Sunday, April 27, 2014

नहीं मैं बोल सकता झूठ इस दर्ज़ा ढिठाई से - हबीब जालिब और उनकी शायरी – 6


निश्चित ही, चीज़ें मरम्मत किये जाने की हदें पार कर चुकी थीं. नागरिक असंतोष बढ़ता बढ़ता गृहयुद्ध में तब्दील हुआ और इसका अंत १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में हुआ. पूर्वी पाकिस्तान इतिहास बन गया और बांग्लादेश अस्तित्व में आया. पश्चिमी पकिस्तान में नागरिक असंतोष और बढ़ा और अफवाहें फैलने लगीं कि युवतर सैन्य अफसरों ने सत्तापलट की तैयारी कर ली है. २० दिसम्बर १९७१ को जनरल याह्या खान को मजबूर होकर सत्ता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को सौंपनी पड़ी. पिछले १४ सालों में वे लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए पहले पाकिस्तानी नेता थे. ऐसा लगने लगा था कि हबीब जालिब अब आराम कर सकते थे. 

जालिब पाकिस्तान के धर्मगुरुओं के हमेशा खिलाफ रहते थे. वे समझ गए थे कि अधिकाँश धर्मगुरु सामन्तवाद के समर्थक हैं क्योंकि इसी में लोगों का शोषण और उनकी बेहतरी शामिल थी. इसी थीम पर उनकी नज़्म है – ‘मौलाना’. सुनिए लाल बैंड द्वारा प्रस्तुत यही रचना -


बहुत मैंने सुनी है आपकी तक़रीर मौलाना
मगर बदली नहीं अब तक मेरी तक़दीर मौलाना

खुदारा सब्र की तलकीन अपने पास ही रखें
ये लगती है मेरे सीने पे बन कर तीर मौलाना

नहीं मैं बोल सकता झूठ इस दर्ज़ा ढिठाई से
यही है ज़ुर्म मेरा और यही तक़सीर मौलाना

हक़ीक़त क्या है ये तो आप जानें और खुदा जाने
सुना है जिम्मी कार्टर आपका है पीर मौलाना

ज़मीनें हो वडेरों की, मशीनें हों लुटेरों की
ख़ुदा ने लिख के दी है आपको तहरीर मौलाना

करोड़ों क्यों नहीं मिलकर फ़िलिस्तीं के लिए लड़ते
दुआ ही से फ़क़त कटती नहीं ज़ंजीर मौलाना

(तलकीन –उपदेश, तक़सीर- पाप)

(जारी)