Thursday, December 14, 2017
Wednesday, December 13, 2017
Tuesday, December 12, 2017
Monday, December 11, 2017
ताकि वह रात में आए और चूमकर चला जाए
बिजली
का खम्भा
-
इब्बार रब्बी
वह
चलता गया
और
अंधेरा पाकर
चूम
लिया बिजली का खम्भा
काले
लोहे का ठंडापन
क्यों
चूमा उसने
बिजली
के अंधे कंधाबरदार को
ढोएगा
जो
उलझे
तारों की
सती
निगेटिव-पाजेटिव
धाराएँ
इस
सवाल का जवाब
दर्शनशास्त्रियों,
बुद्धिजीवियों
या
केन्द्रीय मंत्रिमंडल के
किसी
भी मंत्री
के
पास नहीं है
32
खंभे हैं सड़क पर
इसे
ही पसंद किया उसने
और्रों
के पास नहीं फ़ालतू वक़्त
रोशन
हैं सब
इसने
तुड़वाया बल्ब
बच्चों
की गुलेल से
ताकि
वह रात में आए
और
चूमकर चला जाए
इसके
बस का नहीं चलना
उसके
बस का नहीं रुकना
[1967]
Sunday, December 10, 2017
फूलों की पाँत में गा रहा हूँ
अंकुर
- इब्बार
रब्बी
1.
अंकुर
जब सिर उठाता है
ज़मीन
की छत फोड़ गिराता है
वह जब
अंधेरे में अंगड़ाता है
मिट्टी
का कलेजा फट जाता है
हरी
छतरियों की तन जाती है कतार
छापामारों
के दस्ते सज जाते हैं
पाँत
के पाँत
नई हो
या पुरानी
वह हर
ज़मीन काटता है
हरा
सिर हिलाता है
नन्हा
धड़ तानता है
अंकुर
आशा का रंग जमाता है
2.
क्या
से क्या हो रहा हूँ
छाल
तड़क रही है
किल्ले
फूट रहे हैं
बच्चों
की हँसी में
मुस्करा
रहा हूँ
फूलों
की पाँत में
गा
रहा हूँ
Saturday, December 9, 2017
Friday, December 8, 2017
Thursday, December 7, 2017
Wednesday, December 6, 2017
कोई है जो दराज़ को मैदान बना दे
दराज़
-
इब्बार रब्बी
बीच
की दराज में बन्द हूं
ऊपर
होता हूं तो
पैर
टूटता है
नीचे
सरकता हूं
सिर
फूटता है
मैं
कहां जाऊं !
क्या
करूं !
कैसे
रहूं इस अन्धेरे में !
कब तक
काग़ज़ों से पिचका हुआ !
दराज़
की हत्थी टूटी हुई है
कोई
है
जो
खींचकर निकाले
बेहत्थी
दराज़ को
मैदान
बना दे
मुझे
हवा की दुनिया में
गुब्बारे-सा
उड़ा दे
[1978]
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