Monday, April 28, 2014

एवरेस्ट के शेरपा – कंचनजंघा की कविता

करीब एक हफ़्ता पहले माउंट एवरेस्ट पर एक अभियान के दौरान हिमस्खलन के कारण १६ शेरपाओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. तब से एवरेस्ट अभियानों पर अस्थाई रोक लगाने और शेरपाओं के लिए बीमा और दुनिया के सबसे जोखिमभरे व्यवसाय के लिए अन्य सुविधाओं की मांग करता नेपाल में शेरपा समुदाय सार्वजनिक विरोध कर रहा है.

बीते हालिया समय में एवरेस्ट-आरोहण का कारोबार खूब फल-फूला है. अकेले २०१३ में ६५८ लोगों ने इस शिखर पर फतह हासिल की और एवरेस्ट पर बाकायदा “ट्रैफिक जाम” की तस्वीरें अखबारों में छपती रहीं, जों पहले के समय के एवरेस्ट-अभियानों की साहस-कथाओं से कहीं दूर की बात लगती है.

तब भी एवरेस्ट-आरोहण आज भी धनवान पर्यटकों के लिए विशिष्ट रूमानियत भरा रूहानी महत्व तो रखता ही है. अपने पेसे के कारण कई-कई बार एवरेस्ट की चोटी चढ़ चुके शेरपाओं की दास्तानें इस रूमानियत को कम करती हैं. रस्सियाँ बाँधने, सामान लाद कर ले जाने और रास्ता दिखाने जैसे मुश्किल काम करने वाले शेरपाओं को अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से दो-चार होना पड़ता है.

नेपाल में साहसिक पर्यटन के फलने-फूलने से शेरपा समुदाय को लाभ अवश्य पहुंचा है. और २००२ के पर्यटन सुधार क़ानून के बाद ट्रेकिंग एजेंटों को शेरपाओं के लिए बीमा और सुरक्षा मुहैय्या कराना अनिवार्य करा दिया गया है लेकिन हर साल एवरेस्ट-उद्योग से होने वाली मोटी कमाई को देखते हुए शेरपाओं के हिस्से में आने वाला आर्थिक लाभ और पहचान खेदजनक रूप से कम है. इस असमानता को चीन्हे जाने की आवश्यकता तो है ही इसका समाधान भी जल्दी निकाला जाना चाहिए.

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इन्डियन एक्सप्रेस में छपी इस रपट की तरफ ध्यान दिलाने के लिए बड़े भी और कवि संजय चतुर्वेदी का शुक्रिया. संजय जी के ही कविता संग्रह ‘प्रकाशवर्ष’ से प्रस्तुत करता हूँ उनकी एक प्रासंगिक कविता –


कंचनजंघा

-संजय चतुर्वेदी

कठिन होगी चढ़ाई कंचनजंघा की
जैकी चोपड़ा ने कहा
अखबार में खबर छपी छः महीने पहले
तीन साल से चल रही हैं तैयारियां
बीस साल की साध है
चौबीस वर्षीय जैकी चोपड़ा की कम नहीं
वैसे ही घरों से आये
बीस जांबाज़ साथी
एक-एक चीज़ नाप-नौल कर
पैकिंग हो रही है

कुत्ते हैं राज्य सरकार वाले
सिर्फ साठ हज़ार दिए
कोई प्रोत्साहन नहीं देता युवकों को
भला हो सिगरेट और सॉफ्ट ड्रिंक्स बनाने वालों का
चालीस लाख हो गए हैं क्लब के पास
प्रधानमंत्री का भी आश्वासन है
वे ऐसे युवकों को निराश नहीं करते
मक़सूद और परमिंदर भी हैं जैकी के साथ
क़ौमी एकता की चढ़ाई है कंचनजंघा पर
छोटा क्लब नहीं है ‘हिमविजय’
जाने कितने चोपड़ाओं को बना चुका है पर्वतारोही
देश की एकता के लिए
इन बातों का ख़याल रखते हैं प्रधानमंत्री

जुबीन दारूवाला है मैनेजर
सो प्लान बना रहे हैं
कैम्प चार तक
पर्तारोही उठाएंगे दस किलो
कुली पच्चीस किलो
उसके बाद
पर्तारोही पांच किलो
कुली बीस किलो
शाम को कुली बांधेंगे टैंट
पर्तारोही आराम करेंगे
कुली बनाएंगे खाना
कैम्प चार तक
कुली को चार दिन बाद एक दिन का आराम
पर्वतारोही को दो दिन बाद एक दिन का
इसके बाद
पर्वतारोही को एक दिन बाद एक दिन का आराम
कुली को तीन दिन बाद एक दिन का
आक्सीजन कम है
सिर्फ पर्वतारोहियों के लिए
(बढ़िया कपडे और औज़ार भी थोड़े कम हैं)

आख़िरी कैम्प से सधेगा विजय अभियान
वही जायगा सबसे ऊपर
जिसे समझेंगे चोपड़ा और दारूवाला सबसे फिट
शायद खुद ही जाएं
मौसम ठीक रहा तो सब ठीक रहेगा
कुछ गड़बड़ हुई तो कुली ऊपर से मदद करेंगे
पांच दस मिनट में ही वापस लौटना होता है
... विजेताओं को

दुरुस्त रहेगी कैमरे की खचाखच
रेशमी झंडा ‘हिमविजय’ का और राष्ट्रध्वज
वीडियोबंद गौरव के साथ लौटेगी डायरी
हाथोहाथ लिए जाएंगे दारूवाला और डायरी
जीते हुए चोपड़ा और हारी हुई कंचनजंघा
ख़ुश होंगे प्रधानमंत्री
धन्य होगा देश
अखबार चिल्लाएँगे – ‘अद्भुत! अद्भुत!’
दूर उत्तर में बच्चे भरपेट खाएंगे कुलियों के भी
और कुली निकल पड़ेंगे रोज़गार की तलाश में
ढूंढते किसी फूजीमोर्रा नाकाहारा
या किसी साइमन मैकआर्थर को
शायद  ‘हिमतारा’ के शिशिर बोस मिल जाएं उन्हें
वे सब एक ही तरह मिलेंगे
उनके लिए सब एक से होंगे
वे किसी को भी बनाएंगे पर्वतारोही
वे कभी नहीं बन पाएंगे पर्वतारोही
राजधानी की लडकियों के दिल में धुकधुकी पैदा करेगा
जैकी चोपड़ा का वीडियो
अंग्रेज़ी बोलेंगी सजी-धजी अधेड़ औरतें
कुली वहाँ नहीं होंगे
वे छोड़ दिए गए थे
पहाड़ों में फेंके सामान के साथ
वे इंतज़ार करेंगे
शायद दोबारा आएं जैकी चोपड़ा
लम्बी उमर हो प्रधानमंत्री की

कंचनजंघा खड़ी रहेगी चुपचाप
जैसी खड़ी रही उन क्षणों में
जब महान चोपड़ा
फुदकते थे उसकी गोद में.

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत बढ़िया :)

अजेय said...

"kanchan jangha" shabd kya Faminine hai ? is ka prayog aise kiya gaya hai jaise yah sone ki jangha hi ho .......this is rdiculous . ye hindi ki Gender senstivity bhi kamal ki hai . can any body tell me what is the exact ' Sikimese / Tibetan or Bhutanese ' word for Kanchan jangha ?

Ashok Pande said...

Kangchenjunga is the official spelling adopted by Douglas Freshfield, A. M. Kellas, and the Royal Geographical Society that gives the best indication of the Tibetan pronunciation.

The brothers Hermann, Adolf and Robert Schlagintweit explained the local name Kanchinjínga (Tibetan: གངས་ཆེན་མཛོད་ལྔ་, Wylie: gangs chen mdzod lnga, ZYPY: Kangqênzön'nga, Sikkimese IPA: [k̀ʱɐŋt͡ɕʰẽd͡zø̃ŋɐ]) meaning “The five treasures of the high snow” as originating from the Tibetan word (following IPA given in Sikkimese Tibetan) "gangs" /k̀ʱɐŋ/ (English approx. /kaŋ/) meaning snow, ice; "chen" /t͡ɕʰẽ/ (English approx. [ʧen]) meaning great; "mdzod" /d͡zø/ meaning treasure; "lnga" /̃ŋɐ/ meaning five. The treasures represent the five repositories of God, which are gold, silver, gems, grain, and holy books.

There are a number of alternative spellings which include Kangchen Dzö-nga, Khangchendzonga, Kanchenjanga, Kachendzonga, Kanchenjunga or Kangchanfanga. The final word on the use of the name Kangchenjunga came from His Highness Sir Tashi Namgyal, the Maharaja or chogyal of Sikkim, who stated that "although junga had no meaning in Tibetan, it really ought to have been Zod-nga (treasure, five) Kang-chen (snow, big) to convey the meaning correctly". Following consultations with a Lieutenant-Colonel J.L.R. Weir, British agent to Sikkim, he agreed that it was best to leave it as Kangchenjunga, and thus the name remained so by acceptance and common usage.

Kangchenjunga's name in Nepali is कञ्चनजङ्घा Kanchanjaŋghā. Its name in the Limbu language and the Khambu Rai language is Sewalungma, meaning "mountain to which we offer greetings". Sewalungma is considered sacred by adherents of the Kirant religion.

(From Wikipedia)