्मगुरुओं, तांत्रिकों और
चमत्कार से इलाज करनेवालों के चंगुल में फंसता रहता है. मीडिया बड़े पैमाने पर
अंधविश्वास हर दिन परोसता है. जिस देश में आज भी अनेक स्थानों पर निर्दोष
स्त्रियाँ डायन कह कर मार दी जाती हों, जहां नर-बलि तक के
समाचार अखबारों की सुर्खियाँ बनते हों, जहां मनोचिकित्सा अभी
भी बड़े पैमाने पर ओझा-सोखा के हवाले हो, वहां डा. दाभोलकर
का काम कितना सुस्साध्य रहा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है.
सबसे बढकर अंध-आस्था का उपयोग राजनीति और तिजारत के लिए, जनता की चेतना को दिग्भ्रमित करने के लिए ताकि वह अपनी वंचना के कारणों को
जान न सके ,अपने वास्तविक हक़-हुकूक के लिए लड़ न सके,
किया जाता है. ऐसे में डा. दाभोलकर पूंजी की सत्ता की आँखों में भी
किरकिरी बने हुए थे. उन पर हमले पहले भी होते रहे, धमकियां
पहले भी मिलती रहीं, उनकी प्रेस-वार्ताओं में पहले भी उपद्रव
किया जाता रहा, लेकिन विनम्रता के साथ सादगी भरा जीवन जीते
हुए वे अपने काम में अडिग बने रहे.
सन 2011 में केरल युक्ति संघम के अध्यक्ष
यू. कलानाथन पर टी वी शो के दौरान तब हमला किया गया जब वे तिरुवअनंतपुरम के
पद्मनाभ स्वामी मंदिर की अकूत धन संपदा के सार्थक उपयोग पर बहस कर रहे थे. इसी तरह
सन 2012 में मुंबई के एक चर्च में जीजस की प्रतिमा की आँखों
से आंसू निकलने को चमत्कार कहे जाने के खिलाफ जब विवेकवादी चिन्तक सनल एडामरुकु ने
वैज्ञानिक कारण प्रस्तुत किए तो उन पर धार्मिक विद्वेष फैलाने का मुकदमा ठोंक दिया
गया. और अब तो डा. दाभोलकर की ह्त्या ही कर दी गई है. जिन दक्षिणपंथी ताकतों ने यह
घृणित कारनामा अंजाम दिया है, वे यह न भूलें कि भारत में विवेकवाद
और तर्क-प्रमाणवाद की भी एक परम्परा है जो हजारों साल पुरानी है. लोकायत की हजारों
साल पुरानी परम्परा को बदनाम और विरूप करने, उसके ग्रंथों को
नष्ट कर डालने के बाद भी वह लोक- मनीषा में नए-नए ढंग से आकार ग्रहण करती रही. डा.
नरेन्द्र दाभोलकर इसी महान परम्परा की अद्यतन कड़ी हैं. वे तर्क-प्रमाणवाद,
विवेकवाद के जुझारू योद्धा के बतौर आज़ाद हिन्दुस्तान में मानसिक
गुलामी के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए.
जन संस्कृति मंच उनकी प्रेरणादाई स्मृति को तहे-दिल से सलाम
करता है.
( सुधीर सुमन, राष्ट्रीय सह-सचिव,
जन संस्कृति मंच द्वारा जारी )
1 comment:
श्रद्धांजलि!
http://ulooktimes.blogspot.in/2013/08/blog-post_21.html
पर :
"हत्या हुई है एक चिंतक की चिंता किसे है"
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