बाबा नहीं रहे।
हम सबके बाबा त्रिलोचन २० अगस्त १९१७ को चिरानी पट्टी, सुल्तानपुर में जन्मे और ९ दिसम्बर २००७ को दिल्ली में अनंत यात्रा पर चले गए। इस कवि, लेखक, कोष निर्माता और संपादक का जीवन और साहित्य विविध और विपुल है। अपने अन्तिम वर्षों वे लगभग भुला से दिए गए थे।हिन्दी साहित्य और हिन्दी भाषी समाज का यह कमीनापन , यह क्रूरता नयी बात नहीं है।
'कबाड़खाना ' बाबा त्रिलोचन को याद करते हुए कृतज्ञता पूर्वक यह भी याद कर रह है कि १९९२ में अशोक पांडे के कविता संग्रह 'देखता हूँ सपने' का विमोचन उन्होंने ही किया था। शमशेर, नागार्जुन,केदार के बाद हिन्दी का यह बड़ा स्तंभ ढहा है। नमन।
हम सबके बाबा त्रिलोचन २० अगस्त १९१७ को चिरानी पट्टी, सुल्तानपुर में जन्मे और ९ दिसम्बर २००७ को दिल्ली में अनंत यात्रा पर चले गए। इस कवि, लेखक, कोष निर्माता और संपादक का जीवन और साहित्य विविध और विपुल है। अपने अन्तिम वर्षों वे लगभग भुला से दिए गए थे।हिन्दी साहित्य और हिन्दी भाषी समाज का यह कमीनापन , यह क्रूरता नयी बात नहीं है।
'कबाड़खाना ' बाबा त्रिलोचन को याद करते हुए कृतज्ञता पूर्वक यह भी याद कर रह है कि १९९२ में अशोक पांडे के कविता संग्रह 'देखता हूँ सपने' का विमोचन उन्होंने ही किया था। शमशेर, नागार्जुन,केदार के बाद हिन्दी का यह बड़ा स्तंभ ढहा है। नमन।
बाबा की एक कविता:
परिचय की गाँठ
यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!
था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
(बाबा का फोटो इरफान कबाड़ी के संग्रह से साभार)
3 comments:
त्रिलोचन जी के जाने से जनपक्षधर रचनाशीलता का एक प्रमुख स्तम्भ चला गया. आने वाली पीढियाँ उनसे रोशनी लेती रहेंगी.
वाह वाह !
http://themanwhoinventedthemirror.blogspot.com/2008/06/toothpaste.html
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