ताहिरा सैयद कर रही हैं
बसन्त का इस्तकबाल.
यहां इस बात का ज़िक्र बेमानी नहीं
होगा कि यही रचना उनकी माता मल्लिका पुखराज भी गा चुकी हैं.
लो फिर बसन्त आई, लो फिर
बसन्त आई, फूलों पे रंग लाई.
...लो फिर बसन्त
आई, लो फिर बसन्त आई, फूलों
पे रंग लाई...
चलो बे दरंग, लबे आबे
गंग, बजे जलतरंग, मन पर उमंग
छाई,
लो फिर बसन्त आई , फूलों पे
रंग लाई ,
आफत गई खिज़ां की, किस्मत
फिरी जहाँ की,
चले मै गुसार, सूये लाला
जार, मै पर्दादार, शीशे के
दर से झाँकी ,
आफत गई खिज़ां की, किस्मत
फिरी जहाँ की,
खेतों का हर चरिंदा, खेतों हर
चरिंदा, बागों का हर परिंदा ,
कोई गर्म खेज़, कोई नग़मा
रेज़, सुब को और तेज़,
फिर हो गया है ज़िन्दा, बागों का
हर परिंदा ,
खेतों का हर चरिंदा , धरती
के बेल बूटे,
अन्दाज़े नौ से फूटे, हुआ पख्त
सब्ज़, मिला रख्त सब्ज़,
हैं दरख्त सब्ज़ , बन
बन के सब्ज़ निकले ,
धरती के बेल बूटे, अन्दाज़े
नौ से फूटे,
है इश्क़ भी, जुनूं भी, है इश्क़ भी, जुनूं भी,
कहीं दिल में दर्द, कहीं आह
सर्द, कहीं रंग ज़र्द ,
है यूँ भी और यूँ भी , मस्ती
भी जोशे खूँ भी ,
है इश्क़ भी, जुनूं भी,
फूली हुई है सरसों , फूली
हुई है सरसों,
भूली हुई है सरसों , नहीं
कुछ भी याद,
यूँ ही बामुराद, यूँ ही
शाद शाद ,
गोया रहे कि बरसों, फूली हुई
है सरसों,
फूली हुई है सरसों, इक नाज़नीं
ने पहने, इक नाज़नीं ने पहने,
फूलों के ज़र्द गहने, है मगर
उदास, नही पी के पास,
घमो रंजो यास , दिल
को पड़े हैं सहने , इक नाज़नीं ने पहने,
फूलों के ज़र्द गहने, लो फिर
बसन्त आई,
लो फिर बसन्त आई, फूलों पे
रंग लाई, लो फिर बसन्त आई ,
(फ़ोटो 'ट्रिब्यून' से साभार)
3 comments:
हृदय से आभार इस गीत के बोल देने हेतु !!बहुत सुंदर गायकी ....संग्रहणीय पोस्ट ॥
बहुत सुंदर !
बहुत ही मधुर गीत
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