अयूब खान जब सत्तारूढ़ थे, पढ़े-लिखों
में उनका सलाहकार बनने को फैशनेबल और फायदेमंद माना जाता था. इस से इस बात की
गारंटी हो जाती थी कि आप पर कोई मुकदमे वगैरह नहीं चलेंगे और आपका जीवन बेहतर
रहेगा. किसी बुद्धिजीवी को खरीदने के लिए यह कीमत देने को अयूब खान हमेशा तत्पर
रहते थे. और कतार में लगे हुवों की तादाद खासी थी. हफीज़ जालंधरी इनमें शामिल थे. जालंधरी
साहब ने ही पाकिस्तान का राष्ट्रगान लिखा था.
एक दफ़ा जालिब साहब की मुलाक़ात हफ़ीज़
जालंधरी से हुई. हफ़ीज़ जालंधरी ने टिप्पणी की कि अयूब साहब के सलाहकार के तौर पर
उनका जीवन बेहद व्यस्त रहता है.
इस वाकये के बाद हबीब जालिब ने यह
नज़्म लिखी थी. उनकी आवाज़ में सुनिए और पढ़िए –
मुशीर
मैंने उससे ये कहा
ये जो दस करोड़ हैं
जेहल का निचोड़ हैं
इनकी फ़िक्र सो गई
हर उम्मीद की किस
ज़ुल्मतों में खो गई
ये खबर दुरुस्त है
इनकी मौत हो गई
बे शऊर लोग हैं
ज़िन्दगी का रोग हैं
और तेरे पास है
इनके दर्द की दवा
मैंने उससे ये कहा
तू ख़ुदा का नूर है
अक्ल है शऊर है
क़ौम तेरे साथ है
तेरे ही वज़ूद से
मुल्क की नजात है
तू है मेहरे सुबहे नौ
तेरे बाद रात है
बोलते जो चंद हैं
सब ये शर पसंद हैं
इनकी खींच ले ज़बाँ
इनका घोंट दे गला
मैंने उससे ये कहा
जिनको था ज़बाँ पे नाज़
चुप हैं वो ज़बाँ-दराज़
चैन है समाज में
वे मिसाल फ़र्क है
कल में और आज में
अपने खर्च पर हैं क़ैद
लोग तेरे राज में
आदमी है वो बड़ा
दर पे जो रहे पड़ा
जो पनाह माँग ले
उसकी बख़्श दे ख़ता
मैंने उससे ये कहा
हर वज़ीर हर सफ़ीर
बेनज़ीर है मुशीर
वाह क्या जवाब है
तेरे जेहन की क़सम
ख़ूब इंतेख़ाब है
जागती है अफ़सरी
क़ौम महवे ख़ाब है
ये तेरा वज़ीर खाँ
दे रहा है जो बयाँ
पढ़ के इनको हर कोई
कह रहा है मरहबा
मैंने उससे ये कहा
चीन अपना यार है
उस पे जाँ निसार है
पर वहाँ है जो निज़ाम
उस तरफ़ न जाइयो
उसको दूर से सलाम
दस करोड़ ये गधे
जिनका नाम है अवाम
क्या बनेंगे हुक्मराँ
तू "यक़ीं" ये "गुमाँ"
अपनी तो दुआ है ये
सद्र तू रहे सदा
मैंने उससे ये कहा
(मुशीर - सलाहकार, ज़ुल्मतें - अँधेरे,
मेहर-ए-सुभ-ए-नौ - नई सुबह का सूरज, शर पसंद -
शरारतपसन्द. नोट- नज़्म के लिखे जाते वक़्त पाकिस्तान की आबादी दस करोड़ थी.)
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(जारी)
3 comments:
खूब.
बहुत खूब
http://youtu.be/COPhZ0PYd5Y
बहुत खूब
http://youtu.be/COPhZ0PYd5Y
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